परिवार में रहते हुए कैसे पाएं आत्म-ज्ञान?
बहुतों की चाहत तो होती है कि वे आत्म अनुभूति के लिए आगे बढ़ें, लेकिन इसके उन्हें अपना परिवार एक बाधा लगता है। तो क्या बिना पारिवारिक जीवन छोड़े ऐसा संभव है? जानते हैं सद्गुरु का उत्तर
प्रश्न: सद्गुरु, मैं अपने रोजमर्रा के सामान्य जीवन का त्याग कर, ‘मैं’ को समझने के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित करना चाहता हूँ। परंतु जैसे ही परिवार का ख्याल मन में आता है, सब कुछ कहीं पीछे छूट जाता है। मैं इन बातों के बीच संतुलन कैसे ला सकता हूँ?
सद्गुरु: तो आपका परिवार आपके झूठे ‘आप’ के साथ जी रहा है। कितनी खतरनाक बात है!
जब लोग ‘आत्म-ज्ञान‘ शब्द के बारे में सुनते हैं, तो संभव है कि वे अपने मन में सबसे पहले, किसी हिमालय की गुफा की छवि बनाते हों। मैं किसी ऐसी चीज़ के बारे में बात नहीं करना चाहता जो अभी आपके अनुभव में नहीं है।
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दुर्भाग्य से दुनिया में धर्म और आध्यात्मिकता के नाम पर यही हो रहा है। ईश्वर लोगों के जीवन में सक्षमता बढ़ाने की वजह नहीं बन रहे, बल्कि उनकी अक्षमता बढ़ाने का कारण बन रहे हैं। लोगों को लगता है कि ईश्वर ही उनके भोजन, उनकी जीवन-यापन, उनकी सेहत और व्यवसाय का ध्यान रखेंगे। इसलिए खुद को जानने के लिए हम किसी रहस्यमयी तरीके की बात नहीं करते हैं। आइए हम इसके लिए सबसे व्यावहारिक तरीके की बात करते हैं, जिसके जरिए खुद को जाना जा सकता है।
“मैं” रुपी मशीन को जानना होगा
अगर आप किसी भी चीज का इस्मेमाल करना चाहते हैं, मान लेते हैं कि आप मोटरसाइकिल या कार चलाना चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि आप पहले उस मशीन के बारे में अच्छी तरह जान लें। जितनी अच्छी तरह से आप उस मशीन को जानेंगे, आप उतनी अच्छी तरह से उसे संभाल पाएंगे। चाहे कार हो या कंप्यूटर या आपका फ़ोन, आप जिस भी चीज़ का इस्तेमाल कर रहे हैं, अगर आपको उसके बारे में बेहतर जानकारी होगी तो आप उसका उतना ही बेहतर प्रयोग कर सकेंगे।
यही चीज़ आप अपने बारे में क्यों नहीं समझते? जीवन के इस अंश को, जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं, आप जितना जानेंगे, आपके लिए इसे संभालना और इस तक पहुंचना उतना ही सहज हो जाएगा। दूसरे शब्दों में, आत्म-ज्ञान एक तरीका है - जीवन के इस अंश को, आपकी अभी की समझ की तुलना में, काफी बेहतर तरीके से समझने का। हो सकता है आप अपनी विचार प्रक्रिया को जानते हों, अपने व्यक्तित्व और भावनाओं को जानते हों - हो सकता है कि आपने पहले से ही अपना मनोविश्लेषण कर रखा हो - परंतु आप जीवन की इस प्रकृति के बारे में अब भी कुछ नहीं जानते कि यह कहां से आया, कहां इसे जाना है, इसकी प्रकृति क्या है। अगर आप उस मशीन के बारे में कुछ नहीं जानते, जिसे आप इस्तेमाल में ला रहे हैं, तो आप इसका इस्तेमाल बस संयोगवश ही कर सकेंगे।
खुद को नहीं जाना, तो जीवन संयोग वश चलेगा
इस बात पर गौर कीजिए कि आप जीवन के इस अंश के बारे में क्या जानते हैं? जब आप संयोगवश जीते हैं और एक संयोग की तरह ही यहां मौजूद रहते हैं, तो आप एक ऐसी विपदा हैं – जो कभी भी घट सकती है। भले ही आप विपदा बनें या न बनें पर आपमें एक संकट बनने की पूरी क्षमता है। अगर आप एक संभावित विपदा की तरह हैं तो आपके लिए बेचैनी और भय के साथ जीना बहुत ही स्वाभाविक होगा। और इसी तरह आप जी भी रहे हैं।
आत्म-बोध होना ही चाहिए
आत्म-बोध को कोई ऐसी विचित्र सी चीज़ न मानें, जिसे कुछ योगी हिमालय की गुफाओं में पाते हैं। यह ऐसा नहीं है। बस अगर आप जीवन को एक खास तरह की सहजता के साथ जीना चाहते हैं, तो आपको जीवन के इस अंश को अच्छी तरह समझना होगा।