सद्‌गुरु: शौच या साफ-सफाई, किसी के भी आध्यात्मिक विकास का एक अहम पहलू है। साफ-सफाई की बात करें तो यह केवल हमारे शरीर के बारे में नहीं, इसका हमारे आसपास के माहौल से भी गहरा नाता होता है। हम अपनी इंद्रियों(आँखों, कानों, छूने इत्यादि) के जरिए जो भी ग्रहण करते हैं, वह हमारे भीतर गंदगी पैदा कर सकता है, या फिर हमारे कल्याण का कारण बन सकता है।

बुरे अनुभवों से बचना होगा

हम जो भी महसूस करते हैं, अगर वह खुशनुमा हो तो इसका एक अलग अनुभव होता है। अगर वही हमारी इंद्रियों(आँखों, कानों, छूने इत्यादि) के लिए खुशनुमा न हो, तो यह हमें एक बुरा अनुभव देता है। हमारे आसपास का माहौल हमारी इंद्रियों के लिए खुशनुमा नहीं होगा तो हमारे मन में बनने वाली छवी, हमारे अनुभव, सुखदायक नहीं होंगे। जब आप इस तरह अपने भीतर अप्रिय भाव पैदा करते हैं, तो ऐसे में अनुभव की आनंददायक अवस्था को पाना और उसे बनाए रखना कठिन हो जाता है।

 हमारे आसपास का माहौल हमारी इंद्रियों के लिए खुशनुमा नहीं होगा तो हमारे मन में बनने वाली छवी, हमारे अनुभव, सुखदायक नहीं होंगे।
आप दुखी हैं या आनंदित, यह मूल रूप से इस पर निर्भर करता है कि आप भीतरी तौर पर अपने साथ क्या कर रहे हैं। एक आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब है कि आप जो भी कर रहे हैं, वह सचेतन होकर कर रहे हैं - आप अपने जीवन के अनुभव को खुद रच रहे हैं। अगर ऐसा होना है, तो यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम अपने इंद्रियों(आँखों, कानों, छूने इत्यादि) के माध्यम से मिलने वाले बोध को अप्रिय न बनाएं।

जब आप बिस्तर लगाएँ ...

मुझे पूरा यकीन है कि हर संस्कृति में, चाहे आपके माता-पिता या फिर कम से कम आपके दादा-दादी ने आपको सिखाया होगा कि अपने कपड़े और बिस्तर को ठीक से रखना चाहिए। भारत में खासतौर पर कहा जाता है कि अगर आप अपने बिस्तर की चादर को तुड़ी-मुड़ी और सिलवटों से भरी छोड़ देंगे, तो उसमें भूत आ कर बस जाएँगे। जब आप सोएँगे तो वे आपके साथ सोएंगे और आपको परेशान करेंगे। इसी बात को अंग्रेजी में भी कहा जाता है कि आप जैसा बिस्तर बनाएंगे, वैसी ही आपकी नींद होगी। आज वैज्ञानिकों ने हमें बताया है कि सारा अस्तित्व एक ऊर्जा है जो लाखों रूपों में खुद को प्रकट कर रहा है। जैसे ऊर्जा रूपों को रचती है, रूप भी ऊर्जा को पैदा कर सकते हैं। आपके आसपास हर रूप, एक तरह की ऊर्जा पैदा कर रहा है।

हम जिस तरह के आकार बनाते हैं, हमारे आसपास जिस तरह के आकार हैं, या हम जिस तरह के ढांचों में रहते हैं, उनका हमारी हर चीज पर गहरा असर होता है। अगर हम अपने बैठने, खुद को व्यवस्थित रखने और आसपास की चीजों को जमाने के बारे में थोड़ी सजगता रखें, तो हम अपनी जगह को अपने भीतरी तरक्की के लायक बना सकेंगे जो हमारी आध्यात्मिक प्रगति को कहीं आसान बना देगी। अगर आपको एक जगह से दूसरी जगह जाना हो, तो आप कैसे भी जा सकते हैं, लेकिन अगर रास्ता अच्छी तरह से बना हो तो आप वहां आसानी से पहुंच सकेंगे। इसी तरह अगर हमारे आसपास की जगह व्यवस्थित हो तो भीतर की ओर उतरने में आसानी होगी।

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