भारत में इतने सारे लोग खेती क्यों करते हैं?
तमिलनाडु एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों के साथ एक बातचीत के दौरान, सद्गुरु प्राचीन समय से विदेशी हमलों और कब्जों से भारतीय कृषि में आए बदलावों के बारे में बता रहे हैं, जिसके प्रभावों को आज के किसान अब तक झेल रहे हैं।
प्रश्न: सद्गुरु, हम एक कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे हैं, इसलिए मेरा सवाल खेती से जुड़ा है। मध्यकाल में कृषि एक ऐसा उद्योग था जो जीडीपी में तीस फीसदी से अधिक का योगदान करता था, मगर अब वह सोलह से सत्रह फीसदी तक गिर गया है। मगर आंकड़ों के अनुसार ये एकमात्र उद्योग है जिसमें दो तिहाई से अधिक आबादी लगी है। क्या यह विरोधाभास देश के आर्थिक विकास में एक रुकावट पैदा नहीं कर रहा?
कृषि को एक उद्योग की तरह देखना होगा
सद्गुरु: कृषि को एक उद्योग कहना बहुत ही प्रगतिशील विचार है। खेती करने की इंसानी क्षमता हमारी सभ्यता का आधार है। अगर हम शिकारी और भोजन इकट्ठा करने वाले होते, तो कभी इस सभ्यता का विकास नहीं हुआ होता। मिट्टी से भोजन निकालने की अपनी क्षमता के कारण ही हमने शहर और नगर बनाए और वहां बस गए। कई दूसरी कलाएं, विज्ञान और बाकी चीजें विकसित हुईं। अगर हम भाला लेकर किसी जानवर के पीछे भाग रहे होते, तो हम कभी इस तरह की सभ्यता का विकास नहीं कर पाते।
कृषि हमारी सभ्यता का आधार है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए। यह एक तरह का जादू है। जिस धरती पर आप चलते हैं, वह भोजन में बदल जाता है। अगर आप नहीं समझ रहे कि मैं किस जादू की बात कर रहा हूं, तो आज रात डिनर में आप बाकी भोजन उसी तरह करें मगर अचार की जगह थोड़ी सी मिट्टी लें और अपने भोजन में वह लगाकर खाएं। आप देखेंगे कि अगर हमें मिट्टी खानी पड़े तो यह कितना खराब लगता है। मगर जिस मिट्टी को हम खा नहीं सकते, उसे हम बढ़िया भोजन में बदल देते हैं, जो हमें पोषण देता है और इस हाड़-मांस को बनाता है। यह कोई छोटी बात नहीं है।
मिट्टी को भोजन में बदलना ही कृषि है। इंसानों ने पौधों के जीवन को ध्यान से देखते हुए और उसका लाभ उठाते हुए इस असाधारण प्रक्रिया की खोज की। जहां तक मैं जानता हूं – आप कॉलेज में हैं, अगर मैं गलत हूं तो आप बता सकते हैं – दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों को छोड़कर सिर्फ यही देश है जहां कृषि का 12,000 साल से अधिक का इतिहास है। यहाँ दक्षिण भारत में, तमिल नाडू में हम इसी ज़मीन को 12000 सालों से जोतते आ रहे हैं। अमेरिका में मिट्टी को ‘गंदगी’ या धूल कहते हैं। यहां हम थाई मन्नु (धरती मां) कहते हैं क्योंकि हमारा इस मिट्टी से गहरा रिश्ता है।
भारत की एक बड़ी आबादी खेती क्यों कर रही है?
करीब 170 से 180 साल पहले तक भारत एक औद्योगिक देश था। तीन सौ साल पहले शायद हमारा देश दुनिया का सबसे अधिक औद्योगीकृत देश था। यहां का एक बड़ा उद्योग वस्त्र उद्योग था। हम इस देश से दुनिया भर में इस्तेमाल होने वाले कपड़ों का साठ फीसदी निर्यात करते थे। 1800 से 1860 ईसवी के बीच अंग्रेजों ने देखा कि सिर्फ कपड़े खरीदने के लिए यूरोप का काफी पैसा भारत आ रहा था। अरब लोग भारतीय कपड़ा खरीदते थे और उसे यूरोप में दस गुना दाम पर बेचते थे। तो उनका सारा सोना-चांदी भारत पहुंच रहा था। तभी उन्होंने अपनी खोज-यात्राएं या अभियान शुरू किए, कोलंबस, वास्को डि गामा और बाकियों ने। हर किसी ने एक समुद्री रास्ता खोजने के लिए जोखिम उठाना शुरू किया ताकि हर चीज के लिए अरबों द्वारा दस गुना अधिक कीमत वसूले जाने से बच सकें।
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जब वे यहां आए तो उन्होंने देखा कि यहां का उद्योग कितना सरल और देशी था: एक व्यक्ति बैठकर ठक, ठक, ठक करता था और कपड़ा बन जाता था। उन्होंने देखा कि यह बहुत सरल उद्योग है और वे मशीनों से इसे कर सकते हैं, फिर उन्होंने मशीनें लगानी शुरू कीं। साठ साल के समय में इस देश से कपड़ों का निर्यात 98 फीसदी कम हो गया। सिर्फ दो फीसदी बचा क्योंकि उन्होंने भारी कर लगा दिए और कुछ जगहों पर, जहां बहुत महीन कपड़ा बनाया जा रहा था, उन्होंने कारीगरों के अंगूठे काट दिए और करघों को नष्ट कर दिया।
1830 के दशक में एक अंग्रेज गवर्नर जनरल ने कहा कि ‘भारत के खेत हस्त बुनकरों की हड्डियों से सफ़ेद हो गए हैं।’ उद्योग के नष्ट होने से लाखों लोग भूख से मर गए। उस समय एक बड़ी आबादी वापस खेती की ओर चली गई। ये खेती मुख्य रूप से जीवन का सहारा थी, उन्होंने अपने और अपने परिवारों के लिए खाना उगाने के लिए जमीन को जोतना शुरू कर दिया। यही वजह है कि 1947 में भारत की लगभग 77 फीसदी आबादी खेती में लगी थी।
हमें अपनी आबादी को दूसरे काम सिखाने होंगे
आज यह प्रतिशत 60 फीसदी हो गया है। इसका मतलब मुख्य रूप से यह है कि अगर दस लोगों को खाना है, तो उसके लिए छह लोग पका रहे हैं। यह मानव संसाधन का इस्तेमाल करने का कुशल तरीका नहीं है। असल में अगर आप हमारे देश को देखें तो हमारे पास जो असली संसाधन है, वह है मानव संसाधन। हमारे पास कुछ भी अधिक नहीं है, मगर हमारे पास लोग हैं। अगर हम इस आबादी को प्रशिक्षित, केंद्रित और प्रेरित करें तो हम एक जबर्दस्त चमत्कार हो सकते हैं। अगर ऐसा नहीं कर पाए, तो हम एक बड़ी आपदा होंगे।
साठ फीसदी आबादी का खेती में होना सही चीज नहीं है। हमें इस आबादी में कुछ बदलाव लाने होंगे। आबादी में बदलाव लाने का मतलब उन्हें भौगोलिक तौर पर शहरों में ले जाना नहीं है, बल्कि उन्हें दूसरे काम, शिल्प और कौशल सिखाना है। इसके लिए कोई समर्पित और व्यवस्थित कोशिश नहीं हुई है।
सिर्फ चावल और गेहूं खाकर शरीर विकसित नहीं हो रहे हैं
Oखेती के साथ हमारी मुख्य समस्या तब शुरू हुई जब करीब 45 से 50 साल पहले हमने जीने के लिए की जाने वाली खेती को नकद कृषि या वाणिज्यिक खेती में बदलना शुरू कर दिया। अब भी यह पूरी तरह नहीं हो रहा है क्योंकि यह व्यवस्थित तरीके से नहीं किया गया। इसके कारण एक चीज आप देखेंगे कि गांवों की आबादी कुपोषण की शिकार है। अगर 40 साल पहले आप किसी गांव में जाते, तो हर कोई फटे कपड़ों में होता था, पीने का पानी नहीं था – वे उसी तालाब का पानी पीते थे, जहां से भैंसें पीती थीं – हर तरह की समस्याएं थीं, मगर स्त्री-पुरुष मजबूत थे। आज, अगर आप किसी गांव में जाएं, तो गांवों की 60 फीसदी आबादी का अस्थि पंजर पूरी तरह विकसित नहीं हुआ है। खाना खाने के लिए की जाने वाली कृषि से नकद कृषि की ओर इस बदलाव के कारण वे सिकुड़ गए हैं।
इस देश में बड़ी तादाद में लोग अपने जीवन की शुरुआत में अच्छा भोजन नहीं खा पाते और बाद में इसकी भरपाई नहीं हो सकती। शरीर और दिमाग का पूरा विकास नहीं हो पाता। फिलहाल सबसे पहले खेती को व्यवस्थित करने, तकनीक को शामिल करने और सबसे बढ़कर खेतों का पैमाना बढ़ाने करने की जरूरत है। अभी औसत जोत एक हेक्टेयर या ढाई एकड़ का है, जिससे आप कुछ बढ़िया नहीं कर सकते। आप वाकई इतनी छोटी जोत से कुछ बढ़िया नहीं कर सकते। इसलिए हम किसान उत्पादक संगठन और कई और चीजें बनाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि खेती में एक प्रकार का पैमाना लाया जा सके। खेती, सिंचाई और मार्केटिंग के लिए पैमाने को बढ़ाना जरूरी है। खेत के आकार छोटे होने के कारण, इसका कोई हल नहीं है।
फिलहाल नदी अभियान के एक भाग के रूप में किसानों की आय बढ़ाने के लिए गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं। अगर आप कुछ खास तकनीकें अपनाएं तो पांच से छह साल के समय में आप आराम से इस आय को तीन से आठ गुना बढ़ा सकते हैं। जल संसाधनों के सही इस्तेमाल और जानवरों को खेती में वापस लाने के साथ-साथ सिंचाई का एकीकरण सबसे महत्वपूर्ण है। ट्रैक्टर सिर्फ जमीन को जोतता है, वह जमीन को उपजाऊ नहीं बनाता। उसके लिए आपको जानवरों की जरूरत है। जानवरों के बिना आप भविष्य में खेती नहीं कर सकते।
ऐसी कोशिशें हो रही हैं मगर यह एक विशाल, विविधतापूर्ण देश है – यहां विरोध और खलबली के बिना कभी कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं हो सकता। हर छोटी से छोटी चीज के लिए संघर्ष करना पड़ता है, लेकिन अगर हमने इसे अभी नहीं किया तो भारत की कृषि खतरे में होगी। अगर आप किसानों का एक सर्वेक्षण करें तो उनमें से कितने लोग अपने बच्चों को खेती में भेजना चाहते हैं? मेरी बात मानिए, सिर्फ दो से पांच फीसदी ही ऐसे होंगे। यह देश के लिए अच्छा नहीं है।
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