व्यक्ति और ब्रह्माण्ड का मिलकर एक हो जाना ही योग है
सद्गुरु से योग के मार्ग पर चलने के सही तरीके के बारे में पूछा गया। सद्गुरु बता रहे हैं कि योग का अर्थ है अपने व्यक्तित्व की सीमाओं को मिटाना और खुद को ब्रह्माण्ड के साथ एकाकार कर देना।
प्रश्न : योग के बारे में इतनी सारी बातें की जाती हैं पर वाकई योग के मार्ग पर चलने का क्या तरीका है?
सद्गुरु : योग कोई व्यायाम की प्रणाली नहीं है, जैसा कि आज सामान्य रूप से समझा जाता है। 'योग' का शाब्दिक अर्थ है 'जुड़ना' या 'मिलना'। लेकिन आप के अपने अनुभव में एक आप हैं और एक ब्रह्माण्ड है। जब किसी भी कारण से जीवन में थोड़ी भी कड़वाहट आ जाती है या कुछ गड़बड़ हो जाती है, तो फिर आप की स्थिति 'आप विरुद्ध ब्रह्माण्ड' की हो जाती है। आप एक गलत प्रकार के मुकाबले में उतर जाते हैं। मनुष्यों की जो भी समस्यायें हैं -- उनके डर, उनकी असुरक्षा की भावना -- वे इसलिये हैं क्योंकि वे इस तरह से जीते हैं जैसे सारा ब्रह्माण्ड उनके विरुद्ध हो। योग का अर्थ है कि आप जागरूकतापूर्वक अपनी व्यक्तिगतता की सीमाओं को मिटाते हैं। सिर्फ विचारों और भावनाओं में नहीं, बल्कि वास्तविक रूप से, अपने अनुभव में। आप व्यक्ति और ब्रह्माण्ड को एकरूप कर देते हैं।
चार आयामों को विकसित करने से ये गुण आता है
तो योग, कोई सुबह शाम किया जाने वाला अभ्यास नहीं है। हाँ, इसमें अभ्यास हैं लेकिन अभ्यासों के अलावा भी इसके अन्य आयाम हैं। आप के जीवन का हर पहलू -- जिस तरह से आप चलते हैं, सांस लेते हैं, बात करते हैं -- सभी कुछ उस जुड़ाव या मिलन की ओर बढ़ने की एक प्रक्रिया बन सकता है। ऐसा कोई भी काम नहीं है, जो इस प्रक्रिया का हिस्सा न बन सके। यह कोई कार्य नहीं है, यह एक विशेष गुण है। आप अगर अपने शरीर, मन, भावनाओं और ऊर्जाओं को एक ख़ास तरह से विकसित करते हैं तो आप में एक विशेष गुण आ जाता है। यही योग है।
आप अगर अपने बगीचे की देखभाल अच्छी तरह से करते हैं तो वहां फूल खिलते हैं। इसी तरह अगर आप उसकी अच्छी तरह से देखभाल करें, जिसे आप 'मैं' कहते हैं, तो फिर सुंदर फूल खिलेंगे ही। इसका अर्थ ये है कि शांत, प्रसन्न, आनंदित होना आप के बाहर की परिस्थिति पर निर्भर नहीं होगा, इन चीज़ों को आप तय करेंगे।
Subscribe
आनंदित होने के लिए एक सरल कदम
प्रश्न:कोई एक चीज़ बताइये जिसे आज से शुरू करके मनुष्य ज़्यादा आनंदित अनुभव कर सकता है?
सदगुरु: आप जब सुबह उठते हैं, तो पहली चीज़ जो आप को करनी चाहिये वह है मुस्कुराना क्योंकि यह कोई छोटी बात नहीं है कि आप सुबह उठ गये हैं। ऐसे हज़ारों लोग हैं जो कल रात सोये थे और आज सुबह उठे ही नहीं। लेकिन आप उठ गये हैं तो मुस्कुराइये, क्योंकि आप उठ गये हैं। और फिर इधर उधर देखिये, अगर वहां कोई हैं तो उन्हें देख कर भी मुस्कुराइये क्योंकि लाखों लोगों के लिये, उनका कोई प्रियजन आज सवेरे नहीं उठा। आप के जितने भी प्रियजन हैं वे सब उठ गये हैं-- वाह, आज तो बढ़िया दिन है, है न? फिर बाहर जाइये और पेड़ों को देखिए, पिछली रात वे भी नहीं मरे। अगर आप उनमें से हैं जो एक घंटे में ये सब भूल जायेंगे और जल्दी ही आप का ज़हरीला दिमाग किसी को काटना चाहेगा, तो फिर इस स्मरण प्रक्रिया को हर घंटे दोहराईये। हर एक घंटे में अपने आप को ये दवा दीजिये -- जीवित होने के मूल्य को याद करना।
आप को ये हास्यास्पद, बेतुका लगेगा पर आप इसकी वास्तविकता उस दिन समझेंगे जब आप का कोई प्रिय सुबह नहीं उठेगा। इसका महत्व समझने के लिये तब तक न रुकें। ये कोई बेतुकी बात नहीं है, ये सबसे अधिक मूल्यवान बात है -- कि आप जीवित हैं। और वे सब, जो आप के लिये महत्वपूर्ण हैं, वे भी जीवित हैं। इस बात का महत्त्व समझिये और कम से कम मुस्कुराइये! कुछ लोगों की तरफ प्रेमपूर्वक देखना सीख लीजिये।
अगर आप उनमें से हैं जो एक घंटे में ये सब भूल जायेंगे और जल्दी ही आप का ज़हरीला दिमाग किसी को काटना चाहेगा, तो फिर इस स्मरण प्रक्रिया को हर घंटे दोहराईये। हर एक घंटे में अपने आप को ये दवा दीजिये -- जीवित होने के मूल्य को याद करना।
सम्पूर्ण मनुष्य बनने के लिए – स्त्रीत्व और पुरुषत्व दोनों जरुरी हैं
प्रश्न:आप हमारी इस दुनिया में स्त्रीत्व के भविष्य के बारे में क्या सोचते हैं?
सदगुरु :पुरुषत्व और स्त्रीत्व, ये प्रकृति के दो मूल गुण हैं। ब्रह्माण्ड का भौतिक रूप दो ध्रुवों या विपरीत तत्वों के बीच होता है और इन ध्रुवों का एक आयाम पुरुषत्व एवं स्त्रीत्व है। पुरुषत्व और स्त्रीत्व से मेरा मतलब पुरुष और स्त्री से नहीं है। आप एक स्त्री हो सकती हैं पर अपने आप में, आप अधिकांश पुरुषों की तुलना में ज्यादा पुरुषत्व वाली हो सकती हैं। आप एक पुरुष हो सकते हैं पर अधिकांश स्त्रियों के मुकाबले आप में स्त्रीत्व कहीं ज्यादा हो सकता है। आज, लोगों की एक पीढ़ी के रूप में, हमारे जीवन यापन की प्रक्रिया इतनी अच्छी तरह से संगठित है जितनी पहले कभी नहीं थी। लेकिन आज भी, अर्थ व्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है और एक बार फिर से हम उसी जंगल के नियम की ओर आ गये हैं -- सबसे अधिक काबिल का ही ज़िंदा बचे रहना।
जब किसी के अन्दर जीवित रहने, या जीवन यापन का भाव बहुत मजबूत होता है तो पुरुषत्व बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि बात बचे रहने की है। क्योंकि बहुत लंबे काल तक बचे रहना ही ज्यादा महत्वपूर्ण था, इसलिए मानव जाति ने पुरुषत्व को ज्यादा महत्वपूर्ण माना। स्त्रीत्व अपने सही स्थान पर तभी आ सकता है जब समाज ने अपने जीवन यापन को अच्छी तरह से संभाल लिया हो और जब एक स्थिर संस्कृति तथा मानव सभ्यता के एक ख़ास स्तर को प्राप्त कर लिया हो।
आज, लोगों की एक पीढ़ी के रूप में, हमारे जीवन यापन की प्रक्रिया इतनी अच्छी तरह से संगठित है जितनी पहले कभी नहीं थी। लेकिन आज भी, अर्थ व्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है और एक बार फिर से हम उसी जंगल के नियम की ओर आ गये हैं -- सबसे अधिक काबिल का ही ज़िंदा बचे रहना। पुरुषत्व के गुण तथा आदर्श आजकल ज़्यादा मज़बूत हैं। आम तौर पर स्त्री प्रकृति को कमजोरी के रूप में देखा जाता है।
लेकिन अगर आप एक सम्पूर्ण मनुष्य बनना चाहते हैं तो यह बहुत ज़रूरी है कि आप के अंदर, पुरुषत्व एवं स्त्रीत्व, दोनों ही समान अनुपात में हों। अगर संगीत, कलायें, प्रेम तथा कोमलता और करुणा को उतना ही महत्व दिया जाए जितना अर्थव्यवस्था को दिया जाता है तो स्त्रीत्व फलेगा-फूलेगा। अगर ऐसा नहीं होता तो दुनिया में स्त्रीत्व के लिये कोई स्थान नहीं होगा। आप एक स्त्री होंगी पर आपमें पुरुष-प्रकृति के गुण ज़्यादा होंगे।