शरीरं सुरुपं तथा वा कलत्रं,

यशश्र्चारु चित्रं धनं मेरुतुल्यम।

मनश्चैन लग्नम गुरोरंघ्रिपद्मे

ततः किं, ततः किं, ततः किं, ततः किं।।

 

आप का शरीर भले ही सुंदर हो, आप की पत्नी भी सुंदर हो, आप का यश चारों दिशाओं में हो, मेरु पर्वत की तरह विशाल धन संपत्ति हो, पर यदि आप का मन गुरु के चरणकमलों में न लगता हो तो फिर इन सब का क्या अर्थ है, क्या अर्थ है, क्या अर्थ है, क्या अर्थ है ?

 

कलत्रं धनं पुत्र पौत्रादि सर्वं,

गृहं बान्धवा सर्वमेतद्धि जातम।

मनश्चैन लग्नम गुरोरंघ्रि पद्मे

ततः किं, ततः किं, ततः किं, ततः किं।।

 

आप के पास पत्नी हो, धनसम्पत्ति हो, पुत्र, पौत्र आदि सब, घर, भाई-बहन, सभी सगे संबंधी भी हों पर आप का मन यदि गुरु के चरणकमलों में न लगता हो तो इन सब का क्या अर्थ है, क्या अर्थ है, क्या अर्थ है, क्या अर्थ है ?

 

षडंगादि वेदो मुखे शास्त्र विद्या,

कवित्वादि गद्यम, सुपद्यम करोति।

मनश्चैन लग्नम गुरोरंघ्रि पद्मे

ततः किं, ततः किं, ततः किं, ततः किं।।

 

आप के होठों पर सभी वेद एवं उनके छः अंग हों, आप सुंदर कविता करते हों, गद्य पद्य की सुंदर रचना करते हों, पर आप का मन यदि गुरु के चरणकमलों में न लगता हो तो इन सब का क्या अर्थ है, क्या अर्थ है, क्या अर्थ है, क्या अर्थ है ?

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विदेशेषु मान्यः स्वदेशेषु धन्यः,

सदाचार वृत्तेषु मत्तो न चान्यः।

मनश्चैन लग्नम गुरोरंघ्रि पद्मे

ततः किं, ततः किं, ततः किं, ततः किं।।

 

कोई ऐसा सोच सकता है कि 'मेरा विदेशों में बहुत आदर सन्मान होता है, मुझे अपने देश में धन्य माना जाता है, सदाचार के मार्ग पर मुझसे बढ़ कर कोई और नहीं है,' पर उसका मन यदि गुरु के चरणकमलों में न लगता हो तो इन सब का क्या अर्थ है, क्या अर्थ है, क्या अर्थ है, क्या अर्थ है ?

 

क्षमामण्डले भूप भूपाल वृंन्दः

सदा सेवितं यस्य पादारविंदम।

मनश्चैन लग्नम गुरोरंघ्रि पद्मे

ततः किं, ततः किं, ततः किं, ततः किं।।

 

किसी का हर समय गुणगान होता रहता हो एवं सारे जगत के राजा, महाराजा, सम्राट उनके सामने उपस्थित हो कर उनका सन्मान करते हों पर यदि उसका मन गुरु के चरणकमलों में न लगता हो तो इन सब का क्या अर्थ है, क्या अर्थ है, क्या अर्थ है, क्या अर्थ है ?

 

यशो मे गतं दिक्षु दानप्रतापा

जगद्धस्तु सर्वं करे यत्प्रसादात।

मनश्चैन लग्नम गुरोरंघ्रि पद्मे

ततः किं, ततः किं, ततः किं, ततः किं।।

 

"मेरे परोपकार, दान के कार्यों एवं मेरे कौशल का यश चारों दिशाओं में फैला हुआ है, जगत की सारी वस्तुएं मेरे गुणों के पुरस्कार के रूप में मेरे हाथों में हैं" ऐसा होने पर भी यदि मन गुरु के चरणकमलों में न लगता हो तो इन सब का क्या अर्थ है, क्या अर्थ है, क्या अर्थ है, क्या अर्थ है ?

 

न भोगे न योगे न वा वाजीराजौ,

न कांता मुखे नैव वित्तेशु चित्तं।

मनश्चैन लग्नम गुरोरंघ्रि पद्मे,

ततः किं, ततः किं, ततः किं, ततः किं।।

 

वैराग्य द्वारा, बाहरी आकर्षणों, योग एवं ध्यान जैसी सफलताओं, पत्नी के सुंदर मुख एवं पृथ्वी की समस्त धन, संपत्ति से भी मन दूर हट गया हो पर यदि मन गुरु के चरणकमलों में न लगता हो तो इन सब का क्या अर्थ है, क्या अर्थ है, क्या अर्थ है, क्या अर्थ है ?

 

अरण्ये न वा स्वस्य गेहे न कार्ये,

न देहे मनो वर्तते मे त्वनर्घ्ये।

मनश्चैन लग्नम गुरोरंघ्रि पद्मे,

ततः किं, ततः किं, ततः किं, ततः किं।।

 

वन में रहने का या घर में रहने का मन का आकर्षण समाप्त हो गया हो, कोई भी सिद्धि प्राप्त करने की इच्छा समाप्त हो गयी हो, अपने शरीर को पुष्ट, स्वस्थ रखने की परवाह भी न रही हो पर यदि मन गुरु के चरणकमलों में न लगता हो तो इन सब का क्या अर्थ है, क्या अर्थ है, क्या अर्थ है, क्या अर्थ है ?

 

 

महान संत कवि कबीर ने एक बार कहा था, "यदि साक्षात ईश्वर भी मेरे सामने प्रकट हो जाएं, तो भी मैं अपने गुरु के चरणकमलों को ही चुनूंगा क्योंकि आखिरकार वही मुझे ईश्वर तक लेकर आये हैं"।

यह मंत्रगीत बताता है कि अपार धन-संपत्ति, ज्ञान, कीर्ति, और यहाँ तक कि यौगिक सफलता भी गुरु की कृपा के बिना व्यर्थ हैं।

संपादकीय टिप्पणी : इस वर्ष, गुरु पूर्णिमा का शुभ पर्व 16 जुलाई को है। लाईवस्ट्रीम पर रजिस्टर करने के लिये कृपया इस लिंक पर क्लिक करें।