क्यों डरते हैं, बचें कैसे?
डर, लगभग हम सबके जीवन में किसी न किसी बात को लेकर बना रहता है। कोई किसी बात से डरा है तो कोई किसी और बात से। और इस डर की वजह से हम अपना जीवन भी खुल कर जी नहीं पाते हैं...
डर, लगभग हम सबके जीवन में किसी न किसी बात को लेकर बना रहता है। कोई किसी बात से डरा है तो कोई किसी और बात से। और इस डर की वजह से हम अपना जीवन भी खुल कर जी नहीं पाते हैं। तो फिर आइए जानें कि क्यों लगता है हमें डर और कैसे बचें इससे –
डर जीवन के सबसे अप्रिय अनुभवों में से एक है। आपको जिस चीज का डर लगता है, वास्तव में वह उतनी डरावनी नहीं होती, जितना कि खुद डर। कोई आए और आपका दिल दुखाए, उससे पहले ही आप खुद ही अपने आपको इतना दुख पहुंचा लेते हैं कि उसके करने के लिए ज्यादा कुछ बचता ही नहीं।
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डर की सबसे बड़ी वजह है कि आपने अपने शरीर और मन के साथ जरूरत से ज्यादा अपनी पहचान बना ली है।
मान लीजिए, आपके पास एक बहुत पुराना फूलदान है, जो कई पीढ़ियों से चला आ रहा है और अब आपको मिला है। आपको हमेशा यह बताया गया कि यह बहुत भाग्यशाली फूलदान है। हमारे परिवार के लोगों की जिंदगी बस इसी फूलदान की वजह से अच्छी तरह चलती रही है। अगर मैं आकर उस फूलदान को तोड़ दूं तो क्या होगा? आपके दिल में डर बैठ जाएगा कि अब आपके साथ बुरा होने वाला है। क्योकि आपने इस फूलदान के साथ अपनी बहुत ज्यादा पहचान बना ली है।
मान लीजिए, आप हमेशा से बिना किसी तनाव के आराम से कार चलाते रहे हैं। अचानक एक दिन कोई आकर आपकी कार से टकराता है या आप खुद किसी चीज से टकराते हैं। जिसमें आपको जरा सी चोट लगी, बस थोड़ा सा दर्द हुआ। लेकिन अगले दिन जब आप कार में बैठेंगे, तो भगवान से प्रार्थना करेंगे। अभी तक आप सडक़ पर मस्ती से कार चलाते थे, अब अचानक कार चलाने के लिए आप को भगवान की मदद की जरूरत पड़ गई। ऐसा नहीं है कि शुरू से आप में डर नहीं था, यह पहले भी था। लेकिन इसके प्रति सचेत होने के लिए एक दुखद मौके की जरूरत पड़ी।
डर जीवन से पैदा नहीं होता है, बल्कि यह आपके भ्रमित मन की उपज है। आप गैरमौजूद चीज को लेकर इसलिए परेशान होते हैं, क्योंकि आप हकीकत में रहने की बजाय उस ख्याली दुनिया में रहते हैं, जो लगातार अतीत के सहारे भविष्य में झांक रही है।
अब आपको यह तय करना है कि आप धरती पर जीवन का अनुभव लेने आए हैं या उससे बचने। अगर आप जीवन के अनुभव लेने आए हैं तो उसके लिए सबसे जरूरी चीज है - चाह की तीव्रता, एक जज्बा। अगर आप में तीव्रता नहीं होगी तो आपको जीवन का थोड़ा बहुत ही अनुभव हो पाएगा। दरअसल, जैसे ही डर आपके पास आता है, आपकी तीव्रता कम हो जाती है। जैसे ही यह तीव्रता नीचे जाती है, जीवन को अनुभव करने की आपकी क्षमता गायब हो जाती है। और तब आप मनोवैज्ञानिक समस्या के शिकार बन जाते हैं। ऐसे में आपके मन में चल रही चीजें ही आपके लिए हकीकत बन जाती हैं। उस स्थिति में आप कभी भी कोई शानदार या असाधारण खुशी का अनुभव नहीं कर पाते, क्योंकि जब आप डरे हुए होते हैं तो आप सिर्फ सहमे हुए बैठे रहते हैं। तब आपमें बेफिक्री का भाव नहीं आ पाता। न आप खुलकर गा सकते हैं, न नाच सकते हैं, न हंस सकते हैं न रो सकते हैं, यानी आप ऐसी कोई चीज खुलकर नहीं कर सकते, जिसमें जीवन झलकता हो। तब आप बैठकर जिंदगी और उसकी तमाम दिक्कतों व जोखिमों के बारे में सोच सकते हैं और परेशान हो सकते हैं।
आप गौर करें कि यह डर आखिर किस चीज का है। आप पाएंगे कि आप हमेशा ये सोचकर डरते हैं कि आने वाले समय में क्या होगा। आपका डर हमेशा भविष्य को लेकर होता है। उस बात को लेकर, जो अभी हुई नहीं है, बल्कि होनी बाकी है। इसका मतलब है कि फिलहाल इसका कोई अस्तित्व नहीं है। डरने का मतलब है कि आप ऐसी चीज से परेशान हो रहे हैं, जो वास्तव में मौजूद ही नहीं है। आप जिस तरह से गैरमौजूद चीजों से परेशान हो रहे है, उसके आधार पर आपको समझदार माना जाए या पागल? आप बस इसी बात से राहत महसूस कर सकते हैं कि सब लोग आपकी ही तरह के हैं। लेकिन सिर्फ इसी वजह से कि सभी आपकी तरह है, इसे सही तो नहीं कहा जा सकता। तो आप अभी इसी वक्त से वर्तमान में जीने का अभ्यास शुरू करें, न कि भविष्य में।