सद्‌गुरुजानते हैं कुछ ऐसे टिप्स जिनसे नींद की जरुरत अपने आप कम हो सकती है, और शरीर ज्यादा नींद की माँग करना छोड़ देता है। सद्‌गुरु इन टिप्स में प्राकृतिक आहार, सोने की सही दिशा और कुछ योग अभ्यासों के बारे में भी बता रहे हैं जिनके द्वारा नींद की जरुरत कम हो सकती है।

शरीर को नींद नहीं, विश्राम की आवश्यकता है। अधिकतर लोगों का अनुभव यही है कि नींद ही सबसे गहरा विश्राम है इसलिए वे हमेशा नींद की बात करते हैं।

मैंने लोगों को देखा है, वे बाग में घूमते हुए भी तनाव में रहते हैं। इस तरह की सैर तो उन्हें आराम देने की बजाए और परेशान कर देगी। हर काम ऐसे न करें मानो आप युद्ध पर निकले हों।
परंतु मूल रूप से, शरीर नींद नहीं विश्राम चाहता है। अगर रात को शरीर को आराम नहीं मिलेगा तो आपकी सुबह थकान से भरी होगी। यहाँ नींद की बजाए विश्राम का अधिक महत्व है। अगर आप अपने शरीर को सारा दिन विश्राम की अवस्था में रखेंगे, अगर आपका काम, व्यायाम और अन्य गतिविधियाँ विश्राम के साथ होंगी तो आपकी नींद के घंटे अपने-आप ही कम हो जाएंगे। दरअसल लोगों को यही सिखाया गया है कि हर काम परिश्रम के साथ गहरे तनाव के बीच होना चाहिए। मैंने लोगों को देखा है, वे बाग में घूमते हुए भी तनाव में रहते हैं। इस तरह की सैर तो उन्हें आराम देने की बजाए और परेशान कर देगी। हर काम ऐसे न करें मानो आप युद्ध पर निकले हों। भले ही आप सैर करें, जॉगिंग करें या व्यायाम कर रहे हों, आप इसे आराम से, पूरे आनंद से क्यों नहीं कर सकते?

जीवन के साथ युद्ध मत लड़ें। अपने-आप को फिट रखना कोई युद्ध नहीं है। खेलें, तैरें या सैर करें; आपको जो भी अच्छा लगे, वही करें। अगर आप चीज़केक ही खाना चाहेंगे, तो परेशानी हो सकती है! वरना किसी भी गतिविधि के साथ अच्छी सेहत बनाए रखना कोई मुश्किल काम नहीं है।

अगर आप कुछ निश्चित यौगिक अभ्यास कर सकें, जैसे अपने जीवन में शांभवी महामुद्रा को अपना सकें, तो सबसे पहले आप यह बदलाव देखेंगे कि आपकी नब्ज़ थोड़ी धीमी चलने लगी है।

अगर ऐसा हुआ तो आपकी नींद के घंटे नाटकीय रूप से घटेंगे, क्योंकि शरीर सारा दिन सहज रूप से आराम में बना रहेगा।
मिसाल के लिए, अगर कोई इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम करने के बाद, शांभवी मुद्रा करता है, और डिनर के पहले और बाद में उसकी नाड़ी देखी जाए – और फिर उसके बाद छह हफ़्तों तक शाम्भवी का अभ्यास करता है, और अपनी नाड़ी देखता है -  तो वह आठ से पंद्रह काउंट तक नीचे आ जाती है। अगर कोई सही मायनों में शांभवी महामुद्रा में गहरे विश्राम की अवस्था को पा लेता है, तो नाड़ी की गति और भी कम हो जाएगी।

अभ्यास के बारह से अठारह माह के भीतर, आप विश्राम की अवस्था में अपनी नाड़ी की गति पचास या साठ तक ला सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो आपकी नींद के घंटे नाटकीय रूप से घटेंगे, क्योंकि शरीर सारा दिन सहज रूप से आराम में बना रहेगा। आप भले ही जो भी काम करें, शरीर आपसे ज़्यादा नींद की माँग नहीं करेगा।

हम शून्य नामक ध्यान विधि करना भी सिखाते हैं। यह एक कार्यक्रम में सिखाया जाता है, जिसे हम दक्षिणी भारत और यू.एस. के ईशा केंद्रों में ही सिखाते हैं।

आप यह पाएँगे कि ध्यान के ये पंद्रह मिनट, आपके लिए विश्राम से भरपूर नींद के दो-तीन घंटों के बराबर होंगे। इस समय आपके शरीर में इतने महत्वपूर्ण बदलाव होते हैं कि उल्लेखनीय चीजें घटती हैं - यही वजह है कि इसे नियंत्रित और समर्पित वातावरण में सिखाया जाना चाहिए।
हम इसे कहीं और नहीं सिखाते क्योंकि इसके लिए एक विशेष प्रकार के वातावरण, प्रशिक्षण और प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है। शून्य आपकी नींद के घंटों को बहुत कम कर सकता है। यह एक पंद्रह मिनट का ध्यान है परंतु आप देखेंगे कि अगर आपने इसे ध्यान से किया, तो आपके मेटाबोलिज़म की दर चौबीस प्रतिशत तक नीचे आ जाएगी। ध्यान की सजग अवस्था में इस दर को इससे ज्यादा नहीं गिराया जा सकता। अगर आप इससे परे जाते हैं, तो आप अपने होश में नहीं रह सकेंगे। अगर आप चाहते हैं कि एक बिंदु तक आराम की अवस्था में जाएं, और फिर सजग होकर बाहर भी अ जाएं, तो चौबीस फीसदी से परे नहीं जा सकते।

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आप यह पाएँगे कि ध्यान के ये पंद्रह मिनट, आपके लिए विश्राम से भरपूर नींद के दो-तीन घंटों के बराबर होंगे। इस समय आपके शरीर में इतने महत्वपूर्ण बदलाव होते हैं कि उल्लेखनीय चीजें घटती हैं - यही वजह है कि इसे नियंत्रित और समर्पित वातावरण में सिखाया जाना चाहिए।

अगर आप प्रतिदिन आठ से नौ घंटों की नींद ले रहे हैं तो आपको अपने आहार पर ध्यान देना होगा। कम से कम एक निश्चित मात्रा में शाकाहारी आहार लें, जिसे आप बिना पकाए, कच्चा ही खा सकें – ये आपकी खुशहाली के लिए बहुत जरुरी है। जब आप भोजन पकाते हैं तो उसकी बहुत सारी प्राण या जीवन ऊर्जा नष्ट हो जाती है। यही वजह है कि शरीर में आलस बना रहता है। अगर आप ताजे फल और सब्जियों का सेवन करें तो इसके बहुत लाभ हो सकते हैं, पर एक चीज़ जो आप सबसे पहले नोटिस करेंगे, वो ये है कि आपकी नींद के घंटे कम हो जाएँगे।

भारतीय संस्कृति में, पारंपरिक रूप से कहा जाता है कि पकाए हुए भोजन को डेढ से दो घंटे के बीच खा लेना चाहिए। बने हुए भोजन को लम्बे समय फ्रिज में रख कर खाने से नींद के घंटे बढ़ सकते हैं और शरीर में कई तरह की दिक्कतें भी हो सकत हैं। डिब्बाबंद भोजन के लिए भी यही कहा जा सकता है। इस तरह बंद रखा गया भोजन तमस यानी आलस्य को बढ़ाता है जिससे आपकी मानसिक फुर्ती और सजगता में कमी आ सकती है।

आप अपनी ऊर्जाओं का जितना उचित प्रबंधन करते हैं, उसी पर आपकी सजगता निर्भर करती है। ध्यान करने के लिए आपके मन की ही नहीं, आपकी ऊर्जा की सजगता भी बहुत आवश्यक है। इसके लिए, यौगिक पथ का अभ्यास करने वालों से कहा जाता है कि उन्हें केवल चौबीस कौर ही खाने चाहिए और हर कौर को चौबीस बार चबाना चाहिए। इस तरह भोजन पेट में जाने से पहले ही, पच जाएगा और शरीर में आलस्य नहीं आएगा।

अगर आप शाम के भोजन के दौरान ऐसा करेंगे, तो आप सुबह साढे तीन बजे अपने-आप ही उठ सकेंगे। यौगिक तंत्र में, यह समय ब्रह्म मुहूर्त कहलाता है। यह यौगिक अभ्यास करने के लिए आदर्श समय है, इस समय आपको साधना करने के लिए प्रकृति से अतिरिक्त सहयोग भी मिलेगा।

आपके शरीर को कितनी नींद चाहिए, यह आपकी गतिविधि पर निर्भर करता है। भोजन या नींद की मात्रा को निश्चित करने की जरुरत नहीं है। जब आपकी गतिविधि कम हो, तो कम भोजन करें।

पर अगर शरीर बिस्तर को कब्र की तरह प्रयोग में लाना चाहता है तो यह उससे बाहर ही नहीं आना चाहेगा। किसी को आपको जबरदस्ती उठाना पड़ेगा!
जब गतिविधि अधिक हो तो आप अधिक खा सकते हैं। नींद के साथ भी ऐसा ही है। अगर शरीर को पूरा आराम मिला होगा तो यह उठ जाएगा, चाहे तीन बजे हों या आठ बजे हों। आपके शरीर को अलार्म से नहीं उठना चाहिए। जब इसे भरपूर नींद मिल जाएगी, तो स्वयं ही जाग जाएगा।

अगर आप नींद को जबरन रोकना चाहेंगे, तो आपकी शारीरिक और मानसिक गतिविधि मंद हो जाएगी। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। आपको अपने शरीर को भरपूर नींद देनी चाहिए।

पर अगर शरीर बिस्तर को कब्र की तरह प्रयोग में लाना चाहता है तो यह उससे बाहर ही नहीं आना चाहेगा। किसी को आपको जबरदस्ती उठाना पड़ेगा! ये इस पर निर्भर करता है कि आप अपना जीवन कैसे जी रहे हैं। अगर आप ऐसी मानसिक अवस्था में हैं, जब आप जीवन से दूर जाना चाहते हैं तो आप नींद और भोजन; दोनों की अधिक मात्रा ग्रहण करेंगे।

बहुत से लोगों ऐसी स्थिति में हैं कि जब तक वे पूरा पेट भर कर खाना नहीं खा लेते और शरीर को सुस्त नहीं बना लेते, उन्हें नींद नहीं आती। आपको सोने से पहले, भोजन के पाचन के लिए समय देना चाहिए। मेरा कहना है कि अगर आप भोजन के बाद, दो घंटे से पहले ही सो जाते हैं तो अस्सी प्रतिशत भोजन व्यर्थ हो जाता है। अगर आप इस स्थिति में हैं, कि पूरा पेट भरे बिना नींद नहीं आती तो इस मसले पर ध्यान दें। यह नींद के बारे में नहीं है, ये एक ख़ास मानसिक अवस्था है।

जब भी आपका शरीर लेटता है, तो नाड़ी की गति धीमी हो जाती है। शरीर ही यह इंतज़ाम करता है क्योंकि अगर रक्त का प्रवाह पहले जैसा ही हो तो बहुत सारा रक्त आपने मस्तिष्क में जा कर नुकसान कर सकता है।

अगर आप उत्तरी गोलार्द्ध हैं, तो सबसे अच्छा होगा कि आप पूर्व की ओर सिर करके सोएँ। उत्तर-पूर्व भी उचित है। पश्चिम ठीक है, दक्षिण भी ठीक हो सकता है पर उत्तर दिशा में सिर न करें।
ऊपर की ओर जाने वाली रक्त नलिकाएं, नीचे की ओर आने वाली रक्त नलिकाओं के मुकाबले पतली होती हैं। जब वे मस्तिष्क तक जाती हैं तो वे बाल सरीखी हो जाती हैं, इतनी पतली कि एक भी अतिरिक्त बूँद भी नहीं ले सकतीं।

जब आप सोते हैं और अपना सिर उत्तर की ओर रखते हैं, मान लेते हैं कि आपने 5-6 घंटे ऐसा किया, तो धरती का चुंबकीय बल आपके दिमाग पर दबाव देगा क्योंकि आपके शरीर में लौह एक अनिवार्य तत्व है। ऐसा नहीं है कि इस दिशा में सोने से प्राण चले जाएँगे पर अगर आप रोज ऐसा करते हैं तो आप परेशानी को बुलावा दे रहे हैं। अगर आप एक निश्चित आयु के हैं और रक्त नलिकाएँ दुर्बल हैं, तो इससे दिमागी रक्तस्राव या पक्षाघात का खतरा हो सकता है। अगर आपका तंत्र मजबूत है, तो हो सकता है कि आपको नींद अच्छी न आए क्योंकि सामान्य की तुलना में, आपके दिमाग में रक्त का संचार अधिक होगा।

अगर आप उत्तरी गोलार्द्ध हैं, तो सबसे अच्छा होगा कि आप पूर्व की ओर सिर करके सोएँ। उत्तर-पूर्व भी उचित है। पश्चिम ठीक है, दक्षिण भी ठीक हो सकता है पर उत्तर दिशा में सिर न करें। दक्षिणी गोलार्द्ध में हैं, तो अपने सिर को दक्षिण की ओर न करें।

मनुष्य का स्वभाव ऐसा है कि जहाँ हर दूसरा जीव अपने आस पास के हालात के अनुसार खुद को ढाल लेता है, वहीँ मनुष्य अपने हिसाब से हालात रच सकता है।

आप क्या सुनते हैं, क्या कहते हैं और क्या खाते हैं ; इन सबका अभ्यास योग में किया जाता है क्योंकि वातावरण, जीभ और मन व शरीर को पवित्र बनाए रखने से, आपको अपने अस्तित्व के लिए निश्चित आजादी, बुद्धिमानी व आनंद मिल सकता है।
यही कारण है कि हम सभी प्रजातियों से निराले हैं। अगर आपको अपनी परवाह है तो आपको सजग होना चाहिए कि आपका तंत्र क्या ग्रहण कर रहा है। सवाल यह नहीं कि आप कितने लंबे समय तक जीते हैं। सवाल यह पैदा होता है कि आप कितने अच्छे से जीवन जीते हैं। आप क्या सुनते हैं, क्या कहते हैं और क्या खाते हैं ; इन सबका अभ्यास योग में किया जाता है क्योंकि वातावरण, जीभ और मन व शरीर को पवित्र बनाए रखने से, आपको अपने अस्तित्व के लिए निश्चित आजादी, बुद्धिमानी व आनंद मिल सकता है।

मै आपको एक चुटकुला सुनाता हूँ। दो प्रेबिस्टर पंथ की साध्वियाँ मोंटाना के देहाती इलाके से जा रही थीं कि कार की गैस ख़त्म हो गई। वे कुछ मील की दूरी पर, खेत में गईं और किसान से कहा कि उन्हें थोड़ी गैसोलीन चाहिए। किसान पूरी तरह नशे में था। किसान ने कहा कि वे उसके ट्रैक्टर से निकाल सकती हैं। वे कार के पास गयीं, पर उनके पास कोई बर्तन नहीं था। तभी उन्हें एक पुराना चैम्बर पॉट दिखा।  वे चैंबर पॉट में गैसोलीन भर कर, पाँच मील चल कर, अपनी कार के पास गईं और उसमें गैसोलीन भरने लगीं। तभी एक बैपटिस्ट पादरी वहाँ से निकले और उन्हें वैसा करते देख कर कहा, ”सिस्टर्स, मैं आपके भरोसे की कद्र करता हूँ, पर मेरा विश्वास करें? यह इस तरह काम नहीं करता।“

अगर आप कुछ चीजों को यहाँ-वहाँ से उठा कर अपने तंत्र में डालते रहेंगे, तो यह बहुत दूर तक नहीं चल सकेगा।

  1. शरीर के साथ युद्ध मत लड़ें

  2. यौगिक अभ्यास - शांभवी महामुद्रा

  3. यौगिक अभ्यास - शून्य ध्यान

  4. आहार में प्राकृतिक खाद्य पदार्थ शामिल करें

  5. गैस से ले कर प्लेट तक : झट ले आएँ

  6. कितना भोजन करें

  7. नींद को जबरन न रोकें

  8. भोजन के तुरंत बाद न सोएँ

  9. सोने की उचित मुद्रा

  10. अपने तंत्र को साफ रखें