सद्‌गुरु: प्रसन्न या अप्रसन्न रहना मूल रूप से आप का ही चुनाव है। लोग इसलिये दुःखी रहते हैं क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि दुःखी रहने से उन्हें कुछ मिलेगा। यह पढ़ाया जा रहा है कि अगर आप पीड़ा भोग रहे हैं तो आप स्वर्ग में जायेंगे। पर, यदि आप दुःखी इंसान हैं तो आप स्वर्ग में जा कर भी क्या करेंगे? नर्क आप के लिये ज्यादा घर जैसा होगा! जब आप दुःखी ही हैं, तो आप को कुछ भी मिले, क्या फर्क पड़ेगा? ये कोई दार्शनिक बात नहीं है, आप का सच्चा स्वभाव है। स्वाभाविक रूप से तो आप प्रसन्न रहना चाहेंगे। मैं आप को कोई उपदेश नहीं दे रहा हूँ, "खुश रहो, तुम्हें खुश रहना चाहिये"! हर प्राणी आनंदित रहना चाहता है। आप जो कुछ भी कर रहे हैं, हर वो काम जो आप कर रहे हैं, वह किसी न किसी रुप में खुशी पाने के लिये ही कर रहे हैं।

इस धरती पर हर मनुष्य जो कुछ भी कर रहा है, वो क्या कर रहा है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। चाहे वो अपना जीवन भी किसी को दे रहा हो, वो इसीलिये ऐसा करता है क्योंकि इससे उसे प्रसन्नता मिलती है।

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उदाहरण के लिये, आप लोगों की सेवा करना क्यों चाहते हैं? बस, इसलिये कि सेवा करने से आप को खुशी मिलती है! कोई अच्छे कपड़े पहनना चाहता है, कोई बहुत सारा धन कमाना चाहता है क्योंकि इस से उनको खुशी मिलती है। इस धरती पर हर मनुष्य जो कुछ भी कर रहा है, वो क्या कर रहा है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। चाहे वो अपना जीवन भी किसी को दे रहा हो, वो इसीलिये ऐसा करता है क्योंकि इससे उसे प्रसन्नता मिलती है। खुशी जीवन का मूल लक्ष्य है। आप स्वर्ग जाना क्यों चाहते हैं? सिर्फ इसलिये कि किसी ने आप को बताया है कि अगर आप स्वर्ग जायेंगे तो खुश रहेंगे।

 

दुःख का स्रोत

आप जो कुछ भी कर रहे हैं, उस सब को कर लेने के बाद भी अगर आप को खुशी नहीं मिलती है, तो इसका अर्थ यही है कि जीवन की किन्हीं मूल बातों को आप चूक गये हैं। आप जब बच्चे थे तो आप ऐसे ही खुश रहते थे। फिर, आगे के रास्ते में, कहीं ये आप से खो गया। आप ने इसे क्यों खोया ? आप ने अपने आसपास की बहुत सारी वस्तुओं से अपनी पहचान बना ली - आप का शरीर, आप का मन। आप जिसे अपना मन कहते हैं, वो कुछ और नहीं है, बस वे सारी सामाजिक बातें हैं जो आप ने अपने आसपास की सामाजिक परिस्थितियों में से ले ली हैं। आप जिस प्रकार के समाज में पले, बढ़े हैं, उस प्रकार का मन आपने प्राप्त कर लिया है।

इन सब दुःखों का आधार ये है कि आप झूठ के बीचों-बीच खड़े हैं। आप बहुत गहराई से उसके साथ पहचान बनाये हुए हैं, जो आप नहीं हैं।

अभी, जो कुछ भी आप के मन में है, वह सब आप ने बाहर से उठाया है। ये सारी बकवास आप के साथ नहीं आयी थी, आप ने इसे यहीं सीखा और उसके साथ अपनी पहचान बना ली। आप इसके साथ इतना ज्यादा जुड़ गये हैं कि अब ये आप को दुःख दे रही है। आप किसी भी तरह का कचरा इकट्ठा कर सकते हैं, ये ठीक है। जब तक आप इससे अपनी पहचान नहीं जोड़ते, तब तक कोई समस्या नहीं है। ये शरीर आप का नहीं है, आप ने इसे इस धरती से लिया है। आप एक छोटे से शरीर के साथ पैदा हुए थे, जो आप के माता पिता ने आप को दिया था। उसके बाद आप वनस्पतियों और जानवरों को खा-खा कर बढ़ते रहे। आप ने इसे धरती से उधार लिया है। ये आप का नहीं है। आप को कुछ देर के लिये इसका उपयोग करना है - तो आनंद लीजिये और जाईये। पर आप ने इसके साथ इतनी गहराई से पहचान बना ली है कि आप यही समझते हैं कि ये शरीर ही आप हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि आप पीड़ा में रहते हैं। इन सब दुःखों का आधार ये है कि आप झूठ के बीचों-बीच खड़े हैं। आप बहुत गहराई से उसके साथ पहचान बनाये हुए हैं, जो आप नहीं हैं।

 

आप जो नहीं हैं, उसे महत्व न दीजिये

आध्यात्मिकता की सारी प्रक्रिया यही है कि आप उन सब से अपनी पहचान तोड़ लें, जो आप नहीं हैं। जब आप नहीं जानते कि आप वास्तव में क्या हैं, तो क्या आप उसे खोज सकते हैं ? अगर आप उसे खोजेंगे तो सिर्फ आप की कल्पनायें ही जोर मारेंगी। अगर आप सोचना शुरू कर दें, "मैं कौन हूँ"? तो कोई आप से कहेगा कि आप ईश्वर के बच्चे हैं। कोई आप को शैतान का बच्चा भी बता सकता है। कोई अन्य आप को कुछ और कहेगा। ये बस अंतहीन विश्वास हैं और ये कल्पनायें बस इधर उधर तेजी से दौड़ती रहेंगीं। आप बस एक ही चीज़ कर सकते हैं और वो ये है कि आप जो कुछ भी नहीं हैं, उसे महत्व देना छोड़ दीजिये। जब हर चीज़ छोड़ दी जायेगी तब कुछ ऐसा रहेगा जिसे छोड़ा नहीं जा सकता। जब आप उस तक पहुँच जायेंगे, तब आप देखेंगे कि इस दुनिया में दुःख के लिये कोई कारण ही नहीं है।