'मिड लाइफ क्राइसिस' क्या आपको सता रहा है?
40 की उम्र के आसपास का दौर उम्र का वह पड़ाव है, जब कई बार इंसान को जीवन में खालीपन का अहसास होता है। मिड लाइफ क्राइसिस का हल आखिर है क्या? इसी जिज्ञासा को शांत किया सद्गुरु ने:
40 की उम्र के आसपास का दौर उम्र का वह पड़ाव है, जब कई बार इंसान को जीवन में खालीपन का अहसास होता है। मिड लाइफ क्राइसिस का हल आखिर है क्या?
प्रश्न: सद्गुरु, पिछले कुछ समय से जीवन में बड़ा खालीपन सा महसूस हो रहा हूं। क्या यह मिड लाइफ की परेशानियों के कारण है, जिससे हर इंसान को गुजरना होता है ?
सद्गुरु:
आपका जीवन कब परेशानियों से भरा नहीं था? आपका बचपन, किशोरावस्था, रोजगार ढूंढने का दौर - सब कुछ परेशानी ही तो था और अब आपका मिड लाइफ भी। यहां तक कि मीनोपॉज, बुढ़ापा और मृत्यु भी मुसीबत ही होंगे। ऐसे में जरा सोचिए, कब आपके जीवन में परेशानी नहीं है?
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मिड लाइफ:क्राइसिस या संतुलन
बदलाव को स्वीकार करें
जिसे आप मुसीबत कहते हैं, वह एक तरह का बदलाव है। आपको इस बदलाव को स्वीकार करना और उसके साथ रहना नहीं आता। इसीलिए आप उसे मुसीबत कह रहे हैं। अगर आप बदलाव नहीं चाहते, तो या तो आपको कब्र की तरफ जाना होगा या बुद्ध बनना होगा। नहीं तो जब तक आप जीवन की भौतिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं, तब तक यहां सब कुछ परिवर्तनशील है। इस पल आप सांस लेते हैं, तो दूसरे ही पल उसे छोड़ते हैं। यह परिवर्तन ही तो है। जब आप बदलाव का विरोध करते हैं, तो दरअसल आप जीवन की मौलिक प्रक्रिया का विरोध कर रहे होते हैं। ऐसा करने से आप तमाम तरह की परेशानियों को न्योता देते हैं।
जीवन में परिस्थितियां है। कुछ परिस्थितियों का सामना करना हम जानते हैं, तो कुछ का नहीं। अगर आपको जीवन में आने वाली हर समस्या का समाधान पहले से ही पता हो, तो आप बोरियत से ही मर जाएंगे। अगर आप यह नहीं जानते कि आने वाली समस्याओं का सामना कैसे करना है - तो आपको थोड़ा उत्साहित होना चाहिए। लेकिन आपको तो इसमें परेशानियां नजर आती हैं।
तो यहां दो ही विकल्प हैं - बोरियत या संकट। अपने जीवन को आप इतना मनहूस न बना लें कि आपके हाथ से दोनों ही विकल्प निकल जाएं। अगर आप किसी स्थिति को संभाल नहीं पा रहे, तो वही समय है - अपने शरीर, दिमाग, भावनाओं और ऊर्जा को बेहतरीन तरीके से सुनियोजित करना का। लेकिन आप अपने इन सभी पहलुओं को सुनियोजित करना नहीं चाहते, क्योंकि ये कंक्रीट का ऐसा ढ़ांचा बन चुके हैं जो बदलाव नहीं चाहता। कंक्रीट का यह ढ़ांचा अपने उसी आकार में जीवन के हर पहलू से गुजरना चाहता है। पर जीवन ऐसे नहीं चलता।
मिड लाइफ: मुसीबत नहीं बदलाव
आप चालीस साल के हैं और अब भी आप उसी तरह जीना चाहते हैं, जैसे आप अठारह साल की उम्र में जीते थे। तब तो आपको चालीस की उम्र समस्या लगेगी ही। समस्या जैसी कोई चीज नहीं है। जीवन में सिर्फ परिस्थितियां होती हैं। जीवन में बदलाव होता ही रहेगा। अब सवाल यह है कि जीवन आपके अनुसार बदलेगा या अपने आप ही ऊटपटांग ढंग से बदलता रहेंगा।
चाहे यह जिस भी तरह से बदले लेकिन जड़ता से तो बेहतर ही होगा। क्योंकि मानव जीवन जड़ता सहन नहीं कर सकता। मिड लाइफ क्राइसिस का मतलब केवल यह है कि मेरा जीवन रूक गया है। सब कुछ वैसा का वैसा ही है। वही घर, वही रसोई, वही पति, ये सभी वैसे ही लगते हैं। 'सब कुछ वैसा ही है’ यह सोच आपके दिमाग की उपज है। जबकि गौर करें तो हर दिन, हर पल जीवन में बदलाव हो रहे हैं। आपके शरीर, दिमाग व हर चीज में बदलाव हो रहे हैं। लेकिन जीवन के इस बदलाव को देखने के लिए आपके पास आंखें नहीं हैं।
अभी इस उम्र में आपको जो भी मुसीबत या खालीपन महसूस हो रहा है, वह पूरी तरह से आपके दिमाग और भावनाओं की उपज है। इस मुसीबत को प्रकृति, सृष्टि या सृष्टिकर्ता ने पैदा नहीं किया, इसे आपने ही रचा है। अगर आप ये बात नहीं समझते, तो आप अपने लिए एक के बाद एक मुसीबत पैदा करते जाएंगे। अगर आपने यह समझ लिया कि ये मुसीबत आप खुद ही गढ़ रहे हैं, तो आपको इन्हें रोकने की जरूरत नहीं पड़ेगी, ये अपने आप ही गायब हो जाएंगी।