क्या नींद में भी जागरूक रहा जा सकता है?
क्या यह संभव है कि हम नींद में भी जागरूक और होशपूर्ण रहें? शून्य एवं सुषुप्ति की बात करते हुए सदगुरु समझा रहे हैं कि ऐसी अवस्था का अनुभव लेने के लिये क्या करना पड़ता है?
प्रश्नकर्ता: नमस्कारम सद्गुरु। जब हम सो रहे होते हैं तो हम बेहोशी की हालत में होते हैं। क्या कोई तरीका है जिससे सोते हुए भी हम जागरूक रहें?
सद्गुरु: आप जब सोते हैं तब बस सोईये, कुछ और करने की कोशिश मत कीजिए। एक सुंदर कहानी है। कई सालों तक वे सात ऋषि, जिन्हें हम सप्तर्षि कहते हैं, आदियोगी के साथ रह कर साधना करते रहे, सीखते रहे तथा पूर्ण रूप से उनसे जुड़े रहे। आदियोगी और उनके बीच बांटने की प्रक्रिया इतनी गहराई से हुई कि उनका पूरा जीवन बस आदियोगी ही थे। फिर एक दिन, आदियोगी ने कहा, "अब जाने का समय आ गया है, अब आप लोगों को यह ज्ञान सारी दुनिया को देना होगा"। उन्होंने उन लोगों को दूर दूर के क्षेत्रों में जाने को कहा। एक को उन्होंने मध्य एशिया भेजा, एक को उत्तरी अफ्रीका तो एक को दक्षिणी अमेरिका भेजा, एक अन्य को दक्षिण पूर्व एशिया और एक को दक्षिणी भारत भेजा, एक को उस क्षेत्र में जाने को कहा जो आज भारत का हिमालय क्षेत्र है और एक वहीं, उन्हीं के साथ रह गया।
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अगर 15,000 साल पहले आप ने किसी को दक्षिणी अमेरिका जाने को कहा होता, तो ये वैसा ही था जैसे आपने उसे किसी दूसरी गैलेक्सी में जाने को कहा हो। तो सप्तऋषियों ने कहा, "हमें नहीं मालूम कि हम कहाँ जा रहे हैं, किस तरह के लोग वहाँ रहते हैं, कैसा व्यवहार वे हमारे साथ करेंगे और वे इस चीज़ के लिये तैयार हैं भी कि नहीं? अगर हम किसी संकट में पड़ जायें या हम यह ज्ञान उन लोगों को उस तरह न दे पायें जैसा आप चाहते हैं, तो क्या आप हमारे साथ होंगे? आदियोगी ने उनकी तरफ विलक्षण दृष्टि से देखा और कहा, "अगर तुम लोग मुश्किल में पड़ जाओ या तुम्हारे जीवन को खतरा हो या तुम्हारे काम में कोई तकलीफ आई, तो मैं सो जाऊंगा"! उन्हें जवाब मिल गया। लेकिन अगर आज मैं आपसे ये कहूँ तो आप बहुत असुरक्षित और अपमानित महसूस करेंगे। "मैं इन्हें अपनी तकलीफ बता रहा हूँ और ये कह रहे हैं कि ये सो जायेंगे"!
अगर आप जागरूकता के साथ सोना चाहते हैं तो आप को अपने शरीर का कोई भाव नहीं होना चाहिये। जब आपकी शरीर के रूप में पहचान पूरी तरह से टूट जाए, तभी आप जागरूकता के साथ सो सकेंगे। हम जब जागते हैं तब हम होश में होते हैं लेकिन हमारी उर्जायें कई तरह से काम पर लगी होती हैं। हमें बैठना होता है, बोलना होता है, कुछ न कुछ काम करना होता है। लेकिन यदि मैं जागरूकता के साथ सोता हूँ तो मेरी उर्जायें पूरी तरह से एकत्रित रहती हैं। और मैं चेतन भी होता हूँ। तो इसका अर्थ ये है कि मैं अपनी कार्यक्षमता के शिखर पर होता हूँ। अतः जब शिव कहते हैं, "अगर आप मुश्किल में हैं तो मैं सो जाऊंगा" तो इसका अर्थ ये है, "मैं तुम्हारे लिये सबसे अच्छा प्रयत्न करूँगा, सर्वोत्तम काम करूंगा", क्योंकि उस समय वे अपनी सर्वोत्तम अवस्था में होते हैं।
आप में से जिन लोगों को शून्य ध्यान में दीक्षित किया गया है, उनको कभी कभी, यहाँ वहाँ कुछ ऐसे क्षणों का अनुभव हुआ होगा जिन्हें हम योग में सुषुप्ति अवस्था कहते हैं - जिसका अर्थ है गहरी नींद सोना पर बिल्कुल जागृत रहना। जिस दिन आप के लिये ये सुषुप्ति अवस्था बस दो या तीन सेकंड भी टिक जाये तो फिर रात को आप सो नहीं सकेंगे, आप एकदम होश में रहेंगे, शानदार और सचेत।
जब आपने शरीर के रूप में अपनी पहचान नहीं बनाई है, सिर्फ तभी आप के लिये जागरूकता के साथ सोने की संभावना बनेगी। एक बार एक कछुए का छोटा बच्चा बहुत प्रयत्न के साथ, धीरे धीरे, एकदम ध्यान से, सही ढंग से 24 घंटे का समय ले कर पेड़ पर चढ़ा, फिर एक डाल से कूद गया और सीधा जमीन पर आ गिरा। फिर से अगले 24 घंटों में रेंगते हुए चढ़ा, फिर कूदा और जमीन पर आ गिरा। बार बार यही होता रहा।
चार दिनों के बाद सामने के पेड़ पर बैठे दो पक्षियों में से एक बोला, "मुझे लगता है कि अब हमें उसे बता देना चाहिये कि वह हमारी गोद ली हुई संतान है"। तो मुझे भी लगता है कि मैं आप को बता दूँ, "होशपूर्वक सोने के लिये प्रयत्न करना ज़रूरी है पर ये पर्याप्त नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको अपने और अपने भौतिक स्वभाव के बीच एक फासला बनाना होगा"।