सिकंदर (अलेक्जेंडर द ग्रेट) की जीवनी
मृत्य से भय और अमरत्व की चाह आदि काल से मानव स्वभाव का हिस्सा रही है। सिकंदर महान अमर बनना चाहता था। अलेक्जेंडर की कहानी के जरिए सद्गुरु, जीवन और मृत्यु के संबंधों को समझा रहे हैं।
मानव मन की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह मृत्यु के खिलाफ है। आप जिस पल मृत्यु को नकारते करते हैं, उसी के साथ ज़िंदगी को भी नकार देते हैं। मृत्यु भविष्य नहीं है। जन्म के साथ ही आधी मृत्यु हो जाती है। आधा तो हो चुका है, आधा ही होना बाकी है। यहां आप हर पल जिस तरह जी रहे हैं, जिस प्रक्रिया से गुज़र रहे हैं, उसे ‘जीवन’ भी कह सकते हैं और ‘मृत्यु’ भी। यह एक प्रक्रिया है जो चल रही है, बस इसे एक दिन पूरा हो जाना है। लेकिन ‘मृत्यु’ शब्द ही लोगों को बहुत डरा देता है।
आप कह सकते हैं ‘अरे, ऐसा क्यों? अभी मेरी ज़िंदगी बहुत सुंदर है’। चाहे वह कितनी भी सुंदर क्यों न हो – यह घटित होना ही है। आपने सिकंदर महान का नाम सुना होगा। सिकंदर अपने अहंकार के चरम पर था। इस दुनिया में सबसे अहंकारी लोगों को महान बताया गया है। आप जितने अहंकारी होते हैं, जीवन-प्रक्रिया के उतने ही विरोध में होते हैं। जो भी सबसे ज्यादा टकराव पैदा करता है, वह धरती का महानतम व्यक्ति होता है। क्या आज भी ऐसा नहीं होता? जो लोग आराम से गुज़र जाते हैं, उनके बारे में कोई नहीं जानता।
सिकंदर की कहानी
अगर आप मुड़ कर देखें तो दुनिया में हर कोई, अगर वह तीसरी-चौथी कक्षा तक भी स्कूल गया होगा, वह सिकंदर के बारे में जानता होगा। लेकिन गौतम बुद्ध के बारे में कितने लोगों ने सुना है, या किसी और ऐसे व्यक्ति के बारे में जिसने मानव जाति की भलाई के लिए बहुत काम किया हो? गौतम कम से कम इतिहास की किताबों में फुटनोट में मिल जाते हैं, इसलिए नहीं कि वह बुद्ध थे, बल्कि इसलिए कि वह एक राजा थे और उन्होंने अपना राज्य और धन-दौलत त्याग दिया था। लोग समझ नहीं पाए कि वह क्या कर रहे हैं, इसलिए लोगों को लगा कि वह जरूर महान होंगे। उनकी महानता राज्य त्यागने में नहीं है।
इसलिए सिकंदर जिस तरह अपने जीवन में बाकी मूर्खतापूर्ण चीजों की चाह रखता था, उसी तरह वह अमरता चाहता था। क्योंकि वह अपनी ताकत से पूरी दुनिया को जीतना चाहता था। वह उस समय तक आधी दुनिया को बहुत निर्मम तरीके से जीत चुका था और अब वह अधीर हो रहा था क्योंकि उसे लग रहा था कि अपनी योजना पूरी करने के लिए उसे और अधिक समय की जरूरत है। इसलिए उसे अमरता की तलाश थी जिसके लिए वह स्वाभाविक रूप से भारत की ओर आया। हिंदूकुश पर्वत पर उसे एक योगी मिले जो ध्यान की गहरी अवस्था में बैठे हुए थे। सिकंदर जैसे लोगों में कोई विवेक नहीं होता, इसलिए उसने जाकर योगी का ध्यान भंग कर दिया।
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सिकंदर और योगी की मुलाक़ात
उसने पूछा, ‘लोग कहते हैं कि भारत में योगी हजारों साल तक जीवित रहते हैं। वे अमरत्व पा चुके हैं। क्या तुम मुझे अमरता सिखा सकते हो? उसके बदले तुम जो चाहो, मैं तुम्हें दे सकता हूं’। योगी ने पूछा, ‘तुम्हारे पास क्या है?’ उसने अपने सिपाहियों से सभी लूटे हुए रत्नों, हीरे-मोतियों और स्वर्ण से भरे हुए बड़े-बड़े संदूक लाने को कहा। उन्हें खोलते हुए बोला, ‘यह रहा, पूरी दुनिया की दौलत यहां है’। योगी हंसते हुए बोले, ‘तुम तो मिट्टी से चीजें उठाते रहे हो’।
ये सभी रत्न और सोना सिर्फ मिट्टी है। तुमने पता नहीं क्यों इसे इतना कीमती समझ लिया है। तुमने उस मिट्टी की कीमत नहीं समझी, जिस पर तुम चलते हो, जो तुम्हें रोज़ाना भोजन देती है। लेकिन एक पत्थर जिसे तुम ‘हीरा’ कहते हो, जो किसी काम का नहीं है, वह बहुत कीमती हो गया है। मैं तुम्हें यह बात समझाना चाहता हूं- तुम्हारे हीरे इसलिए कीमती नहीं हैं क्योंकि उसमें तुम्हें बहुत सुंदरता नज़र आती है। हर कहीं फूल खिले हुए हैं जो किसी हीरे से ज्यादा खूबसूरत हैं। उनमें खुशबू भी है, तुम्हारी नज़र उन पर नहीं पड़ती। लेकिन हीरा बहुमूल्य है, इसलिए नहीं कि तुम्हें उसमें कोई खूबसूरती दिखती है। असल में हीरे खूबसूरत हैं ही नहीं। उन्हें जिस तरह से तराशा जाता है, उससे वे चमकते हैं और इस तरह दिखते हैं। लेकिन तुम्हें सिर्फ इस बात से खुशी मिलती है कि वह हर किसी के पास नहीं है। यह खुशी नहीं है, यह एक तरह की बीमारी है। ऐसा सिर्फ इसलिए होता है क्योंकि तुम्हारे मन ने मौत को नकार दिया है।
मृत्यु को करें पल-पल स्वीकार
अगर तुम लगातार, पल-पल, जीवन की प्रक्रिया के रूप में मृत्यु को स्वीकार कर लेते, तो तुम्हारे जीवन मूल्य बिल्कुल अलग होते। अगर तुम्हें पता होता कि जिस तरह फूल सुबह खिलता है और शाम को मुरझा जाता है, उसी तरह अभी तुम फल-फूल रहे हो, कल सुबह हो सकता है कि तुम्हारी मृत्यु हो जाए, तो तुम रास्ते में एक भी फूल को देखने से नहीं चूकोगे।
योगी ने दिए सिकंदर को निर्देश
खैर, जब सिकंदर ने योगी को अपना सारा खजाना दिखाया, तो योगी हंसने लगे- ‘तुम इसे खजाना कहते हो? नीचे से उठाया हुआ यह कूड़ा-करकट किसी काम का नहीं है। तुम इसे खा नहीं सकते। तुम इससे कुछ नहीं कर सकते, लेकिन इसे खजाना मान कर ढोते रहते हो’। फिर सिकंदर बोला, ‘कोई बात नहीं।
सिकंदर की मृत्यु
सिकंदर ने अपना अभियान शुरू कर दिया। वह अपने सबसे बहादुर सैनिकों के एक दल के साथ उस जंगल में गया। योगी के बताए चिह्नों के मुताबिक चलते हुए उसने जंगल में वह गुफा खोजी। लेकिन अब वह नहीं चाहता था कि गुफा में कोई और भी जाए। वह नहीं चाहता था कि कोई और बेवकूफ अमर हो जाए। सिकंदर का जीवन इसलिए आगे बढ़ता है क्योंकि वह लोगों को मार सकता है। अगर हर कोई अमर हो जाए तो उसे कोई भी युद्ध लड़ने में बहुत मुश्किल होगी। इसलिए उसने सैनिकों को कुछ दूरी पर छोड़ दिया।
वह गुफा में घुसा और जलकुंड से पानी अपने हाथ में लेकर पीने ही वाला था कि कुंड के दूसरी ओर बैठा एक कौवा बोला, ‘अरे रुको, सिकंदर महान मूर्ख, रुको’। सिकंदर हैरान रह गया। कौवा कांव-कांव न कर के यूनानी भाषा बोल रहा था। उसने ऊपर देखा। कौवा बोला, ‘देखो, मैंने अमरता के इस कुंड से पानी पीया और मैं पता नहीं कब से यहां बैठा हुआ हूं। मैं हजारों साल से यहां बैठा हुआ हूं, समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूं। मैंने जीवन में सब कुछ देख लिया है। अब यहां बैठा हुआ हूं। चाहे जो भी कर लूं, मैं मर नहीं सकता, आत्महत्या तक नहीं कर सकता। मैं चिरकाल से यहां बैठा हुआ हूं। क्या तुम वाकई यही चाहते हो? कृपया पानी पीने से पहले एक बार सोच लो। मैंने इस कुंड का पानी पीने की गलती की। तुम पीने से पहले एक बार सोच लो’।
सिकंदर और कौवा की कहानी
वह कांपता हुआ वहीं खड़ा रहा। उसने कल्पना की कि 10,000 साल बाद भी वह इसी धरती पर रहेगा, वही बेवकूफाना चीजें करने की कोशिश करता रहेगा, वह नजारा कैसा होगा। उसे बात समझ आ गई। वह धीरे से वापस लौट पड़ा और कुंड से पानी नहीं पीया। वरना हमें आज भी सिकंदर को झेलना पड़ता। क्या यह खुशी की बात नहीं है कि वे सब लोग मर गए? क्या यह अच्छा नहीं है कि जो लोग मर चुके हैं, वो मर चुके हैं? आप कहेंगे ‘नहीं, नहीं, मेरे पिता तो बहुत अच्छे आदमी थे!’ अगर वह बहुत लंबे समय तक जीवित रहते, तो उन्हें झेलना भी मुश्किल हो जाता। उन्हें अपना जीवन जीकर चले जाना चाहिए, यही अच्छा होगा।
मृत्यु पर कोई शिक्षा नहीं दी जाती
इसलिए, नश्वरता या मृत्यु कोई अभिशाप नहीं है, यह सबसे बड़ा वरदान है। आप सिर्फ कल्पना करें कि आप मर नहीं सकते! आप जो भी कर लें, आप मर नहीं सकते! फिर देखिए कि वह कितना बड़ा अभिशाप होगा। जो व्यक्ति आपको प्रिय है, आप उस व्यक्ति को मरते हुए नहीं देखना चाहते, यह मैं समझता हूं। लेकिन आप खुद नहीं मरना चाहते, यह एक अभिशाप है। आपको जरूर मरना चाहिए, यह एक बहुत गरिमापूर्ण चीज है। लेकिन इस दिशा में किसी तरह की कोई शिक्षा उपलब्ध नहीं है, हम इस तरह जीते हैं मानो मृत्यु शब्द का उच्चारण करना भी वर्जित हो।
मृत्यु की आपने एक तरीके से सिर्फ कल्पना की है। आप उसके बारे में कुछ नहीं जानते, आपने बस तरह-तरह की कल्पनाएं कीं और उसके खिलाफ हो गए। क्या आपको मृत्यु की कोई व्यक्तिगत जानकारी है? मृत्यु एक ऐसी चीज है, जिसे आप विकृत नहीं कर पाए हैं। ईश्वर बहुत ही विकृत हो चुके हैं, उसके बारे में आप सब कुछ जानते हैं। आपने अपनी इच्छा के अनुसार उसे तोड़ा-मरोड़ा और ढ़ाला। मृत्यु को आप अपने तरीके से तोड़ने-मरोड़ने में असमर्थ हैं। आप उसमें कोई बदलाव नहीं कर सकते। चाहे आप कितनी भी कल्पनाएं कर लें, कितनी भी किताबें पढ़ लें, कितने भी दर्शन सुन लें। अगले ही पल जब मौत आपके दरवाजे पर दस्तक देगी, तो आप पाएंगे कि उसके बारे में आप कुछ भी नहीं जानते। ज़िंदगी की हकीकत यही है।
मृत्यु आपके जीवन की इकलौती ऐसी चीज है जो निश्चित है। आपके जीवन में क्या होगा, क्या नहीं होगा, यह हम नहीं जानते। जीवन लगातार अनिश्चित है। मृत्यु सौ फीसदी निश्चित है। उसके बारे में कोई संदेह न करें। जीवन को लेकर आपको लाखों शंकाएं हो सकती हैं। ‘मैं अमीर बनूंगा या नहीं?’‘मैं शिक्षित हो पाऊंगा या नहीं’‘मुझे ज्ञान मिलेगा या नहीं?’ सवालों की भरमार है। मृत्यु को लेकर कोई प्रश्न नहीं है। यह सौ फीसदी तय है। निश्चित की बजाय आप अनिश्चित पर भरोसा करते हैं। आध्यात्मिक प्रक्रिया तभी शुरू होती है, जब आप अपनी मृत्यु के बारे में जागरूक होना शुरू करते हैं।