अपनी प्राण ऊर्जा को सुखद कैसे बनाएं?
सद्गुरु हमें एक सरल तरीका बता रहे हैं, जिससे किसी भी आनंदमय अनुभव की मिठास को हम अपने प्राणों तक पहुंचा सकते हैं। ऐसा करने पर हमारी प्राण ऊर्जा में मिठास का गुण आ जाता है।
सिर्फ भीतरी अनुभव का महत्व है
एक अमीर आदमी मर गया तो पड़ोसी ने शंकरन पिल्लै से पूछा, ‘वह अपने पीछे क्या छोड़ गया?’ शंकरन पिल्लै ने हंसते हुए कहा, ‘एक-एक पैसा।’
अभी ज्यादातर इंसानों को अपने जीवन में थोड़ी भी शांति या आनंद का अनुभव करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। चलिए, हम एक तकनीकी नजरिये से जानते हैं कि लोगों ने इसे अपने एक गुण की तरह क्यों नहीं अपनाया है। हम दार्शनिक, काव्यात्मक या रूमानी तरीके से नहीं, तकनीकी स्तर पर इसे समझना चाहते हैं, क्योंकि तकनीक के मामले में आपको बस उसका इस्तेमाल सीखना पड़ता है, वह आपके लिए कारगर होगा, चाहे आप कोई भी हों। कविता ज्यादातर लोगों के दिमाग के ऊपर से निकल जाती है। रोमांस अक्सर क्षणिक होता है। मगर तकनीक भरोसेमंद होती है।
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कैसे पैदा होते हैं अनुभव?
जीवन के सभी अनुभव हमारे अंदर कैसे आते हैं? जब आप ठंडी हवा में सांस लेते हैं, तो आपको कैसे पता चलता है कि वह ठंडी है? जब भी आप किसी चीज को छूते, सूंघते, चखते या सुनते हैं, तो मुख्य रूप से पहले वह आपकी इंद्रियों को स्पर्श करता है। वहां से आपका न्यूरोलॉजिकल सिस्टम तुरंत उसे आपके ब्रेन में ले जाता है और प्रिय या अप्रिय अनुभव पैदा होता है। यह मधुरता या अप्रियता सिर्फ बाहरी नतीजा नहीं होता। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि उस खास पल में आप किस स्थिति में हैं। जैसे अगर आप निराश और खराब मूड में हैं और कोई अच्छा संगीत बजाता है, तो आप और भी क्रोधित हो जाएंगे। सुखद संगीत का एहसास हमेशा आनंदमय नहीं होता, आपको उसके लिए तैयार होना होता है।
न्यूरोलॉजिकल मधुरता तब होती है, जब - उदाहरण के लिए आप सूर्योदय देखते हैं। एक खास इंद्रिय बोध होता है, वह न्यूरोलॉजिकल सिस्टम के जरिये ट्रांसमिट होता है और एक खास अनुभव पैदा करता है। आम तौर पर लोग एक पल के लिए ‘वाह’ कहते हैं, और तेजी से अगली चीज पर बढ़ जाते हैं।
प्राण ऊर्जा के स्तर तक कैसे पहुंचाएं अनुभव को?
ज्यादातर लोग लंबे समय तक किसी अनुभव को पकड़ कर नहीं रख पाते, इसलिए वे कभी ऊर्जा के स्तर पर मधुरता कायम नहीं कर पाते।
तो मान लीजिए आप सूर्योदय देखने के बाद एक पल के लिए बहुत अच्छा महसूस करते हैं, इसका मतलब है कि आप इंद्रियजनित या न्यूरोलॉजिकल मधुरता का अनुभव करते हैं। उसे अपनी जीवन ऊर्जा का एक हिस्सा बनाने के लिए, आपको कुछ समय के लिए उस मधुरता को बनाए रखना होगा। इसे सही-सही नहीं नाप पाने के कारण मैं कहूंगा कि वह न्यूरोलॉजिकल आवेगों से सौ गुना धीमी गति से ऊर्जा प्रणाली से गुजरती है। आम तौर पर अगर आप किसी भी खूबसूरत अनुभव को, ‐ चाहे वह स्वाद हो, गंध, दृश्य, ध्वनि या स्पर्श हो, ‐चौबीस मिनट तक कायम रख पाएं, तो वह आपके संपूर्ण प्राण तत्व में व्याप्त हो जाएगा।
चौबीस मिनट कायम रखें मिठास को
मन चेतना की एक खास क्रिया है। चेतना आपकी इकठ्ठा की गई कार्मिक सूचना के आधार पर कार्य करती है। या दूसरे शब्दों में चेतना उन इंद्रियजनित भावनाओं के आधार पर काम करती है, जो आपने बाहर से इकठ्ठा की हैं। अगली बार जब आप सुबह जल्दी उठें, तो बस सूर्योदय देखें, यह न कहें कि ‘वाह, मुझे यह बहुत पसंद है’ या उसकी तस्वीर लेकर दस और लोगों को भेजें। ऐसा कुछ न करें। हर जगह अलग-अलग समय पर सूर्योदय हो ही रहा है, इसे सोशल मीडिया पर डालने की कोई जरुरत नहीं है।
किसी सुखद अनुभव को पैदा करने में बहुत सी चीजें शामिल होती हैं,जैसे कार्मिक सूचना, एक खास तरह का उद्दीपन और एक खास रसायन। मैं इन चीजों के विस्तार में नहीं जाऊंगा। आपको मधुरता की एक खास अवस्था में लाना आसान नहीं है। इसके लिए बहुत सी शर्तें पूरी करनी पड़ती हैं। आपके पति या पत्नी को आपकी उम्मीदों के हिसाब से चलना पड़ता है, आपके बच्चों को स्कूल में बहुत बढिय़ा प्रदर्शन करना पड़ता है, आपका बैंक बैलेंस बहुत तगड़ा होना चाहिए, स्टॉक मार्केट को ऊपर की ओर जाना चाहिए, ‐ बहुत सारी चीजें। सुबह का सूर्योदय ज्यादातर लोगों के लिए काफी नहीं होता। जब ये पहलू एक समय में एक आनंदमय अनुभव पैदा करते हैं, तो आपको उसे किसी भी तरह चौबीस मिनट तक कायम रखना चाहिए।
मधुरता को कुछ समय थामना होगा
ज्यादातर इंसान आनंदित होना इसलिए भूल गए हैं क्योंकि वे मामूली चीजों पर ध्यान नहीं देते।
अगर आप किसी इंद्रियजनित अनुभव की मधुरता को कुछ समय तक रोककर रख सकते हैं, तो वह न्यूरोलॉजिकल सिस्टम से आपके प्राणमय कोष या ऊर्जा प्रणाली में चला जाता है। एक बार प्रेम, आनंद या परमानंद के रूप में मधुरता के प्राणमय कोश में जाने के बाद वह जीवन ऊर्जा का गुण बन जाता है जो आपके शरीर में व्याप्त हो जाता है। आपके जीवन ऊर्जा के सुखद हो जाने के बाद आप कुदरती तौर पर आनंदित हो जाते हैं। आपको आनंदित होने के लिए कुछ करना नहीं पड़ता। आनंद अपने आप में कोई लक्ष्य नहीं है ‐ वह आपकी प्रकृति है।