महामारी के बाद भारत को फिर से उन्नति की राह पर कैसे ले जाएँ?
जब समय अनिश्चितताओं से भरा हो, तब समय की माँग होती है कि कुछ नये उपाय किये जायें, क्योंकि ऐसा समय नये विचारों के अपार अवसर भी लेकर आता है। यहाँ सद्गुरु कुछ ऐसे ही नवीन विचार रख रहे हैं जो राष्ट्र को पहले से कहीं ज्यादा मजबूत बन कर बाहर आने में मदद करेंगे।
लॉकडाउन के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था
सद्गुरु: इस चुनौती भरे समय में लोगों को, संस्थानों को, और छोटे-बड़े कारोबारों, सभी को कम या ज़्यादा आर्थिक मार सहनी पड़ेगी। पर, ये संसार का अंत नहीं है। जिन कारोबारों को सालों की मेहनत से बनाया गया है, वे इन कुछ सप्ताहों में टूट कर बिखर नहीं जायेंगे।हमें काफी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ेगा पर यह समय चिंता करने और डरने का नहीं है। इस बात के बहुत वैज्ञानिक और मेडिकल सबूत हमारे पास हैं जो यह बताते हैं कि आपका शरीर और मन तभी सबसे अच्छा काम करते हैं जब आप अपने अंदर सुखद अवस्था में होते हैं। जब आप डर या चिंता में हैं तो अपनी सबसे अच्छी अवस्था में नहीं होंगे, और एक तरह से अपाहिज हो जायेंगे। तो आपका, खास तौर पर संकट के समय में आनंदमय होना महत्वपूर्ण है। हम आपको इसके लिये बहुत से साधन भेट कर रहे हैं जो आपके लिए ऑनलाईन उपलब्ध हैं। कृपा कर के इनका उपयोग कीजिये, क्योंकि आप संसार में कितने सफल होंगे यह इसी बात यह निर्भर करता है कि आप अपने शरीर और दिमाग को कितना तैयार करते हैं।
भारत की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के सुझाव
1 भारत में कारोबारों को आकर्षित करना
सद्गुरु: अगर हमें भारत के बाजारों और उद्योगों को उनकी जगह वापस दिलानी है तो हमें विदेश से काफी ज्यादा निवेश की ज़रूरत होगी। इस समय यह एक अच्छा अवसर है क्योंकि काफी कारोबारी हमारे पड़ोसी देशों में से बाहर निकल रहे हैं। उन्हें इन देशों की अर्थव्यवस्था पर काफ़ी भरोसा था जो अब टूट गया है। जापान ने अपनी कई कंपनियों को पहले ही वहाँ से बाहर निकलने के लिये करोड़ों डॉलर देने की बात कही है और मुझे विश्वास है कि अमेरिका इससे भी कुछ ज्यादा करेगा।
दुनिया की 300 से भी ज्यादा कंपनियां, अगर पूरी तरह से नहीं तो कम से कम आंशिक रूप से, नये घर ढूंढ रही हैं, या ऐसा करने के लिये सोच रहीं हैं। ये एक बड़ा अवसर है और भारत इसका फायदा लेने के लिये अच्छी परिस्थिति में है। इसके लिये हमारे कारोबारों, उद्योगों और सरकार को एक जबरदस्त प्रयास करना होगा। मुझे विश्वास है कि सरकार भी इस बारे में बहुत जागरूक है पर हम कितनी कुशलता से ये करते हैं और इस अवसर को कितनी भूख के साथ अपनी पकड़ में लेते हैं, इसी पर हमारी सफलता आधारित होगी। अगर ये 300 कंपनियां, भले ही आंशिक उत्पादन के लिये, भारत आती हैं और अगर हम इन्हें हमारे 28 राज्यों में फैला सकें तो हम अपनी अर्थव्यवस्था को गतिशील बना सकेंगे।
2 हमारे नवीनता वाले डीएनए का उपयोग करना
सद्गुरु: हम भारतवासी हमेशा से कहते रहे हैं कि हम बड़े बदलाव करने वाले लोग हैं और इसके लिए हम अपनी ही पीठ थपथपाते रहे हैं। तो अब समय है ये दिखाने का कि हम वास्तव में कितना बदलाव ला सकते हैं। हमारी पीढ़ी ने जितनी भी चुनौतियों का सामना किया है, उनमें ये महामारी सबसे ज्यादा बड़ी है पर हम इस पर काबू पाने की काबिलियत रखते हैं। एक राष्ट्र के रूप में हमारे पास बहुत सारे फायदे हैं और भौगोलिक - राजनैतिक रूप से हम एक खास स्थिति में हैं।
दुर्भाग्य से, पिछले कई दशकों से हम एशिया सहित सारी दुनिया के आर्थिक विकास में शामिल नहीं हो पाये हैं। बहुत से एशियाई देश भी हमसे, कम से कम 25 -30 साल आगे हो गये हैं। मुझे लगता है कि समय हमें सबसे अच्छा अवसर दे रहा है, जिससे हम अगले 3 से 5 सालों में उनके स्तर के करीब पहुँच सकें।
जिस चुनौती का सामना हम कर रहे हैं, उससे निपटने के लिये हमारे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है। हम जो भी कर रहे हैं हमें उन चीजों के मूल के बारे में सोचना चाहिये। हमें नये बदलाव लाने के लिये तैयार रहना चाहिये। हम चाहे कितने भी आरामदायक महलों में बैठे हों, वहाँ से जमीन पर आने के लिये और चीजों को नये ढंग से करने के लिये हमें तैयार रहना चाहिये।
3 ग्रामीण भारत को फिर से ऊपर उठाना
सद्गुरु:आँकड़े बताते हैं कि दुनिया के सारे निवेश का 72% भाग केवल लगभग 30 शहरों में ही होता है। तो स्वाभाविक है कि दूसरे इलाकों के लोग जा कर इन शहरों में बसते हैं। भारत में यह अंदाज़ लगाया जा रहा है कि 22 करोड़ लोग ग्रामीण भागों से शहरी इलाकों में आ बसेंगे। अगर ऐसा होता है तो आप सोच सकते हैं कि इन शहरों की हालत कितनी बुरी हो जायेगी।
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अगर हमें इसको रोकना है तो निवेश को सब तरफ फैलाना होगा। अब मैनचेस्टर वाले ढंग से उद्योगों को लगाना बंद होना चाहिये। उसकी वजह से एक ही जगह पर बड़े पैमाने पर उत्पादन करने का सिस्टम शुरू हुआ, जहाँ सब कुछ एक ही जगह होता था और सभी को दूसरी जगहों से काम करने वहीं आना पड़ता था। लेकिन सभी उद्योगों को कुछ ही शहरों में इकट्ठा नहीं करना चाहिये, इसको फैलाना चाहिये। अगर हम अपने उद्योगों को देश के सभी 700 से ज़्यादा जिलों में फैलाने की बात पर ध्यान नहीं देते तो लोगों के इस भारी प्रवासन को संभालना मुश्किल हो जायेगा।
अभी, भारत की अर्थव्यवस्था ऐसी है जैसे कि वह एक बहुत संकरी मेज पर बैठी हुई हो। अर्थव्यवस्था को बड़ा करने के लिये ये कोई अच्छा तरीका नहीं है, इसको फैलना चाहिये और इसे फैलाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि इन सब को किसी ढंग से भारत के ग्रामीण भागों में ले जाना चाहिये। मैं समझता हूँ कि ये काफी ज्यादा मुश्किल है क्योंकि ग्रामीण इलाकों में अच्छी प्रतिभाओं को पकड़ना और प्रशिक्षित करना बड़ा काम है। पर अगर आप ये अभी कर लेते हैं तो ये दूर की सोच होगी। अगर ये हो जाये और 10 साल बाद कोई दूसरा वायरस या कोई और संकट हम पर आये तो हम उस परिस्थिति से ज्यादा बेहतर ढंग से निकल पायेंगे।
खेतीबाड़ी और उससे लगे हुए उद्योग एक मुख्य संभावना हैं। पेड़ आधारित खेती, जिसमें पारंपरिक फसलों के साथ ही पेड़ लगाये जाते हैं, ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिये एक बड़ा बदलाव हो सकती है। हम अब तक 69,760 किसानों को पेड़ आधारित खेती की ओर ले गये हैं, और उनकी आय 5 से 7 सालों में 300% से 800% तक बढ़ गयी है। आर्थिक संभावनायें देश के सभी भागों में फैलनी चाहियें और इस दिशा में पेड़ आधारित खेती एक महत्वपूर्ण कदम है।
4.खेतीबाड़ी में कारोबार के नए अवसर
सद्गुरु: अभी दुनिया में सिर्फ भारत ही ऐसा देश है जिसकी 60% से ज्यादा जनता ये जानती है कि मिट्टी को भोजन में बदलने का जादू कैसे किया जाता है। हम साल भर फसलें उगाने की काबिलियत रखते हैं। हमारे पास सभी तरह की मिट्टी, हर तरह की जलवायु और सभी तरह के इलाके हैं जिससे हम दुनिया की लगभग हर तरह की फसल उगा सकते हैं। अगर हम अगले 5 से 10 सालों में सही काम करें तो हम भारत को दुनिया की 'अन्न की टोकरी' बना सकते हैं, यानि सारी दुनिया को खिला सकते हैं। हमें इस पर ध्यान देना चाहिये। क्योकि इसी काम में लोगों का रोज़गार है, ज़मीन है, और इसी में भारत की धन-संपत्ति है।
5.शिक्षा में सुधार
सद्गुरु:हमारी शिक्षा व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव लाने की ज़रूरत बहुत लंबे समय से है। जिस तरह के स्कूलों को हम जानते हैं, उस सिस्टम का अब वायरस और इंटरनेट की वजह से अंत हो जायेगा।
अभी, हमारी स्कूली पढ़ाई बच्चों को सिर्फ जानकारी दे रही है, जो कि अब बेकार है क्योंकि यह युग ही सूचना का है - हर जगह सब तरह की जानकारी मिल रही है। इसे पाने के लिये आप को कोर्स की किताबों की ज़रूरत नहीं है। अब शिक्षकों को बच्चों को जानकारी देने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें अब बच्चों को प्रेरणा देने, ध्यान देना सिखाने, प्रयोग करना सिखाने की ज़रूरत है।
सबसे बड़ा खतरा अभी ये है कि हमारे पास बहुत सारे ऐसे युवक हैं जो अपना रवैया तो एक पढ़े लिखे इंसान जैसा दिखाते हैं, पर उन्हें दो और दो जोड़ना भी नहीं आता। उदाहरण के लिये, तमिलनाडु में एक नियम है कि दसवीं कक्षा तक हरेक बच्चे को हर साल पास कर देना है, चाहे वो परीक्षा पास करे या नहीं। ये एक गलत तरह की करुणा है। इसकी वजह से हमारे यहाँ बहुत सारे ऐसे बच्चे हैं जो वापस जा कर अपने खेतों में या अपने पिता के कामकाज में मदद नहीं कर सकते क्योंकि उनमें वो शारीरिक दमखम नहीं रहता, न ही उन्हें ये काम करने की इच्छा रहती है। उन्हें बस ये लगता है कि वे पढ़े लिखे हैं। अभी सारे देश में ऐसे लाखों युवक हैं। तो ये सभी तरह के अपराध, आतंक और हर तरह की गलत चीजें करने का कारण बन जाता है क्योंकि ये जवान लोग बिना किसी कौशल के, बस गलियों में भटकते रहते हैं।
हमें एक ऐसा सिस्टम बनाना चाहिये जिसमें जब बच्चा 18 साल का हो तो वो या तो यूनिवर्सिटी जाये या उसके पास रोज़गार कमाने का कुछ कौशल हो। अगर आपके पास दोनों नहीं हैं तो फिर आप को एक साल के लिये सेना में या दूसरे सुरक्षा दलों में या फिर ऐसे संस्थान में भेजा जाना चाहिये जहाँ जीवन जीने के कौशल सिखाये जाते हों। उनको ऐसा प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये जो उन्हें शारीरिक और मानसिक तौर पर चुस्त दुरुस्त करे और उनमें इतना अनुशासन भरे कि वे कोई कौशल सीखें और उसके हिसाब से काम करें।
इस तरह आप देश में बहुत सारी कुशलता विकसित कर सकते हैं। हरेक के पास पढ़ाई करने की मानसिकता नहीं होती इसलिये उन्हें यूनिवर्सिटी जाने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें दूसरी कुशलतायें, और नये-नये काम सीखने चाहियें।
उद्योगों को कुशलता की ज़रूरत होती है। वे थोड़ा लंबे समय का निवेश कर के दसवीं पास बच्चों को, अपने अपने उद्योग की ज़रूरतों के हिसाब से प्रशिक्षित कर सकते हैं। थोड़ी तकलीफ होगी पर हमें उसके लिये तैयार रहना चाहिये, तभी हम इस युवा आबादी की संभावनाओं का लाभ देश को दे सकेंगे।
6.कचरे से पैसा कमाना
सद्गुरु:भारत में कुछ शहरों को छोड़ दें तो अधिकतर शहर कोई अच्छे ढंग से, योजना बना कर नहीं बसाये गये हैं - सैकड़ों सालों के दौरान वे अस्तव्यस्त ढंग से बढ़े हैं। इसके कारण सफ़ाई व्यवस्था एक बहुत बड़ी चुनौती है। अगर हमें इसे ठीक करना है तो एक महत्वपूर्ण बात यह है की औद्योगिक और घरेलू कचरे को अलग-अलग किया जाना चाहिये।
अभी, प्रदूषण फैलाने वाले ज्यादातर उद्योगों के लिये देश में ये कानून है कि वे अपने ट्रीटमेंट यंत्र लगायें। ये हमारी सबसे बड़ी गलती रही है क्योंकि ये यंत्र सिर्फ उसी दिन काम करते हैं जब निरीक्षण के लिये अधिकारी आते हैं। तो ये बहुत महत्वपूर्ण है कि कचरा सफाई और निकास के उद्योग को इस तरह बढ़ाया जाये कि आप का कचरा मेरे लिये मूल सामग्री का काम करे, मुझे कारोबार दे। तब मैं ये सुनिश्चित करूँगा कि मेरे लिये कचरा हमेशा आता रहे और उसे ठीक करने का मेरा कारोबार हमेशा चलता रहे। आप इस कचरा सफाई और निकास उद्योग को काफी आकर्षक बना सकते हैं।
घरेलू कचरे के लिये, जिस तरह से आप के द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे पानी, बिजली की आपको कीमत चुकानी पड़ती है, वैसे ही आप जो कचरा निकाल रहे हैं उस पर भी आपको कीमत चुकानी पड़े ऐसा सिस्टम होना चाहिये। ये करना बहुत ज़रूरी है, नहीं तो कचरा सफाई के काम के लिये पैसा नहीं होगा। आज ऐसी बहुत सी तकनीकें हैं जिनसे कचरे को धन में बदला जा सकता है। अगर कचरे से पैसा मिले तो लोग इसे यूँ ही नहीं फेकेंगे। ये हमारे लिये कचरे को धन में बदलने की यात्रा हो सकती है।