सोनाक्षी सिन्हा: प्रिय सद्गुरुजी, मैं बहुत भावुक हूं और अक्सर खुद को ऐसी स्थितियों से भावनात्मक रूप से अलग कर पाना बहुत कठिन पाती हूं, जिनके बारे में मैं जानती हूं कि वे मेरे लिए अच्छी नहीं है। मैं देख सकती हूं कि वह मेरे मुताबिक नहीं जा रही मगर अपने मन और भावनाओं को उससे हटा पाना बहुत मुश्किल होता है। मैं उसके बारे में सोचती और विचारती रहती हूं, जो मैं करना नहीं चाहती। आपके विचार से मैं ऐसी स्थिति को कैसे संभाल सकती हूं?

सद्गुरु: दिमाग और दिल की जद्दोजहद की खूब चर्चा होती है। वास्तविकता में ऐसा कोई अंतर नहीं होता क्योंकि आप जैसे सोचते हैं, वैसे ही महसूस करते हैं। जिस तरह आप महसूस करते हैं, उसी तरह आप सोचते हैं।

अलग-अलग लोगों के लिए, अलग-अलग चीजें पहले आती हैं। आज, काफी हद तक शिक्षा के कारण अधिकांश लोगों के उनके विचार उनकी भावनाओं से पहले आते हैं। मगर अब भी ऐसे लोगों की काफी तादाद है जिनकी भावनाएं उनके विचारों से आगे चलती हैं। आजकल जिन लोगों की भावनाएं उनके विचारों से आगे दौड़ती हैं, उन्हें मूर्ख महसूस कराया जाता है क्योंकि आजकल भावना की शक्ति और बुद्धि को नहीं समझा जा रहा, हालांकि अब लोग इमोशनल क्वोशन्ट की बात करने लगे हैं।

भावनाएं धीरे-धीरे बदलती हैं

सोनाक्षी यह पूछ रही हैं कि कुछ स्थितियों में आप नहीं होना चाहते मगर भावनाएं उलझी होती हैं इसलिए विचार बार-बार वहां जाते हैं, आप अनजाने में उसी दिशा में चलते रहते हैं।

विचार तेज़ होते हैं, वे बड़ी तेज़ी से पलट सकते हैं। मगर भावनाएं सुस्त होती हैं। वे पलटने में थोड़ा समय लेती हैं। आज आप सोच सकते हैं, ‘अरे, यह दुनिया की सबसे अच्छी इंसान हैं।‘ कल अगर वह इंसान कुछ ऐसा करता है, जो आपको पसंद नहीं आता, तो तत्काल आपके विचार कहेंगे, ‘वह अच्छी नहीं है।‘ मगर भावनाएं उतनी तेज़ी नहीं होतीं। अगर मेरी भावनाएं इस इंसान के साथ जुड़ गई हैं, तो वे इतनी जल्दी पलटती नहीं हैं। जब तक वे पलटें तब तक आप परेशान होते हैं। मन से कुछ निकाला नहीं जा सकता इसका आप क्या कर सकते हैं? अपनी भावनाओं या विचारों को काबू में करने की कोशिश न करें क्योंकि आपके दिमाग की प्रकृति ऐसी है कि ‘‘मैं इस व्यक्ति के बारे में नहीं सोचना चाहता’’, का मतलब है आप अपना बाकी जीवन सिर्फ उसी के बारे में सोचते हुए बिताएंगे।

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इस मन में घटाव और भाग नहीं होता, बस जोड़ और गुणा होता है। अगर मैं कहूं, ‘मुझे यह भावना नहीं चाहिए,’ तो वह और बढ़ेगी, एक भावना दो में बदल जाएगी।

यह बंदर वाली प्रसिद्ध कहानी है। अगर हम आपसे कहें, ‘आपको अगले पांच सेकेंड बंदरों के बारे में नहीं सोचना है,’ तो क्या आप नहीं सोचेंगे? मन में सिर्फ बंदर आएंगे। क्योंकि आपके मन की प्रकृति यही है। अगर आप कहते हैं, ‘मुझे यह चीज नहीं चाहिए,’ तो वही चीज होगी।

जब बाध्यकारी(विवशता से भरे) विचार और भावनाएं मन में आते हैं, तो आपको सबसे पहले यह करना चाहिए कि आपको उन्हें उस तरह देखना चाहिए, जैसे वे हैं, उनसे बचने की कोशिश मत कीजिए। आप जैसे ही विरोध करेंगे, वे और बढ़ेंगे।

इस मन में घटाव और भाग नहीं होता, बस जोड़ और गुणा होता है। अगर मैं कहूं, ‘मुझे यह भावना नहीं चाहिए,’ तो वह और बढ़ेगी, एक भावना दो में बदल जाएगी। अगर आप कहें, ‘हे भगवान, ये विचार फिर आ रहा है, मुझे यह नहीं चाहिए,’ वह सौ गुना हो जाएगा। आपके मन की प्रकृति ऐसी ही है। इस मन से आप किसी चीज को जबरन नहीं हटा सकते।

जमा की गई सूचना से दूरी बनानी होगी

तो आपको यह समझना चाहिए कि विचार और भावनाएं बस पहले से मौजूद उस सूचना का रिसाइकिल है, जो आपको याद हैं। बात बस यह है कि याददाश्त थोड़ी बदबूदार होती है, इसलिए वह आती रहती है। आपको बस उससे थोड़ी दूरी रखनी है।

लेकिन अगर आप अलग-अलग विचारों और भावनाओं को संभालने की कोशिश करेंगे तो वे हज़ार गुना बढ़ जाएंगे।

मान लीजिए आप एयरपोर्ट जा रहे थे और आप एक ट्रैफिक जाम में फंस गए। आपको कितनी घबराहट और परेशानी होगी। फिर किसी तरह आप वहां पहुंच गए और हवाईजहाज में चढ़ कर उड़ गए। ऊपर से जब आपने नीचे देखा तो ट्रैफिक जाम कितना अच्छा लग रहा था। सिर्फ इसलिए क्योंकि थोड़ी दूरी थी। वही ट्रैफिक जाम मगर एक दूरी होने के कारण अचानक वह महत्वहीन हो गया।

ऐसा ही आपके विचार और भावनाओं के साथ है। थोड़े अभ्यास के साथ आप अपनी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं से थोड़ी दूरी बना सकते हैं। लेकिन अगर आप अलग-अलग विचारों और भावनाओं को संभालने की कोशिश करेंगे तो वे हज़ार गुना बढ़ जाएंगे।

संपादक का नोट : चाहे आप एक विवादास्पद प्रश्न से जूझ रहे हों, एक गलत माने जाने वाले विषय के बारे में परेशान महसूस कर रहे हों, या आपके भीतर ऐसा प्रश्न हो जिसका कोई भी जवाब देने को तैयार न हो, उस प्रश्न को पूछने का यही मौक़ा है! - unplugwithsadhguru.org
 

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