महात्मा गाँधी : कैसे बनें महान?
हर आदमी महान बनना चाहता है यह जाने बिना कि महानता के गुण क्या हैं, आइए जानते हैं महान बनने के सूत्र:
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प्रश्न: मैं महात्मा गांधी और उनके जैसे दूसरे महान लोगों की तरह बनना चाहता हूं। इसके लिए क्या करना चाहिए?
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सद्गुरु:
महानता की लालसा छुद्र मन से उपजती है। विशिष्ट यानी खास बनने की चाह रखने वाला मन हमेशा बहुत साधारण होता है। यह जरूरी नहीं है कि आप महान या विशिष्ट बनने की कामना करें।
अगर आप अपने जीवन को, अपने जीवन के केंद्रबिंदु, परिधि और प्रकृति को अपनी चिंता और परवाह से दूर ले जाएं, अगर आप ये चिंता छोड़ दें कि “मेरा क्या होगा?”, तो वैसे भी आप महान व्यक्ति होंगे।
अगर आप अपने दिमाग से सिर्फ इस गणना को निकाल दें कि “मेरा क्या होगा” और बस अपनी पूरी क्षमता से काम करें, तो एक तरीके से आप महान हो जाएंगे। एक बार आप ‘मेरा क्या होगा’ की चिंता को हटा दें, तो स्वाभाविक रूप से आप सोचेंगे “मैं अपने आस-पास के समस्त जीवन के लिए क्या कर सकता हूं?” एक बार जब आप ऐसा सोचने लगेंगे तो स्वाभाविक रूप से आप अपनी क्षमताओं को बढ़ाएंगे क्योंकि करने के लिए काफी कुछ है।
महात्मा गाँधी महान क्यों थे
मैं समझ नहीं पाता कि भारत में कैसे बहुत से लोग बेरोजगार हैं, जबकि इस देश में करने के लिए कितना कुछ है। बात सिर्फ इतनी है कि आप इस बात की कुछ ज्यादा परवाह करते हैं कि ‘मेरा क्या होगा’। आप सिर्फ एक खास तरीके का काम करना चाहते हैं, आप सिर्फ कुछ खास जरूरतों को पूरा करने के लिए काम करते हैं, इसलिए आपको लगता है कि आप बेरोजगार हैं, वरना इस देश में करने के लिए कितना कुछ है, आप बेरोजगार कैसे हो सकते हैं?
इसलिए बस इस एक हिसाब को भूल जाएं और अपनी पूरी क्षमता से काम करें, जो होना है, वह होगा ही। लोग आपको महात्मा बोल भी सकते हैं, नहीं भी बोल सकते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन आप एक महात्मा की तरह जीवन जिएंगे, आप एक महात्मा होंगे। महात्मा का अर्थ है कि आप जीवन के एक महान अंश है।
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सिर्फ प्रतिबद्धता से इस दुनिया में अद्भुत चीज़ें की जा सकती हैं। महात्मा गांधी इस बात का एक सच्चा उदाहरण हैं। अगर आप इन्हें ध्यान से देखेंगे तो आप पाएंगे, कि इनमें कोई विशेष प्रतिभा नहीं थी। बचपन में किसी को उनमें कोई खास संभावनाएं नहीं नजर आईं। वे असाधारण प्रतिभा के धनी नहीं थे।
वे कोई कलाकार, वैज्ञानिक, यहां तक कि एक अच्छे वकील भी नहीं थे। वे भारत में वकालत का काम अच्छे से नहीं कर पाए, और यही कारण था कि वे दक्षिण अफ्रीका गए। वहाँ भी वे बहुत ज्यादा कामयाब नहीं थे। पर अचानक वे किसी चीज़ के प्रति प्रतिबद्ध हो गए। वे इतने ज्यादा प्रतिबद्ध हो गए कि वे एक महामानव बन गए।
मुझे याद है उन्होंने अपने पहले कोर्ट केस के बारे में क्या लिखा था - वे जैसे ही अपने केस की वकालत करने के लिए खड़े हुए उनका दिल डूब गया। क्या यह सुनकर आपको लगता है कि हम महात्मा गांधी की बात कर रहे हैं? लेकिन बाद में इन्होने लाखों लोगों को प्रेरित किया। जीवन की सिर्फ एक घटना से, उनकी सारी पहचान बदल गयी।
वे साउथ अफ्रीका आजीविका के लिए गए थे और वे एक वकील के तौर पर ठीक-ठाक काम कर रहे थे। एक दिन उन्होंने एक फर्स्ट क्लास ट्रेन टिकट खरीदी, और ट्रेन से कुछ दूर तक का सफ़र तय किया। अगले स्टेशन पर उसी डिब्बे में एक साउथ अफ्रीका का रहने वाला एक गोरा चढ़ा। इसे एक भूरी चमड़ी वाले को फर्स्ट क्लास में सफ़र करते देख अच्छा नहीं लगा, तो उसने टिकेट कलेक्टर को बुल लिया। टिकेट कलेक्टर ने कहा - "बाहर निकल जाओ"। महात्मा गांधी ने कहा - "मेरे पास फर्स्ट क्लास टिकट है"।
"इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, बाहर निकल जाओ।"
"नहीं, मेरे पास फर्स्ट क्लास टिकट है। मैं क्यों बाहर जाऊं?"
उन्होंने महात्मा गांधी को सामान समेत बाहर फेंक दिया और वे प्लेटफार्म पर जाकर गिरे। वे घंटों तक वहीँ बैठे रहे।
"मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ? मैंने फर्स्ट क्लास टिकट खरीदी थी। मुझे ट्रेन से बाहर क्यों फेंक दिया गया?" वे सोचने लगे। इसी पल उन्होंने लोगों की परेशानियों से खुद को एकाकार कर लिया। उससे पहले तक, रोजी-रोटी, कानून और पैसा कमाना उनके लिए महत्वपूर्ण थे।
पर अब उन्होंने खुद को एक ज्यादा बड़ी समस्या से जोड़ लिया। उन्होंने अपनी पुरानी पहचान तोड़ दी, और एक बड़ी पहचान अपना ली।
अगर हम अपने द्वारा चुने गए मार्ग के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध हों, तो इसका फल अवश्य मिलता है।
गांधी ने लाखों लोगों को बिना किसी बड़े प्रयत्न के प्रेरित कर दिया। सिर्फ भारत में ही नहीं, आप दुनिया में कहीं भी जाकर महात्मा का नाम लें तो आप एक आदर का भाव महसूस करेंगे। यह सब तब की बात है जब भारत में बहुत से नेता थे, जो कि भारत में महामानव की तरह थे। वे सभी ज्यादा प्रतिभावान, ज्यादा अच्छे वक्ता और ज्यादा पढ़े-लिखे थे। फिर भी महात्मा गांधी, उन सब से आगे निकल गए, बस अपनी प्रतिबद्धता की वजह से।
चाहे जो कुछ भी हो, जीवन या मृत्यु, आपकी प्रतिबद्धता नहीं बदल चाहिए। अगर आप सच में प्रतिबद्ध हैं, तो आप जो भी करेंगे उसमें अपना सम्पूर्ण योगदान देंगे। अगर प्रतिबद्धता की कमी है, तो कहीं न कहीं आप अपना ध्येय भूल जाएंगे। अगर हम ध्येय ही भूल जाएं तो लक्ष्य तक पहुँचने का सवाल ही नहीं उठता, है न?
तो प्रतिबद्धता ऐसी चीज़ है जो हमें खुद ही अपने भीतर लानी होगी। अगर हम अपने द्वारा चुने गए मार्ग के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध हों, तो इसका फल अवश्य मिलता है। अगर फल न भी मिले, तब भी किसी प्रतिबद्ध व्यक्ति के लिए हार जैसी कोई चीज़ नहीं होती। अगर वो दिन में 100 बार भी गिर जाए, तो भी फर्क नहीं पड़ता, फिर खडा हो कर चलने लगेगा।
प्रतिबद्धता का मतलब आक्रामकता नहीं है; इसे ठीक से समझा जाना चाहिए। इसी सन्दर्भ में महात्मा गांधी का उदाहरण बिलकुल सटीक है। वे भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध थे, पर साथ ही वे अंग्रजों के खिलाफ नहीं थे। यही सबसे महान पहलू है, है न? इससे उनकी परिपक्वता का पता चलता है।