प्रश्न : सद्‌गुरु, मंदिर और पूजास्थलों पर, हमें कुमकुम, चंदन और विभूति दी जाती है। क्या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण है?

सद्‌गुरु: कुछ चीज़ें, दूसरी चीजों के मुकाबले अधिक तेजी से ऊर्जा को समेट पती हैं। अगर मेरे बगल में एक स्टील की रॉड, थोड़ी विभूति और एक इंसान खड़ा हो, तो वे मुझसे कितनी ऊर्जा ग्रहण करेंगे, वह अलग-अलग होगा। उन सभी के पास बराबर अवसर होता है, लेकिन वे सभी समान रूप से ऊर्जा को सोखते और कायम नहीं रखते।

ये चीज़ें प्राण-ऊर्जा अच्छे से सोखती हैं

कुछ ऐसे पदार्थों की पहचान की गई है, जो ऊर्जा को आसानी से समेट पाते हैं, और उसे अपने पास कायम रख पाते हैं। उनमें एक विभूति है, जो बहुत ही संवेदनशील पदार्थ है। आप आसानी से उसे ऊर्जावान बनाकर किसी को दे सकते हैं। कुमकुम भी इसी तरह है। चंदन का लेप भी कुछ हद तक ऐसा ही है, लेकिन मैं इनमें से विभूति को सबसे ऊपर रखूंगा।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.
आप विभूति या कुमकुम या हल्दी का इस्तेमाल कर सकती हैं या अगर आप नहीं चाहतीं, तो कुछ भी इस्तेमाल मत कीजिए। कुछ न लगाने में कोई बुराई नहीं है, मगर प्लास्टिक मत लगाइए।  
कई मंदिरों में अब भी बहुत शक्तिशाली प्राण-ऊर्जा का कम्पन है, इसलिए इन चीज़ों को कुछ देर के लिए वहां रखा जाता है ताकि वे खुद में थोड़ी ऊर्जा समेट लें। इसका मकसद ऊर्जा को बांटना है, इसलिए वहां आने वाले लोगों को वह दिया जाता है। अगर आप संवेदनशील हैं, तो आप सिर्फ वहां मौजूद रहकर भी खुद वह ऊर्जा ग्रहण कर सकते हैं। अगर आप उतने संवेदनशील नहीं हैं, तो आपको किसी चीज की जरूरत पड़ती है।

कुमकुम कैसे बनाया जाता है?

कुमकुम के रंग से धोखा न खाएं। कुमकुम हल्दी और चूने के मिश्रण से बनाया जाता है। जैसा कि लिंगभैरवी का कुमकुम बनाया जाता है। दुर्भाग्यवश, कई स्थानों पर यह सिर्फ एक कैमिकल पाउडर होता है। हल्दी में बहुत जबरदस्त गुण होते हैं। इस संस्कृति में इसे शुभ माना जाता है क्योंकि इसमें एक खास गुण होता है जिसे हमारी खुशहाली के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

हमारा जीवन कैसा होगा, यह इससे तय होता है कि हमारी ऊर्जा, शरीर और मन कैसे काम करते हैं। वह आपके आस-पास की स्थितियों पर निर्भर नहीं करता। इस संस्कृति में यह तकनीक विकसित की गई कि अपनी ऊर्जा को एक खास दिशा में मोड़ने के लिए किन चीजों का इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन अब अधिकांश महिलाएं कुमकुम के बदले प्लास्टिक का इस्तेमाल करने लगी हैं। आप विभूति या कुमकुम या हल्दी का इस्तेमाल कर सकती हैं या अगर आप नहीं चाहतीं, तो कुछ भी इस्तेमाल मत कीजिए। कुछ न लगाने में कोई बुराई नहीं है, मगर प्लास्टिक मत लगाइए। प्लास्टिक लगाना ऐसा ही है जैसे आपने अपनी तीसरी आंख बंद कर ली हो और उसे खोलना नहीं चाहते!

महिलाएं कुंकुम क्यों लगाती हैं?

प्रश्न: विवाहित स्त्रियों को मांग में कुमकुम क्यों लगाना होता है? उसकी क्या अहमियत है?

सद्‌गुरु: महत्वपूर्ण चीज यह है कि वह हल्दी है। उसे लगाने से सेहत संबंधी और अन्य फायदे हैं। दूसरी चीज यह है कि उसे समाज में एक निशान के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अगर किसी स्त्री ने कुमकुम लगाया हुआ है, तो वह विवाहित है और इसलिए उसे अप्रोच नहीं करना है। यह सिर्फ एक संकेत है ताकि आपको हर किसी को यह बात बतानी न पड़े। पश्चिमी देशों में किसी को अंगूठी पहने देखकर आप जान जाते हैं कि वह शादीशुदा है। यहां अगर किसी औरत ने बिछुए पहने हैं और सिंदूर लगाया है, तो वह शादीशुदा है। यानी अब उसकी दूसरी जिम्मेदारियां भी हैं। यह समाज में व्यवस्था लाने का एक तरीका है, किसी की सामाजिक स्थिति पता लगाने का एक तरीका है।

कई मंदिरों में अब भी बहुत शक्तिशाली ऊर्जा का कम्पन है, इसलिए इन चीज़ों को कुछ देर के लिए वहां रखा जाता है ताकि वे खुद में थोड़ी ऊर्जा समेट लें। इसका मकसद ऊर्जा को बांटना है, इसलिए वहां आने वाले लोगों को वह दिया जाता है।