सूर्य क्रिया - कर्म चक्र से मुक्ति
सूर्य नमस्कार सबसे प्रसिद्द योगाभ्यासों में से एक है। क्या आप इसके स्रोत के बारे में जानते हैं? आइये जानते हैं इसके स्रोत - सूर्य क्रिया के बारे में, और इन्हीं से जुड़े एक और अन्य योगाभ्यास - सूर्य शक्ति के बारे में भी...
आज इंसान अपनी बुद्धि का इस्तेमाल बड़े ही सुस्त तरीके से कर रहा है- वह लगातार अपने स्मृतिकोश में ही डुबकी लगाता रहता है। अगर आपकी बुद्धि हर बार आपकी संचित स्मृति या यादाश्त का सहारा ले रहे हैं, तो फिर आप बस एक रीसाइकल बिन (बार-बार इस्तेमाल होने वाली चीजें) बनकर रह गए हैं। ऐेसे में आपके साथ बार-बार वही चीजें अदल-बदलकर होती रहेंगी।
आध्यात्मिक प्रक्रिया का एक अहम पहलू खुद को स्मृति कोश से अलग रखना है। कर्म दरअसल स्मृति ही है और इसलिए हम हमेशा कर्म से दूर रहने की बात करते हैं, क्योंकि जैसे ही आप अपनी स्मृतियों में डूबते हैं, आपके जीवन में पुनरावृत्तियों (साइक्लिकल होना या दोहराने का) का सिलसिला शुरु हो जाता है। एक बार इस चक्र के शुरू होते ही आप बस उसमें ही घूमते रह जाते हैं, पहुंचते कहीं नहीं। हमारा उद्देश्य उसी चक्र को तोड़ना है। इस चक्र को तोड़ने के लिए ज़रूरी है कि आपका मन संचित स्मृतियों से मुक्त रहे। अगर ऐसा नहीं होता तो यह चक्र कभी खत्म नहीं होगा, बल्कि चक्र-दर-चक्र और बनते जाएंगे। आप जितना अधिक अपनी स्मृतियों में डूबते जाएंगे, चक्र यानी साइकल छोटे से छोटे होते चले जाएंगे और धीरे-धीरे वि़क्षिप्तता या पागलपन के कगार पर पहुंच जाएंगे।
फिलहाल हम यहां शारीरिक अभ्यास से जुड़े एक खास पहलू पर चर्चा कर रहे हैं। इस बाहरी शारीरिक प्रक्रिया का एक आध्यात्मिक आयाम भी है, जिसे हम सूर्य क्रिया कहते हैं।
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पिछले चार-पांच महीनों से सभी ब्रह्मचारी सूर्य क्रिया का अभ्यास कर रहे हैं, लेकिन अब भी उनके अभ्यास में सुधार का क्रम जारी है। जब वे सौ प्रतिशत सही तरह से अभ्यास करने लगेंगे, तब हम उन्हें एक खास तरीके से सूर्य क्रिया में दीक्षित करेंगे। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में एक बहुत ही जबरदस्त प्रक्रिया साबित होगी। इसमें आध्यात्मिकता की भी अद्भुत संभावनाएं होंगी। इस स्थिति को पाने में काफी समय और अभ्यास लगेगा। इसके लिए सही निपुणता तभी आएगी, जब लगातार हर चरण पर सुधार किया जाता रहे। सिर्फ तभी सूर्य क्रिया में दीक्षित किया जाना फायदेमंद साबित होगा। चूंकि यह एक सशक्त प्राक्रिया है, इसलिए इसे करने के लिए एक खास स्तर की योग्यता का होना ज़रूरी है।
सूर्य क्रिया और सूर्य नमस्कार के बीच का अंतर
सूर्य क्रिया और सूर्य नमस्कार दोनों अलग-अलग हैं। मूल अभ्यास या असली प्रक्रिया सूर्य क्रिया है। यह खुद को सूर्य के साथ संयोजित करने का एक तरीका है। यह एक विशुद्ध विधा है जिसमें शरीर की ज्यामिती में बहुत एकाग्रता की ज़रूरत होती है। सूर्य नमस्कार सूर्य क्रिया का देहाती भाई जैसा है। इसके अलावा एक और प्रक्रिया है, जिसे सूर्य शक्ति कहते हैं। यह सूर्य क्रिया का और भी दूर का संबंधी है। अगर आप इस पद्धति का इस्तेमाल सिर्फ शारीरिक व्यायाम के तौर पर मांसपेशियों को मजबूत और बलशाली बनाने के लिए करना चाहते हैं, तो आपको सूर्य शक्ति करनी चाहिए।
आपका जीवन सूर्य के चक्रों से गहरा जुड़ा है
मानव शरीर की रचना में सूर्य, चंद्रमा और धरती की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सूर्य क्रिया सूर्य के चक्र के साथ खुद को संयोजित करने का जरिया है। इसके जरिए आप अपने शरीर को सवा बारह से साढ़े बारह साल के सूर्य चक्र तक ले जा सकते हैं। अगर आप अपने जीवन को ध्यान से देंखे तो पाएंगे कि किशोरावस्था की शुरुआत से ही कुछ निश्चित अंतराल पर आप बार-बार एक ही तरह की परिस्थितियों या हालातों से गुजरते रहे हैं। मसलन थोड़-थोड़े अंतराल के बाद आपके जीवन में कुछ खास किस्म की परिस्थितियाँ दोहरातीं रही हैं। आपके मनोवैज्ञानिक अनुभवों से लेकर आपकी भावनात्मक स्थितियाँ तक चक्रीय रूप में सामने आतीं हैं। हो सकता है कि कुछ लोगों के जीवन में यह दोहराव या चक्र 12 साल बाद तो कुछ के जीवन यह छह या तीन साल में होता हो, जबकि कुछ के जीवन में यह चक्र अठ्ठारह महीने या नौ महीने या छह महीने में हो। लेकिन अगर किसी व्यक्ति के जीवन में यह चक्र तीन महीने या उससे कम का है तो उस व्यक्ति को निश्चित ही मनोवैज्ञानिक तौर पर डॉक्टरी देखेरख की ज़रूरत है।
व्यक्ति अगर अपने जीवन पर नजर डाले तो, अपने चक्रों की अवधि के अनुसार, संपूर्ण तंदरुस्ती और संतुलन से पूरी तरह से विनाश के कगार तक - की सभी घटनाओं को अपने अंदर देख पाएगा। इस मामले में महिलाएँ चंद्रमा से ज्य़ादा संयोजित होतीं हैं। इसका नतीजा यह होता है कि वह सूर्य या सौर्य चक्र पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पातीं, क्योंकि उनका ध्यान चंद्र चक्र पर ज्य़ादा होता है। लेकिन फिर भी मानव शरीर की मूल प्रकृति सौर्य चक्र से ज्य़ादा संयोजित होती है। इसलिए सूर्य क्रिया आपको अपने आसपास और अपने भीतर उस आयाम की ओर बढ़ने में सक्षम बनाती है, जहां जीवन की प्रक्रिया में बाहरी परिस्थितियां या हालात बाधक नहीं बनते।
सूर्य नमस्कार : लगातार सुधार की जरुरत है
आठ-दस या पंद्रह सालों से रोज साधना कर रहे ब्रम्हचारी, पिछले चार महीनों से अपने अभ्यास को ध्यानपूर्वक सुधारने के बाद यह समझने लगे हैं कि शरीर की ज्यामिति को ठीक करने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है। ये लोग पिछले पंद्रह सालों से रोज सूर्य नमस्कार कर रहे थे और इन्हें लगता था कि वे इसे ठीक कर रहे थे। हालांकि वे इसे ठीक तरीके से ही कर रहे थे, लेकिन शरीर की ज्यामिति को ठीक से पकड़ पाना आसान काम नहीं है। अगर आप बस इसे ही ठीक से कर लेंगे तो यह पूरा ब्रम्हांड इस धरती पर उतार सकता है। इस काम में बहुत मेहनत लगती है - उस बिंदु तक पहुँचने में, जहाँ यह पूरी तरह अचूक हो जाता है, इसे बार बार सुधारना और व्यवस्थित करना होता हैं। अगर हम उस स्थिति तक पहुंच गए, तो फिर हम इसकी शुरुआत कर सकते हैं, जिसे हम "दीक्षा" कहते हैं। इस प्रक्रिया की शुरुआत होने पर यह अद्भुत अभ्यास शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कल्याण को एक विशेष स्तर पर लाने और सूर्य चक्र के साथ संयोजित होने का एक सशक्त जरिया बन जाएगी।
सम्पादकीय टिपण्णी: सूर्य किया और योगासन प्रोग्राम के लिए यहाँ जाएँ
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