महाभारत कथा : सत युग में क्यों बढ़ जाती हैं क्षमताएं?
Did you know that Kali yuga has already ended, and a new era of enhanced perception is about to begin? Sadhguru explains how Krishna foresaw a great period of spiritual growth and enhanced human intelligence 5000 years before its advent.
पिछले ब्लॉग में हमने पढ़ा कलि युग और कल्कि अवतार के बारे में। हमने जाना कि कलि युग को अँधेरे का युग कहा जाता है। युग बदलने से पृथ्वी पर जीवन प्रकाशमय क्यों हो जाता है? आइये जानते है सत युग और त्रेता युग की विशेषताएं
अगर हॉल में अंधेरा है और मैं बत्ती जलाता हूं तो मैं प्रकाश अंधेरे को नष्ट करता है। मूर्ख विद्वानों या शोषकों ने इसके पीछे छुपे संकेत को समझे बिना इसका अर्थ लगा लिया। इसका अर्थ सांकेतिक है। जैसे सौर मंडल घूमता है, यह अंधेरे पक्ष में जाता है और यह जैसे ही उससे बाहर आता है, रोशनी बढ़ने लगती है।
Subscribe
अकसर पुराणों में कहा गया है कि एक बार जब सौर मंडल कलियुग से बाहर आ जाएगा तो उसकी चमक अपने आप बढ़ेगी। अलग-अलग युगों में इंसान की बुद्धिमत्ता और संवाद का अलग-अलग आयाम होता है।
सत युग में बढ़ जाती हैं क्षमताएं
सत युग में जीवन जीने और संवाद के लिए बुद्धि नहीं, बल्कि मन सबसे महत्वपूर्ण आयाम होता है। तब मान लीजिए मैं थोड़ी दूर हूं और मुझे आपसे कुछ कहना है तो मुझे उसके लिए न तो माइक्रोफोन की जरूरत होती और न ही मुझे चिल्लाना पड़ता। अगर मैं उसके बारे में सोचता भर तो आपको वह बात समझ में आ जाती। सत युग में लोग कभी कभार ही बात करते थे, क्योंकि तब मन ही संवाद का जरिया हुआ करता था। जो भी करना होता था, वो सब मन से ही होता था। यहां तक कहा गया है कि उस दौर में गर्भधारण भी शारीरिक तौर पर नहीं होता था, मानसिक होता था।
त्रेता युग की विशेषताएं
त्रेता युग में फोकस या केंद्र मन से बदल कर नीचे आंखों में आ गया। त्रेता युग में प्रचलित भाषा से पता चलता है, कि तब आंखें सबसे ज्यादा प्रभावशाली माध्यम हुआ करती थी। उस समय भारत में बुनियादी अभिवादन हुआ करता था ‘मैं आपको देख रहा हूं।’
स्कूल जाने से पहले ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। तब मैंने हर चीज को घूरना या निहारना चालू कर दिया। उसी स्थिति में मैं स्कूल गया, जहां मैं हर चीज निहारता था। शुरू में मैंने देखा कि लोग कुछ कह रहे हैं, लेकिन कुछ समय बाद वे शब्द मेरे लिए अर्थहीन हो उठे, क्योंकि मैं जानता था कि मैं अपने अर्थ निकाल रहा हूं। उसके बाद मेरे लिए ध्वनि का भी कोई मतलब नहीं रहा।
लोगों को सुनने का मेरे लिए कभी कोई महत्व नहीं रहा। मैं लोगों को सुनने से ज्यादा सिर्फ उन्हें देखकर उनके बारे में जान जाता था। मैं निहारता था, इसका मतलब ये नहीं कि टीचर हमेशा सुंदर होती थीं, बल्कि जब मैं उन्हें पूरी उत्सुकता के साथ घूरता या निहारता था तो मैं उन्हें हर पहलू से समझ जाता था। मैं उनके बारे में हर बात जान जाता था, उनके जीवन के बारे में ऐसी चीजें भी जान जाता था, जिनके बारे में उन्हें भी पता नहीं होता था। अगर मैं किसी चीज को घंटों देखता तो धीरे-धीरे मैं उसमें और डूबता चला जाता। अगर मैं किसी चीज के बारे में जानना चाहता तो मैं उसे घूरना या निहारना शुरू कर देता। कुछ समय बाद मैंने महसूस किया कि इसे करने के और भी बेहतर तरीके हैं, अगर मुझे किसी चीज के बारे में जानना है तो बस मुझे अपनी आंखें बंद करनी होंगी।