सेक्स जीवन में इतना अहम क्यों हो गया है?
मानव यौनिकता या सेक्शुआलिटी पाप है या पवित्र चीज़? सद्गुरु कहते हैं कि सेक्स में कुछ भी गलत या सही नहीं है क्योंकि वह भौतिक अस्तित्व का एक जरुरी हिस्सा है मगर उसकी भूमिका सीमित है। वह बता रहे हैं कि यौन आवेग को स्वीकार करने के साथ-साथ इसे जिम्मेदारी से संचालित करना भी महत्वपूर्ण है।
सद्गुरु: ऐसा क्यों है कि जीवन की सभी आकर्षक चीजें या तो अनैतिक है या गैरकानूनी या मोटापा बढ़ाने वालीं? युवा अक्सर यह सवाल पूछते हैं या इस बारे में सोचते हैं। पहले ‘अनैतिक’ शब्द को देखते हैं। ज्यादातर इस शब्द का प्रयोग करते समय लोग सेक्स की ओर इशारा कर रहे होते हैं। सेक्स ऐसा विषय है जिस पर लोग अपने जीवन में काफी विचार खर्च करते हैं। कई लोगों के लिए एक साधारण जैविक जरूरत पूरे जीवन चलने वाले जुनून में बदल गई है।
सेक्स को समझना होगा
इसे समझते हैं: सेक्स हमारे अंदर एक मामूली सहज प्रवृत्ति है, एक रासायनिक बदलाव जो किशोरावस्था के साथ आता है। यह एक आनंदपूर्ण अनुभव है क्योंकि यह हमें प्रजनन(बच्चे पैदा करना) की ओर प्रेरित करने का प्रकृति का तरीका है। समय के साथ हमने प्रजनन(बच्चे पैदा करना) के पक्ष को ऐच्छिक बना दिया है मगर आनंद मौजूद है। इसमें कुछ भी सही या गलत नहीं है। अपनी यौनिकता (सेक्शुआलिटी) को भौतिक अस्तित्व के एक जरुरी अंग के रूप में स्वीकार करना महत्वपूर्ण है। दो लोगों की कामोत्तेजना (सेक्शुअल अर्ज) के कारण ही आपका और मेरा अस्तित्व है। यह एक सच्चाई है।
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सेक्स का महत्व कब कम होने लगता है?
साथ ही, क्या हम सिर्फ अपनी कैमिस्ट्री की कठपुतलियां हैं? बिल्कुल नहीं। मानव जीवन में सेक्स की भूमिका है, मगर वह सीमित है। मन पर अधिक ध्यान केंद्रित करने वाले लोग पाते हैं कि उनकी कामुकता कम प्रबल है। जब आप मन से अधिक गहरे सुख पा लेते हैं, तो कामुकता (सेक्शुआलिटी) की अहमियत कम हो जाती है।
अपनी बुद्धि को इसका गुलाम बनाना दुःख की बात है
दुर्भाग्यवश, जो लोग हारमोनल प्रक्रिया को अपनी बुद्धि पर हावी होने देते हैं, वे अपना अंदरूनी संतुलन खो बैठते हैं। यह दुख की बात है कि बहुत सारे युवा लोग अपनी बुद्धि को ऑनलाइन या फिल्मों में देखी और पढ़ी चीजों का गुलाम बना लेते हैं। इसका नतीजा सेक्शुआलिटी के प्रति एक पहले-से-तय प्रतिक्रिया होता है, आपकी प्रतिक्रिया आंतरिक जागरूकता और संतुलन पर आधारित नहीं होती। लोग यौनिकता(सेक्शुआलिटी) के पक्ष और विपक्ष में बोलते रहेंगे। दोनों की जरूरत नहीं है। हमें बस शरीर और दिमाग में एक खास आंतरिक संतुलन लाने की जरूरत है ताकि यौनिकता(सेक्शुआलिटी) को उसकी स्वाभाविक जगह मिल जाए। यौन आवेग को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है, मगर साथ ही उसे जिम्मेदारी से संचालित करना भी। कम उम्र से शुरू किए जाने पर कुछ सरल योग काफी लाभदायक हो सकते हैं क्योंकि यह किसी भी उपदेश के मुकाबले शरीर और दिमाग को अधिक कुशलता से तालमेल में लाते हैं।
संपादक का नोट : चाहे आप एक विवादास्पद प्रश्न से जूझ रहे हों, एक गलत माने जाने वाले विषय के बारे में परेशान महसूस कर रहे हों, या आपके भीतर ऐसा प्रश्न हो जिसका कोई भी जवाब देने को तैयार न हो, उस प्रश्न को पूछने का यही मौक़ा है! - unplugwithsadhguru.org