उनको अकसर सात सांपों के सिर वाले आधे आदमी और आधे सांप के रूप में दर्शाया जाता है। हम उन्हें उस विद्वान के रूप में जानते हैं जिन्होंने योग सूत्र  का संकलन किया। उन्हें संस्कृत व्याकरण के उस महाविशारद के रूप में जानते हैं जिन्होंने महाभाष्य  नामक ग्रंथ में संस्कृत व्याकरण के चुने हुए नियमों की सरल व्याख्या की और आयुर्वेद का एक ग्रंथ रचा। उनको आधुनिक योग का जन्मदाता माना जाता है . . . हम अद्वितीय विद्वान महर्षि पतंजलि की बात कर रहे हैं।

सद्‌गुरुइस श्रृंखला की पहली कड़ी में हमने जाना कि भगवान शिव ही पहले योगी हैं, और मानव स्वभाव की सबसे गहरी समझ उन्हीं को है। लेकिन आदियोगी ने इस बारे में कभी कुछ नहीं लिखा। उन्होंने सात ऋषियों को चुना और उनको योग के अलग-अलग पहलुओं का ज्ञान दिया जो योग के सात बुनियादी पहलू बन गए। वक्त के साथ इन सात रूपों से सैकड़ों शाखाएं निकल आईं। एक समय ऐसा आया कि योग की तकरीबन 1700 विधाएं तैयार हो गयीं। योग में आई जटिलता को देख कर पतंजलि ने फैसला किया, कि पूरे योग शास्त्र को सरल सूत्रों में पिरो दिया जाए। और इस तरह से उन्होंने मात्र 200 सूत्रों में पूरे योग शास्त्र को समेट दिया। इंसान की अंदरूनी प्रणालियों के बारे में जो कुछ भी बताया जा सकता था वो सब इन सूत्रों में शामिल था।

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सद्‌गुरु बताते हैं कि पतंजलि के योगसूत्र किसी फार्मूला की तरह हैं। “अगर आप सापेक्षवाद के सामान्य सिद्धांत के बारे में नहीं जानते और मैं बोलूं, E=mc2, तो आपके लिए ये तीन अक्षर और एक अंक के अलावा और कुछ नहीं है, ठीक है न? इसी तरह योगसूत्रों को कुछ ऐसे लिखा गया था कि यूं ही सरसरी तौर पर पढ़ने वाले को इनका कोई मतलब समझ न आए। पतंजलि ने किसी अभ्यास की शिक्षा नहीं दी। उन्होंने इन सूत्रों को इस तरह रचा कि ये उन्हीं को समझ आएं जिनको एक खास स्तर का अनुभव है; वरना ये शब्दों के ढेर बन कर रह जाते हैं।”

इस महान ग्रंथ की शुरू की पंक्तियों का वर्णन करते हुए सद्‌गुरु कहते हैं, “जब पतंजलि ने जीवन के बारे में इस महाग्रंथ की रचना शुरू की, तो उन्होंने एक अजीब तरीके से इसको शुरू किया। इसका पहला अध्याय बस एक आधा-अधूरा वाक्य था: “तो अब योग।” दरअसल वे यह कहना चाहते थे - अगर आपने अपनी मर्जी का काम कर लिया है, अगर आपने अपनी जरूरत भर पैसा कमा लिया है, अगर आपने अपनी पसंद का जीवन-साथी पा लिया है, फिर भी आप अंदर से खाली-खाली-सा महसूस कर रहे हैं, तो जान लीजिए कि योग का वक्त आ गया है। लेकिन अभी भी अगर आप यह सोचते हैं कि एक नया घर बनवा लेने से या कोई और काम कर लेने से आपके साथ सब ठीक हो जाएगा, तो अभी योग का वक्त नहीं आया है। जब सब-कुछ आजमाने के बाद आप यह जान गए हों कि इनमें से कुछ भी आपको संतुष्ट नहीं कर पाएगा, अगर आप इस पड़ाव पर पहुंच गए हों– ‘तो अब योग।’

इस महान ग्रंथ की शुरू की पंक्तियों का वर्णन करते हुए सद्‌गुरु कहते हैं, “जब पतंजलि ने जीवन के बारे में इस महाग्रंथ की रचना शुरू की, तो उन्होंने एक अजीब तरीके से इसको शुरू किया। इसका पहला अध्याय बस एक आधा-अधूरा वाक्य था: “तो अब योग।” दरअसल वे यह कहना चाहते थे... 

पतंजलि को आम तौर पर आधा आदमी और आधा सांप के रूप में इसलिए दर्शाया जाता है क्योंकि वे जिंदगी के दोहरेपन से परे हैं। सद्‌गुरु समझाते हैं, “पतंजलि को ऐसा इसलिए दर्शाया जाता है क्योंकि वे मानव-ऊर्जा के व्यवहार के प्रति बहुत संवेदनशील हैं। उन्होंने हर उस आयाम को खोजा जिसे आप अपनी ऊर्जा के  रूपांतर के द्वारा जान सकते हैं। उनकी संवेदनशीलता इतनी जबरदस्त थी कि एक आदमी की तरह उनको सिर्फ दो पैर देना उचित नहीं लगता। दरअसल वे एक सांप की तरह हैं जिनको हर चीज की भनक लग जाती है।”

पतंजलि का ज्ञान इतने अलग-अलग क्षेत्रों में है कि विद्वानों को यकीन नहीं होता कि एक इंसान अकेले इतने तरह के ग्रंथ तैयार कर सकता है। उनकी बुद्धि और विवेक के बारे में सद्‌गुरु कहते हैं, “अगर आप गणित, खगोलशास्त्र, ब्रह्मांडविज्ञान और संगीत जैसे विषयों में उनकी महारत और उनकी बुद्धि पर गौर करें तो यह बिलकुल असंभव-सा लगता है कि एक अकेले इंसान को जिंदगी की इतनी समझ हो सकती है। आज के विद्वान वाद-विवाद, विचार-विमर्श के बाद कहते हैं, ‘यह कोई एक आदमी नहीं, बहुत-से लोग रहे होंगे। यह बहुत-से लोगों का इकट्ठा किया गया काम है।’ पर ऐसा बिलकुल नहीं है। वे एक ही व्यक्ति थे। एक बुद्धिजीवी के रूप में पतंजलि के आगे आज के बड़े-बड़े वैज्ञानिक किंडरगार्टेन के बच्चे जैसे लगेंगे। जिंदगी के बारे में वो सबकुछ जो कहा जा सकता है उन्होंने कह दिया था। वैसे उन्होंने यह ठीक नहीं किया, क्योंकि आप जो-कुछ भी कहना चाहते हैं, वे पहले ही कह चुके हैं। उन्होंने किसी के लिए कुछ भी कहने को नहीं छोड़ा।”