अपने गुरु के प्रति अपना आभार कैसे प्रकट करें?
ईशा योग केंद्र में जुलाई 2018 में हुए, 'इन द लैप ऑफ द मास्टर' कार्यक्रम में एक प्रतिभागी साधक ने सद्गुरु से पूछा कि वह अपना आभार कैसे प्रकट करें? सद्गुरु ने समझाया कि हम एक वैश्विक विस्फोट के कगार पर हैं और अगर सब के हृदय भी आभार के भाव से उमड़े रहे हों तो यह समय है उसका भरपूर उपयोग करने का।
प्रतिभागी का प्रश्न : नमस्कारम सद्गुरु । आप को गुरु रूप में पा कर मेरा जीवन पूरी तरह से बदल गया है। मैं अपनी साधना कर रहा हूँ तथा सेवा भी। लेकिन इसके अलावा मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि आप के प्रति अपना आभार कैसे प्रकट करें? कृपया बतायें!
सद्गुरु: आभार कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो आप को दिखाना ज़रुरी है। उन लोगों के सामने आपको अपनी आभार व्यक्त करना चाहिये जो उसकी आशा करते हैं। उनका जीवन लोगों द्वारा कही गयी अच्छी बातों से बेहतर होता है क्योंकि वे नहीं जानते कि वे कौन हैं, क्या हैं और उनकी अपनी कीमत क्या है? एक बात जिसकी मैं आप को गारंटी देता हूँ, कि मेरे बारे में कोई कितनी ही अच्छी बातें करे, उससे मेरा जीवन कुछ बेहतर नहीं हो जाता। न ही किसी के कुछ खराब कहने से मेरे जीवन का मूल्य किसी मायने में कम हो जाता है।
तो अगर आप अपना आभार मेरे लिये प्रदर्शित करेंगे तो वह आभार जैसी कीमती वस्तु का दुरुपयोग ही होगा। आप को इसे व्यक्त करने की ज़रूरत नहीं है। अगर आप आभार का भाव अपने हृदय में रखें तो यह भाव आप के हृदय को औऱ आप को पिघला देगा और आप के अंदर की हर चीज़ को खत्म कर देगा।
अगर आपका अंतरतम पिघल जायेगा तो आप स्वाभाविक रूप से चारों ओर फैलेंगे। यह सबसे अच्छी बात है जो की जा सकती है। लेकिन चूंकि आप अभी भी ऐसी अवस्था में हैं जहां आप कुछ चाहते हैं, मांग रहे हैं तो फिर मैं ऐसा अवसर क्यों गवाऊं?
आश्चर्यजनक मुलाकातें
अभी, हाल ही में, भारतीय वायु सेना को संबोधित करने के लिये मैं दिल्ली में था। वे वायुसेना के शैक्षणिक अधिकारी थे जो सारे देश मे 3000 से ज्यादा स्कूल चला रहे हैं। मैं जब सभास्थल से बाहर निकला और कार में बैठने ही जा रहा था तो वहां चौदह पंद्रह साल की कुछ लड़कियां थीं जो खुशी से कूद रहीं थीं, चीख रहीं थीं, "सद्गुरु, सद्गुरु, सद्गुरु" !!! मैंने उन्हें पूछा, तुम लोग सद्गुरु, सद्गुरु क्यों कर रही हो? मुझे कैसे जानती हो? वे बोलीं, "सद्गुरु, हम आपके वीडियो देखते हैं और उनका अनुसरण करते हैं"। मैंने कहा, "मुझे विश्वास है, तुम लोग बोर हो जाती होगी"। उनका जवाब था, "नहीं, सद्गुरु! हम सब आप को बहुत पसन्द करते हैं, आप धमाल मचाते हैं, सद्गुरु "।
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फिर मैं बैंगलोर आया। रैली फ़ॉर रिवर्स की बोर्ड बैठक थी। उसके बाद, बगीचे में किसी से बात कर रहा था तो वहां दस, ग्यारह साल के तीन लड़के मेरे पास आये और पूछा, " सद्गुरु , क्या हम आप के साथ एक तस्वीर ले सकते हैं"? मैंने पूछा, "तुम लोग मुझे कैसे जानते हो "? वे बोले, "हम आपके वीडियो देखते हैं"। मैंने आश्यर्य से पूछा, "क्या? तुम्हारी माँ तुम्हें मजबूर करती होगी वीडियो देखने के लिये"! उन्होंने बताया, " नहीं, हमारे स्कूल में सभी, हमारे सभी दोस्त आप के वीडियो देखते हैं"। मैं वाकई इस पर विश्वास नहीं कर पाया जब वे बोले, " हमारी कक्षा में हर कोई आप को जानता है, आप एकदम मस्त हैं"। मैंने सोचा, ये खुद में एक बड़ी बात है, दस साल के बच्चे आध्यात्मिक वीडियो देख रहे हैं, वह भी अपने आप!
'मरते को तिनके का सहारा' से ले कर
'एक जीवंत अनुभव' तक
आध्यात्मिक प्रक्रिया को आकर्षक बनाना हमेशा से एक खास उद्देश्य रहा है। उन लोगों के लिये नहीं जो मरने के निकट हैं और मृत्यु के भय से राम-राम रटते हैं। उस प्रकार की आध्यात्मिकता नहीं। जिनकी इच्छा जीवन को अच्छी तरह से जीने की है, वे अवश्य आध्यात्मिक प्रक्रिया को जानना चाहेंगे। सही अर्थों में तो आध्यात्मिक प्रक्रिया एक सामान्य बात होनी चाहिये, जीवन जीने का एक बढ़िया तरीका। जिस तरह से लोग जीते हैं, वही आध्यात्मिक होना चाहिये।
चेतना कोई ऐसी वस्तु नहीं है जो संभाल कर, संग्रहित कर के कहीं रख दी जाए। चेतना तो हर तरफ फैलनी चाहिये। जब दस साल के लड़के आध्यात्मिक बातें सुनने लगें तो यह एक बहुत अच्छी बात है। मैं जब दस साल का था तो निश्चित रूप से ऐसा नहीं करता था। हां, मैं शायद अलग रास्ते पर था। तो मैं एक ऐसे आदमी से मिला जिसके पास असाधारण योग्यता थी। वह एक कुएं में स्पाइडरमैन की तरह चढ़ जाता था। मुझे उससे मिलने में रुचि हुई, इसलिये नहीं कि मुझे कोई आध्यात्मिक प्रक्रिया चाहिये थी बल्कि इसलिये क्योंकि मैंने सोचा कि वह मुझे कोई असाधारण हीरो बना देगा। मैं आज बहुत खुश हूं कि मैं जो भी हरकतें करता रहा, वह अब बच्चों के काम आ रहीं हैं।
हम अब एक बड़े वैश्विक फैलाव, विस्फोट के लिये तैयार हैं। आप को यह नहीं सोचना चाहिये कि यह ईशा या सद्गुरु के लिये कोई बड़ी बात है। यह कोई मुद्दा है ही नहीं। मुद्दा यह है कि अब तो छोटे बच्चे भी आध्यात्मिक प्रक्रिया में रुचि ले रहे हैं। यह एक अद्भुत बात है। अब तक यह समझा जाता था कि आध्यात्मिक प्रक्रिया मनुष्य जीवन का अंतिम चरण है, जिस पर मरते हुए लोग कुछ ऐसे टिकते थे जैसे कोई डूबता हुआ आदमी तिनके को पकड़ता है।
लोग अब तक अपना सारा जीवन बिल्कुल बेहोशी में, सारी बेवकूफियां करते हुए जिये हैं। सारी जिंदगी बस एक ही काम करते रहे-- इकट्ठा करने का-- चाहे धन, संपत्ति या ज्ञान। उन्होंने तो अपना प्रेम और अपनी हंसी भी जमा कर के रखी और किसी के साथ नहीं बांटी। उन्होंने वास्तव में इसे जमा कर के रखा और जब उन्हें लगा कि अब वे मरने वाले हैं, और उन्होंने देखा की जो भी मरता है वह खाली हाथ ही जाता है तो अब अचानक वे “राम, राम, राम” करने लगे।
दुर्भाग्यवश, पिछली कई सदियों से, हमारे देश में भी, आध्यात्मिक प्रक्रिया कुछ ऐसी ही हो गयी थी इसलिए मैं बैंगलोर में इन तीन बच्चों से मिल कर इस बात को ले कर काफी उत्साहित हूं कि अब हम एक विशेष बड़े फैलाव के लिये तैयार हैं। दस, ग्यारह साल के बच्चे, उन्हें किसी गुरु में रुचि है यह बात बहुत ही अद्भुत है।
आभार से भरपूर हॄदय
तो हम अब सारी दुनिया में, विस्फोटित होने के, फैलने के बहुत ही करीब हैं। हमें सारी चीजें सही ढंग से करनी हैं। जब यह होगा तो हमें बहुत सारे लोग चाहिये और यदि हमारे पास ऐसे लोग हैं जिनके हृदय आभार से भरपूर हैं तो हम उनका भी उपयोग करना चाहेंगे। अगर आप ने कभी ऐसा सोचा है, एक क्षण के लिये भी, कि आप को कुछ करना चाहिये तो यही वो समय है। फिर से एक ऐसा अभियान चलाना आसान नहीं होगा। मैं अपनी बड़ाई नहीं कर रहा हूँ। यह मेरे बारे में है ही नहीं। लेकिन यह बात महत्वपूर्ण है कि इससे पहले कभी भी गूढ़ आध्यात्मिक प्रक्रिया को इतने विशाल स्तर पर स्वीकार नहीं किया गया था, जैसे कि अब हो रहा है।
मेरे बाद आपको मेरे लिये कोई सोने का स्मारक नहीं बनाना है। शायद मैं ऐसी परिस्थिति बना दूंगा कि आप लोग मेरे लिये कोई स्मारक न बना सकें, क्योंकि आप जान ही न पायेंगे कि मैं कहाँ गया। मैंने अभी इस बारे में कोई फैसला नहीं किया है, लेकिन हम कोई स्मारक बनाना नहीं चाहते। क्या आप चाहेंगे कि मैं आप के लिये कोई स्मारक बन जाऊँ? नहीं। यह वो संभावना है जो इस पृथ्वी पर एक जीवंत ऊर्जा के रूप में होनी चाहिये। यह सब के दिलों में रहनी चाहिये।
अगर आप के हृदय में आभार उमड़ रहा है तो इसे वहीं रखिये। इसे अपने बेवकूफ दिमागों को पिघालने दीजिये। क्योंकि वे आप के दिमाग ही हैं जो आप का रास्ता रोकते हैं। आप अगर कुछ करना चाहते हैं तो वह अगले 6 से 12 महीनों में कर डालिये क्योंकि अभी ही इसकी आवश्यकता है।
संपादकीय टिप्पणी : सभी सीमाओं से परे जाने की एक दुर्लभ संभावना आप को देते हुए सद्गुरु जिज्ञासु साधक को एक दिव्यदर्शी यात्रा पर परम मुक्ति की ओर ले जा रहे हैं। 'ए गुरु ऑलवेज टेक्स यू फ़ॉर ए राइड' नाम की अपनी ई-पुस्तक में सद्गुरु गुरु-शिष्य संबंध के बारे में एक दुर्लभ अंतर्दृष्टि दे रहे हैं। अपनी कीमत तय कीजिये और डाउनलोड कीजिये।
यह लेख एक अलग रूप में सितंबर 2018 के 'फारेस्ट फ्लॉवर' में प्रकाशित हुआ था।