कृष्ण की 4 दुर्लभ कहानियाँ
यहाँ हम आपको सुना रहे हैं कृष्ण के जीवन की ऐसी चार कहानियाँ जो बहुत ही दुर्लभ हैं। जानें कि कैसे दुर्योधन की पत्नी कृष्ण भक्त हो गयी, कैसे कृष्ण ने सत्यभामा के घमंड को ठीक किया, कृष्ण का सिरदर्द कैसे अजीब ढंग से गायब हो गया और क्यों कृष्ण ने अपने एक भक्त को उसके हाल पर ही छोड़ दिया!
कहानी #1 - दुर्योधन की पत्नी का कृष्ण भक्त हो जाना
सदगुरु: दुर्योधन की पत्नी का नाम भानुमति था। वो एक बहुत ही सुंदर लड़की थी, और जब कृष्ण दुर्योधन के महल में मेहमान बन कर आये तब वो सिर्फ सत्रह साल की थी।दुर्योधन ने एक षड्यंत्र रचा जिससे कृष्ण को नशे की हालत में ला कर कोई वादा करा लिया जाये। उसने सभी तरह की व्यवस्थायें कीं और इस बात का खास ख्याल रखा कि भोज में खूब अच्छी मात्रा में शराब भी हो। दुर्योधन के दोस्त भी आये और सभी ने इतनी शराब पी कि वे सब नशे में धुत्त हो गये। पर कृष्ण ने अपने आपको शांत रखा और वे हर किसी को खुश करते रहे।
इस सारे हंगामे में भानुमति ने भी कुछ ज्यादा ही पी ली - जितनी वो पी सकती थी, उससे भी ज्यादा। वो एक युवा लड़की थी और उसे इन चीज़ों की आदत नहीं थी। तो, वो नशे में बहकने लगी। कुछ समय बाद सभी लोग बहकने लगे और चीजें काबू से बाहर जाने लगीं।
भानुमति अपने पर काबू खो बैठी। वो कृष्ण से लिपट गयी और उनके लिये अपनी इच्छा प्रकट करने लगी। कृष्ण ने उसे किसी शिशु की तरह सम्भाला, और वे समझ गये थे कि स्थिति खराब हो चुकी थी। वे समझ गए थे कि भानुमती अगर कुछ गलत कर बैठी तो बाद में संभाल नहीं पायेगी, और हस्तिनापुर की रानी का गौरव कलंकित हो जायेगा।
इसलिये कृष्ण उसको उठा कर महल के अंदर ले गये और उसकी सास गांधारी के कक्ष में जा कर उनके हवाले कर दिया। अगले दिन सुबह जब भानुमति को पता चला, तो वो कृष्ण के प्रति सन्मान, और कृतज्ञता से भर गयी कि उन्होंने उसे बचा लिया था। तब से वो कृष्ण की भक्त बन गयी।
कहानी #2 - कृष्ण की घमंडी पत्नी
सदगुरु: सत्यभामा कृष्ण की दूसरी पत्नी थी। वो एक बहुत ही घमंडी स्त्री थी। उसका ये मानना था कि वो सबसे सुंदर और सबसे अमीर स्त्री थी क्योंकि उसके पिता एक बहुत ही धनवान व्यक्ति थे। तो, सत्यभामा जितने और जो रत्न और आभूषण और संपत्ति चाहती थी वो सब उसके पास थे। स्वाभाविक रूप से घमंड उसकी एक बड़ी समस्या थी।Subscribe
एक बार कृष्ण के जन्मदिवस के अवसर पर सत्यभामा ने सोचा कि वो सब को दिखायेगी कि वो कृष्ण को कितना प्यार करती थी। तो उसने तय किया कि वो कृष्ण के वजन जितना सोना शहर के लोगों में बाँटेगी। इसे तुलाभार कहते हैं। ये मंदिरों में होता है। लोग एक बड़ी तराजू में अपने वजन के बराबर का मक्खन, घी या चावल या कुछ और रख कर वो चीज़ लोगों में बाँटते हैं। चावल, नमक, डाल या सोना या वो कुछ भी आप दे सकते हैं, जो देना चाहें। ये प्राचीन परंपरा हमारी संस्कृति का एक हिस्सा है।
सत्यभामा ने तुलाभार की व्यवस्था की। लोग बहुत प्रभावित हुए पर कृष्ण पर इन बातों का कोई असर नहीं हुआ। वे जाकर तराजू के एक पलड़े पर बैठ गये। सत्यभामा जानती थी कि उनका वजन लगभग कितना है, और उसने उतना सोना तैयार ही रखा था। पर जब उसने सब सोना दूसरे पलड़े पर रखा, तो काँटा जरा भी नहीं हिला, कृष्ण का पलड़ा थोड़ा भी ऊपर नहीं हुआ।
ऐसा ही कुछ तब भी हुआ था जब कृष्ण एक शिशु थे। एक राक्षस आकर उन्हें ले जाने लगा। तब कृष्ण ने अपना वजन इतना बढ़ा लिया कि राक्षस वहीं गिर पड़ा, और कृष्ण ने उसके ऊपर बैठ कर उसे कुचल कर मार डाला। क्रिया योग में एक ऐसा तरीका है जिससे कोई योगी अपना वजन बढ़ा या घटा सकता है। ऐसी बहुत सी कहानियाँ हैं कि ऐसे योगी भी थे जो पहाड़ की तरह भारी हो जाते थे।
तो इस बार भी कृष्ण अपना वजन बढ़ा कर तराजू में बैठ गये। सत्यभामा ने उतना सोना दूसरे पलड़े पर रख दिया था, जितना उसके हिसाब से कृष्ण के वजन के बराबर था, पर कुछ हुआ ही नहीं। तब तक शहर के सभी लोग ये घटना देखने के लिये आ गये थे। तब उसने अपने नौकरों से वो सभी गहIने मंगवाये जो उसके पास थे। एक के बाद एक वो गहने डालती जा रही थी, और सोच रही थी कि काम हो जायेगा पर कुछ नहीं हुआ। तब उसने वो सब कुछ भी रख दिया जो उसके पास था पर पलड़ा जरा भी नहीं हिला।
वो रोने लगी क्योंकि ये सब उसके लिये बहुत शरमजनक था। सारा शहर देख रहा था और उसके पास पर्याप्त सोना नहीं था। वो जो हमेशा अपनी संपत्ति के बारे में इतनी घमंडी थी, उसके पास पर्याप्त सोना नहीं था, और उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे?
तब उसने रुक्मिणी की ओर देखा, जिससे वो बहुत जलती थी और हमेशा परेशान रहती थी। उसने रुक्मिणी से पूछा, "अब मैं क्या करूँ क्योंकि ये बात सिर्फ मेरे लिये ही नहीं पर तुम्हारे और हम सब के लिये भी बहुत शरमजनक है। मैं क्या करूँ"? तब रुक्मिणी बाहर गयी और तुलसी के पौधे के तीन पत्ते उठा लायी। जैसे ही तुलसी के वे पत्ते उसने तराजू के दूसरे पलड़े पर रखे, कृष्ण का पलड़ा तुरंत ही ऊपर आ गया!
कहानी #3 - कृष्ण का अर्धभक्त
सदगुरु: एक दिन, कृष्ण दोपहर में खाना खा रहे थे और सत्यभामा बहुत ही खुशी और गर्व के साथ खाना परोस रही थी क्योंकि वो ऐसे व्यक्ति नहीं थे जो रोज खाना खाने घर पर आयें। उसे ऐसा अवसर कभी कभी ही मिलता था कि वो उन्हें खाना परोसे। तो वो ये बहुत खुशी और आनंद से कर रही थी।खाने के बीच में ही कृष्ण अचानक उठ खड़े हुए और हाथ धोये बिना ही दरवाजे की ओर दौड़ने लगे। सत्यभामा अवाक रह गयी और बोली, "अरे! ये क्या है? खाना तो खा लीजिये और फिर जाईये"। कृष्ण बोले, "नहीं, मुझे जाना जरूरी है" और मुख्य दरवाजे की ओर दौड़ पड़े।
पर, अचानक वे वापस मुड़े और खाना खाने बैठ गये। तब, सत्यभामा ने पूछा, "आप इस तरह क्यों दौड़ पड़े और क्यों वापस आ गये? ये सब क्या है"? कृष्ण ने जवाब दिया, "मेरा एक भक्त जंगल में बैठा था और उसके जीवन-प्राण ही ‘कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण’ हो गये थे। मैंने एक भूखे बाघ को उसकी ओर आते देखा तो मुझे जाना पड़ा। मैं दरवाजे तक पहुँचा ही था कि उस बेवकूफ ने पत्थर उठा लिया। तो, मैं वापस आ गया। अब उसे अपने आप ही अपनी परिस्थिति संभालने दो"।
कहानी #4 - कृष्ण के सिरदर्द का इलाज
सदगुरु: एक बार, कृष्ण के जन्मादिवस के अवसर पर उत्सव मनाने के लिये बहुत बड़ी तैयारियाँ की गयीं थीं। नृत्य संगीत और भी बहुत कुछ! लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए पर कृष्ण घर में ही बैठे रहे। वे शायद उसमें भाग लेना नहीं चाहते थे। वैसे तो कृष्ण हर तरह के उत्सव के लिये हमेशा तैयार ही होते थे, पर, इस दिन, किसी वजह से उनकी इच्छा नहीं थी।रुक्मिणी आयी और पूछने लगी, "नाथ, आपको क्या हो गया है? क्या बात है? आप उत्सव में शामिल क्यों नहीं हो रहे? कृष्ण बोले, "मुझे सिरदर्द है"। हमें नहीं मालूम, उनको वास्तव में सिरदर्द था या नहीं! हो सकता है कि वाकई हो और ये भी संभव था कि वे नाटक कर रहे हों!! उनमें वो योग्यता थी!!!
रुक्मिणी बोली, "हमें वैद्यों को बुलाना चाहिये"। तो वैद्य आये। उन्होंने हर तरह की दवाईयां दीं। कृष्ण बोले, "नहीं, ये सब चीजें मुझ पर असर नहीं करेंगीं। लोगों ने पूछा, "तो हमें क्या करना चाहिये?"। तब तक बहुत सारे लोग इकट्ठा हो गये थे। सत्यभामा आयी, नारद आये। हर कोई परेशान था। "क्या हो गया? क्या हुआ है? कृष्ण को सिरदर्द है। हम उन्हें ठीक करने के लिये क्या करें"?
कृष्ण बोले, "कोई, जो मुझे वाकई में प्यार करता हो, वो अपने पैरों की धूल अगर मेरे सिर पर मल दे तो मैं ठीक हो जाऊँगा"। सत्यभामा बोली, "ये क्या बात हुई? मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ पर ये नहीं हो सकता कि मैं अपने पैरों की धूल ले कर आपके सिर पर लगाऊँ। हम ऐसा काम नहीं कर सकते। रुक्मिणी रो रही थी। "हम ये कैसे कर सकते हैं। ये तो आपका अनादर होगा, अपमान होगा। हम ये नहीं कर सकते"। नारद भी पीछे हट गये। "मैं ऐसा कुछ भी करना नहीं चाहता। आप स्वयं भगवान हैं। मुझे नहीं मालूम कि इसमें क्या रहस्य है, पता नहीं इसमें कौन सा जाल होगा? मैं अपने पैरों की धूल आपके सिर पर रखूँगा तो हमेशा नरक की आग में जलूँगा। मैं ऐसा कोई काम करना नहीं चाहता"।
चारों ओर बात फैल गयी। हर कोई सकते में था, "हम ये काम नहीं कर सकते। हम सब उन्हें बहुत प्यार करते हैं पर ऐसा कर के हम नरक में जाना नहीं चाहते"। उत्सव मनाने के लिये लोग कृष्ण का इंतज़ार कर रहे थे पर कृष्ण अपना सिरदर्द ले कर बैठे थे।
फिर ये बात वृंदावन तक पहुँची। गोपियों को मालूम पड़ा कि कृष्ण को सिरदर्द है। तब राधा ने अपनी साड़ी का पल्लू (फाड़ कर) ज़मीन पर बिछा दिया और सब गोपियाँ उस पर नाचने लगीं। उन्होंने फिर वो पल्लू नारद को दे कर कहा, " इसे ले जाईये और कृष्ण के सिर पर बाँध दीजिये"। नारद वो धूल भरा पल्लू ले आये और उसे कृष्ण के सिर पर बाँध दिया। कृष्ण का सिर दर्द तुरंत ठीक हो गया!
कृष्ण ने हमेशा स्पष्ट रूप से बताया कि उनके लिये कौन सी चीज सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण थी? हालाँकि वे राजाओं के साथ घूमते थे और उन्हें बहुत से राज्य भेंट किये गये पर उन्होंने वे नहीं लिये। उनके लिये यही (सच्चा, निस्वार्थ, सरल प्रेम) ही महत्वपूर्ण था।
क्या आपको कृष्ण की कहानियाँ पसंद हैं? तो यहाँ उनके जीवन से ली हुईं 30 कहानियाँ दी गयीं हैं। पढ़िए... 30 stories from Krishna’s life.