महाभारत की कहानी : सिर्फ सुनें ही नहीं, इसे जीएं
इस कहानी के द्वारा हम एक नई श्रृंखला - महाभारत शुरू करने जा रहे हैं। कहानियों की ये श्रृंखला ईशा योग केंद्र में साल 2012 में हुए उत्सव महाभारत से ली गयी है, और हमारा प्रयास है कि आप महाभारत कहानी की आध्यात्मिक संभावनाओं को जान सकें
इस कहानी के द्वारा हम एक नई श्रृंखला - महाभारत शुरू करने जा रहे हैं। कहानियों की ये श्रृंखला ईशा योग केंद्र में साल 2012 में हुए उत्सव महाभारत से ली गयी है, और हमारा प्रयास है कि आप महाभारत कहानी की आध्यात्मिक संभावनाओं को जान सकें
महाभारत के रचयिता और लेखक
महाभारत का पहला संस्करण स्वयं गणपति ने लिखा था, जिसमें लगभग 200,000 श्लोक हैं। जब व्यास महाभारत की कहानी सुनाना चाहते थे और उन्हें इसे लिखने के लिए किसी की जरूरत थी, तो उन्हें खुद गणपति से बेहतर कोई लेखक नहीं मिला। मगर गणपति इस तरह के लिखने-पढ़ने के काम से ऊब चुके थे। उन्होंने कहा, ‘एक बार जब मैं लिखना शुरू करूं, तो आपको एक पल के लिए भी रुकना नहीं होगा। मेरे एक शब्द लिखने तक अगला शब्द पहले ही तैयार हो जाना चाहिए। अगर आप रुके, तो मैं यह काम वहीं छोड़ दूंगा। आपको इस तरह कहानी सुनाते रहना होगा कि मुझे रुकना न पड़े। क्या आप इसके लिए तैयार हैं?’ व्यास बोले, ‘ठीक है, क्योंकि यह कहानी ऐसी नहीं है, जो मैं रचने वाला हूं। यह कहानी मेरे अंदर जीवंत है, जो अपने आप अभिव्यक्त होगी। मेरी शर्त बस यह है कि आपको एक भी शब्द बिना समझे नहीं लिखना है।’
दोनों ने बहुत चतुराई से समझौता किया और व्यास ने कहानी सुनाना शुरू किया। इन 200,000 श्लोकों में सैंकड़ों चरित्रों का वर्णन किया गया है, वे चरित्र जो थोड़े समय के लिए कहानी में नहीं है। उनमें से हरेक के जीवन के सभी पहलुओं का वर्णन बहुत विस्तार से किया गया है। इसमें उनके जन्म, उनके बचपन, उनकी शादी, उनके संन्यास, उनकी साधना, उनकी विजय, उनकी खुशियों, उनके दुखों, उनकी मृत्यु का वर्णन है। ज्यादातर के पिछले और अगले जन्मों के बारे में बताया गया है। अगर हम ओडिसी और इलियाड को मिला दें, तो महाभारत उससे भी 10 गुना लंबा है। निश्चित रूप से, हम यह पूरी कहानी नहीं बल्कि आज के समय में यह जितनी प्रासंगिक है, उतने पहलुओं के बारे में बताने जा रहे हैं।
महाभारत के बारे में राय न बनाएं, कहानी को जीयें
मैं चाहता हूं कि आप इस कहानी को जिएं। मैं नहीं चाहता कि यहां 21वीं सदी में बैठकर आप 5000 साल पहले मौजूद रहे लोगों के बारे में राय कायम करें, यह बहुत गलत होगा। मैं पक्के तौर पर कह सकता हूं कि अगर वे अभी जीवित हो जाएं और आपको देखें, तो आप जिस तरह हैं, उनकी राय आपके बारे में बहुत बुरी होगी। यह अच्छे या बुरे, सही या गलत की बात नहीं है। इसका संबंध इंसानी प्रकृति की ऐसी खोज करने से है, जैसी कभी भी कहीं और नहीं की गयी है। यह सिर्फ एक खोज, एक अन्वेषण है, इसलिए निष्कर्ष न निकालें।
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इस कहानी को सबसे पहले व्यास लेकर आए। उन्होंने यह चुनौती इसलिए ली क्योंकि वे इस कहानी को जीवित रखना चाहते थे। तब से, हजारों लोगों ने हल्के-फुल्के रूपांतर के साथ अपने तरीके से महाभारत की कहानी लिखी है। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में, अलग-अलग जातियों, वर्गों और जनजातियों में इसके रूपांतरण देखने को मिलते हैं। हर कथाकार ने अपने सामने बैठी भीड़ के मुताबिक अपने रूपांतर किए हैं। मगर रूपांतरों से भी यह कहानी बिगड़ी नहीं है, बल्कि और समृद्ध हुई है क्योंकि इन 5000 सालों में किसी ने भी कभी इस कहानी पर राय देते हुए उसे दूषित नहीं किया है। आपको भी ऐसा नहीं करना चाहिए। इस तरह न सोचें कि ‘कौन अच्छा है? कौन बुरा है?’ यह कहानी ऐसी नहीं है। ये लोग सिर्फ इंसान हैं।
धर्म और अधर्म का संबंध सही और गलत, अच्छे या बुरे से नहीं है। यह राजाओं, पुजारियों या आम नागरिकों के लिए किसी तरह की आचार संहिता नहीं है। यह एक नियम, एक सिद्धांत है, जिसे अगर आप समझ लें, तो यह आपको सत्य की ओर लेकर जाता है। अगर आप इस कहानी को जिएं, तो यह एक बहुत शक्तिशाली आध्यात्मिक प्रक्रिया है। अगर आप कहानी के बारे में राय कायम करेंगे, तो यह आपके जीवन में बहुत भ्रम की स्थिति ला सकती है क्योंकि इसके बाद आपको पता नहीं चलेगा कि क्या अच्छा है और क्या बुरा, क्या करना चाहिए और क्या नहीं, परिवार में रहना चाहिए या जंगल चले जाना चाहिए, युद्ध लड़ना चाहिए या नहीं। अगर आप इस कहानी को जिएं, तो आप समझ पाएंगे कि धर्म इस जीवन प्रक्रिया को चैतन्य या ईश्वर तक जाने वाला सोपान बना सकता है। वरना अप इस जीवन को नरक की तरफ ले जाएंगे – बहुत से लोग यही कर रहे हैं।
स्वर्णिम काल - बाहर और भीतर
समय और शरीर पर समय का प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण है। अभी आधी रात को हम संध्या या संधि काल में हैं। आपमें से जो लोग अपने रोजाना के जीवन में दिन से रात और रात से दिन, पूर्वान्ह से अपराह्न और आधी रात की अलग-अलग संध्या का इस्तेमाल करते हैं, वे जानते हैं कि यह समय कितना महत्वपूर्ण होता है। मगर अभी हम दो युगों के बीच की संध्या की बात करेंगे। मानव शरीर, मन, ऊर्जा – मनुष्य की यह संपूर्ण इलेक्ट्रिकल प्रणाली, जिस तरह सृष्टि की इलेक्ट्रिक प्रणाली के साथ तालमेल करती है, उस पर समय का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। यह एक बड़ी संभावना की ओर ले जा सकता है। अगर आप उसके साथ चलते हैं, तो आप एक स्थिति में होंगे। अगर आप उसका विरोध करते हैं, तो आप दूसरी स्थिति में होंगे।
जैसे-जैसे वोल्टेज बढ़ता है, अगर आप सही तरह के उपकरण हैं, तो आप खूब तेज चमकेंगे– वरना आप पस्त हो जाएंगे। साथ ही, चाहे कोई भी समय, कोई भी युग हो, हम अभी किसी भी ग्रहीय स्थिति में हों, उसके बावजूद, इंसान व्यक्तिगत तौर पर इन सब के ऊपर उठ सकता है। कुछ भी हो, इंसान व्यक्तिगत स्तर पर अपने भीतर स्वर्णिम काल में रह सकते हैं। बुरे से बुरे समय में भी, किसी इंसान के लिए व्यक्तिगत स्तर पर उसके परे होने की संभावना हमेशा होती है।
सही नजरिया और माहौल
आपमें से जो लोग समय के ऊपर होने की कोशिश करते हैं और जो लोग समय के साथ पिघलना चाहते हैं, उन के लिए दृष्टिकोण अलग-अलग होंगे। मगर दोनों में चाहे जो भी हो, मैं चाहता हूं कि आप कहानी का आनंद उठाएं, उसके साथ बह जाएं और उसे जिएं, जैसे कि यह आपकी अपनी कहानी हो। महाभारत के अंत के बारे में आप जो कुछ भी जानते हैं, उसे एक ओर रख दें। अगर आप अपने जीवन की सुंदरता को खोजना चाहते हैं, तो आपको नतीजे के बारे में सोचे बिना इस कहानी की सुंदरता को खोजना होगा। कहानी एक अद्भुत मौका होता है जिससे आप बिना एक भी खरोंच लगे महानतम युद्ध से गुजरने का अनुभव ले सकते हैं। ये महत्वपूर्ण है क्योंकि मानव का अनुभव मुख्य रूप से उसके विचार और भावनाओं से तय होता है।
हम आकाशीय क्षेत्र के लिए जितना अधिक उपलब्ध होते हैं, जितना अधिक ऊर्जा के स्थान में होते हैं, अपने अनुभव को आकार देने की हमारी क्षमता उतनी ही बेहतर हो जाती है क्योंकि बाहरी वातावरण इसके प्रति संवेदनशील होता है। आदियोगी (आदियोगी आलयम में स्थित आदियोगी लिंग) यहां अपने संपूर्ण तेज के साथ बैठे हैं। इससे बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती। वह दखलअंदाजी नहीं करेंगे। महाभारत में भी वह सिर्फ वहां मौजूद थे। उनके पास जो भी गया, जो कुछ भी मांगा, उन्होंने दे दिया। उन्होंने वरदान मांगा – उन्हें मिला। कल उनके दुश्मन ने एक वरदान मांगा, उसे भी मिल गया। आप हैरान हो सकते हैं कि अगर यह आपके भगवान हैं, तो उन्होंने आपके दुश्मन की मदद क्यों की? मगर वह ऐसे ही हैं – इसलिए सावधान रहना बेहतर है। वह आपको दोस्त की तरह या किसी और को दुश्मन की तरह नहीं देखते। उन्होंने अपनी दो आंखें मूंद रखी हैं, उनकी सिर्फ एक आंख, तीसरी आंख खुली है। वह लोगों में अंतर नहीं करते। जो भी सही ग्रहणशीलता के साथ उनके पास जाता है, उसे अपनी मुंहमांगी चीज मिलती है। आपको ग्रहणशीलता की सही भावना के साथ यहां मौजूद होना होगा। उसके लिए जरूरी माहौल हम तैयार करेंगे।