सद्गुरु, आप एक खास तरह से क्यों बैठते हैं?
दिल्ली के एसआरसीसी कॉलेज में सद्गुरु से प्रश्न पूछा गया कि वे एक ख़ास तरीके से क्यों बैठते हैं। सद्गुरु हमें उनके बैठने के तरीके के फायदों के बारे में बता रहे हैं।
प्रश्नकर्ता: सद्गुरु ऐसा क्यों है कि आप जहां भी जाते हैं, एक खास मुद्रा में बैठते हैं? बाएं पैर से सैंडल उतार कर, बायां पैर ऊपर करके और दाहिना पैर जमीन पर रखते हुए। यह आपका स्टाइल है या व्यक्ति को ऐसे ही बैठना चाहिए?
सद्गुरु: क्या आप अब भी भारतीय शैली का शौचालय इस्तेमाल करते हैं?
प्रश्नकर्ता: हां।
सद्गुरु: क्या आप एक खास तरह से बैठते हैं? क्यों? क्योंकि शरीर इसी तरह बना है। किसी विदेशी यूनिवर्सिटी ने एक अध्ययन करने के बाद कहा, ‘यह शौच करने का सबसे अच्छा तरीका है’ क्योंकि आपकी जांघें आपके पेट में धंस जाती हैं और जो कुछ बाहर आना है, वह बाहर आ जाएगा। अगर जिसे बाहर आना है, वह बाहर नहीं आता तो वह धीरे-धीरे आपके सिर तक पहुंच जाएगा।
हठ योग का लक्ष्य – ब्रह्माण्ड की ज्योमेट्री से तालमेल बनाना
योगिक विज्ञान में हमने महसूस किया है कि कुछ खास तरह की शारीरिक मुद्राएं कुछ गतिविधियों के लिए सबसे मददगार होती हैं। या दूसरे शब्दों में जिसे हठ योग कहते हैं, या फिर शारीरिक आसन, का मकसद शरीर को इस रूप में ढालना है कि आप एक खास ज्यामितिय सटीकता(तालमेल वाली ज्योमेट्री) को पा सकें। आपकी ज्यामिति, ब्रह्माण्ड की अधिक बड़ी ज्यामिति के तालमेल में आ जाती है, ताकि आप हमेशा तालमेल में रहें, वह कभी नहीं बिगड़े।
आप कितने संतुलित हैं, कितनी स्पष्टता से चीजों को देखते हैं और कितनी अच्छी तरह चीजों को करते हैं, यह इससे तय होता है कि आप कितने तालमेल में हैं। आप लोगों, पेड़ों, जीवन या अपने आस-पास की जगह के कितने तालमेल में हैं, इससे तय होगा कि आप दुनिया में कितनी सहजता से और बिना टकराव के काम करते हैं।
बाएँ पैर की एड़ी – एकिलीज़ – का ख़ास महत्व है
मैं हर समय इस तरह नहीं बैठता - सिर्फ जब मैं बोलता हूं तब बैठता हूँ। सिद्धासन एक आसन होता है। उसके कई पहलू हैं। एक सरल पहलू यह है कि बाईं एड़ी पर एक बिंदु है, जिसे मेडिकल साइंस में ‘एकिलीज़’ कहते हैं। आपने उस व्यक्ति के बारे में सुना है?
आप अपनी एकिलीज़ को अपने शरीर में अपने मूलाधार या पेरिनियम से सटा कर रखते हैं। इन दोनों के आपस में छूने से आपके अंदर कई पहलू स्पष्ट हो जाते हैं। आपके विचार स्पष्ट होते हैं, आपकी भावनाएं अड़चन नहीं बनतीं और आपको बहुत स्पष्ट बोध होता है कि आपके आस-पास क्या हो रहा है।
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आपने सुना है कि एकिलीज़ अपनी एड़ी में बाण लगने से मारा गया। क्या आप विश्वास करते हैं कि एड़ी में चोट लगने से कोई मर सकता है? मगर अकिलीज इसी तरह मरा। और उससे पहले भारत में एक और व्यक्ति की मौत इस तरह हुई थी – कृष्ण की। इसका मतलब आपको यह बताना है कि उन्हें बहुत विशेषज्ञता के साथ मारा गया, सिर्फ गला काटते या सिर फोड़ते हुए नहीं। बस एकिलीज़ पर निशाना लगाते हुए। शरीर में एक खास ऊर्जा प्रणाली है। जब आप ऐसे बैठते हैं कि एकिलीज़ का बिंदु आपके मूलाधार को छूता है, तो ऐसा संतुलन बनता है कि आप कोई पक्षपात नहीं करते।
कभी कोई राय न बनाना जरुरी है
हम सब की अपनी राय, विचार और विचारधाराएं होती हैं। जीवन के आपके अनुभव और आपके मन पर पड़ने वाली छाप उस हर चीज पर असर डालते हैं जिसे आप देखते हैं। आपको यह पसंद है, वह पसंद नहीं है, आप उस व्यक्ति से प्रेम करते हैं, इस व्यक्ति से नफरत करते हैं – यह सब इसलिए है क्योंकि आप लगातार अपनी एक राय बनाते रहते हैं। लेकिन अगर आप वास्तव में जीवन को जानना चाहते हैं, तो सबसे महत्वपूर्ण चीज यह है कि आप कोई राय न बनाएं। आपको अपने जीवन के हर पल में हर चीज को बिल्कुल नए ढंग से देखने के लिए तैयार रहना चाहिए।
लोगों के लिए यह समझना बहुत मुश्किल है। कुछ लोग तीस साल से अधिक समय से मेरे साथ हैं जो हर दिन मेरे साथ काम करते हैं और बहुत सारी चीजें करते हैं मगर फिर भी उनके बारे में मेरी कोई राय नहीं है। सिर्फ जब मुझे कोई काम करवाना होता है, तो मैं उनकी काबिलियत वगैरह पर गौर कर सकता हूं। लेकिन उनके बारे में मेरी एक भी राय नहीं है। अब तक आपने अपनी राय बना ली होगी, मगर मैंने नहीं क्योंकि आध्यात्मिक प्रक्रिया का सार यही है कि हम लगातार हर जीवन को एक संभावना के रूप में देखें।
हर जीवन एक संभावना है
निश्चित रूप से संभावना और वास्तविकता में एक दूरी होती है। कुछ के पास वह दूरी तय करने का साहस और लगन होगी और कुछ के पास नहीं। मगर हर जीवन एक संभावना है। अगर आप उस संभावना को खुली रखना चाहते हैं तो आप कभी किसी के बारे में किसी तरह की कोई राय कायम नहीं करेंगे।
अच्छा, बुरा, बदसूरत – आप ऐसे राय नहीं बनाते, आप बस इस समय उनकी ओर देखते हैं। इस पल वे कैसे हैं, बस यही मेरे लिए मायने रखता है। आप कल कैसे थे, इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। आप कल कैसे होंगे, देखते हैं। कल का निर्माण करना चाहिए, उसे अभी से ठोस रूप नहीं दिया जाना चाहिए।
योग का लक्ष्य है – सही ज्योमेट्री
यह शरीर की एक खास ज्यामिति है। अभी, पश्चिमी संस्कृतियां प्रचारित कर रही हैं, ‘योग एक स्ट्रेचिंग अभ्यास है, उसकी बजाय आप पिलाटेस, बॉक्सिंग, टेनिस... कर सकते हैं।’ अगर आप बस फिट होना चाहते हैं, तो कहीं जाकर दौडि़ए, पहाड़ पर चढि़ए, टेनिस खेलिए या कुछ और कीजिए। योग का मकसद फिटनेस पाना नहीं है। फिटनेस उसका बस एक परिणाम है। जीवन की सही ज्यामिति(ज्योमेट्री) को पाना महत्वपूर्ण है क्योंकि भौतिक ब्रह्मांड ज्यामिति ही है।
कोई इमारत आज हमारे सिर पर गिर जाएगी या लंबे समय तक खड़ी रहेगी, यह मुख्य रूप से इस पर निर्भर करता है कि वह ज्यामितिय रूप से कितनी सटीक बनी हुई है। यही चीज शरीर, ग्रह प्रणाली, ब्रह्मांड और हर चीज़ पर लागू होती है।
शरीर की सही ज्योमेट्री होने पर आप हर स्थिति से गुजर पाएंगे
पृथ्वी सूर्य के चारो ओर इसलिए नहीं घूम रही कि उससे कोई स्टील की केबल जुड़ी है बल्कि ज्यामिति(ज्योमेट्री) की सटीकता के कारण यह होता है। छोटी सी ज्यामितिय त्रुटि हुई और वह हमेशा के लिए नष्ट हो जाएगी, यही चीज आपके लिए भी सच है। अगर आप अपनी मूलभूत ज्यामिति से हट जाते हैं, तो आप खत्म हो जाएंगे।
यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप छोटी उम्र में ही सही चीजें करें ताकि ज्यामिति की सही समझ आ पाए। फिर आप जीवन से गुजरने में सक्षम हो जाएंगे। जो लोग सोचते हैं कि उनके साथ सिर्फ अच्छी चीजें होनी चाहिए, वे साफ तौर पर जीवन के लिए अनुपयुक्त(फिट नहीं) हैं क्योंकि अगर आप कठोर स्थितियों से खुशी-खुशी गुजरना नहीं जानते तो आप सभी संभावनाओं से दूर भागेंगे। आप सिर्फ इसलिए जीवन की सभी महान संभावनाओं से चूक जाएंगे क्योंकि आप थोड़ी सी कठिनाई से बचना चाहते हैं। जब आप ज्यामितिय(ज्योमेट्री) रूप से तालमेल की एक अवस्था में होते हैं, तब आप किसी भी स्थिति से गुजरने को तैयार रहते हैं, चाहे वह जो भी हो।
संपादक का नोट : चाहे आप एक विवादास्पद प्रश्न से जूझ रहे हों, एक गलत माने जाने वाले विषय के बारे में परेशान महसूस कर रहे हों, या आपके भीतर ऐसा प्रश्न हो जिसका कोई भी जवाब देने को तैयार न हो, उस प्रश्न को पूछने का यही मौक़ा है! - unplugwithsadhguru.org