शरीर को सब कुछ याद रहता है
किसी अनजान व्यक्ति के हाथों से खाना न लेना, दूसरों से हाथ मिलाये बिना नमस्कार करना , अग्नि स्नान और साधुओं का अपने कपड़ों को मिट्टी में रंगना - कुछ ऐसी भारतीय परम्पराएं हैं, जो अक्सर देखने को मिलतीं हैं। क्या है इन परम्पराओं का विज्ञान...?
ये परम्पराएं समाज से नहीं, अस्तित्व से जुड़ी हैं
प्रश्न: आपने कहा कि यदि आप अलग-अलग लोगों के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं, तो यह आपकी ऊर्जा को अव्यवस्थित कर सकता है। मैं खुद को इसी स्थिति में पा रहा हूं। मैंने एक रिश्ता तोड़कर दूसरा रिश्ता बनाया, मगर अब मैं इसे लेकर अपराधबोध और चकराया हुआ महसूस कर रहा हूं।
सद्गुरु: अपराधबोध या भ्रम आपके दिमाग में होता है। यह बिना किसी शारीरिक संपर्क के भी आपको घेर सकता है। अपराधबोध एक सामाजिक चीज है। आप जिस चीज को लेकर अपराधबोध महसूस करते हैं, वह मुख्य रूप से इस पर निर्भर करता है कि जिस समाज में आप रहते हैं, उसमें लोगों ने आपको सही और गलत के बारे में क्या बताया है। जिस चीज को लेकर आप एक समाज में अपराधबोध महसूस करते हैं, उसी पर आप दूसरे समाज में अपराधबोध नहीं महसूस करेंगे।
इस संदर्भ में मैं ऋणानुबंध का उल्लेख कर रहा था, जो एक तरह की शारीरिक याददाश्त होती है। आप कई तरीकों से ऋणानुबंध जमा करते हैं, मगर किसी दूसरे तरह के संपर्क या आपके संपर्क में आने वाले किसी पदार्थ के मुकाबले शारीरिक संबंध याददाश्त के मामले में आपके ऊपर सबसे अधिक प्रभाव छोड़ते हैं।
यह अपराधबोध या अपराधबोध से मुक्त होने का सवाल नहीं है। इसका संबंध सामाजिक अनुकूलन (कंडीशनिंग) से नहीं है – हम सिर्फ जीवन के अस्तित्व संबंधी पहलुओं को देख रहे हैं। शरीर की अपनी याददाश्त होती है।
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पुरुषों और स्त्रियों में ऋणानुबंध
ऋणानुबंध वह शारीरिक याददाश्त है, जो आपके अंदर होती है। यह याददाश्त रक्त संबंधों या शारीरिक रिश्तों से जमा होती है। शारीरिक संबंधों के मामले में एक स्त्री के शरीर में ज्यादा याददाश्त होती है। जेनेटिक तत्व के मामले में पुरुष के शरीर में अधिक याददाश्त होती है। आम तौर पर अठारह से इक्कीस साल की उम्र के बाद एक स्त्री के शरीर में पुरुष के मुकाबले कम शारीरिक याददाश्त होती है। प्रकृति ने ऐसा इसलिए किया है क्योंकि एक स्त्री को एक ऐसे पुरुष के बच्चे को जन्म देना होता है, जो उससे जेनेटिक रूप में जुड़ा हुआ नहीं होता। बच्चे को पूरे समय तक कोख में रखने के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि उसकी जेनेटिक याददाश्त कम हो।
बहुत सी महिलाएं यह बात दावे के साथ कह सकती हैं कि जैसे ही आप गर्भवती होती हैं, बिना किसी वजह के आपके माता-पिता और दूसरे रिश्तेदारों के लिए आपकी भावनाएं कुछ हद तक कम होने लगती हैं। कम से कम भारत में, गर्भवती होने पर आप व्यावहारिक कारणों से अपनी मां से मदद लेने के लिए उसके पास जाती हैं। मगर भावनात्मक संबंध काफी कम हो जाता है। यह प्रकृति की व्यवस्था है ताकि एक मां अपने शरीर के भीतर बच्चे के पिता के जेनेटिक तत्व को आराम से समायोजित कर सके। अगर मां के शरीर में अपने माता-पिता की याददाश्त बहुत अधिक होगी, तो अलग जेनेटिक तत्व धारण करने वाले अजन्मे बच्चे को मेहनत करनी पड़ेगी।
ऋणानुबंध - जेनेटिक तत्वों से अलग है
ऋणानुबंध की बराबरी उन जेनेटिक तत्वों से नहीं की जा सकती, जो माता-पिता से बच्चे में आते हैं। यह एक भौतिक याददाश्त है कि आप कहां से आए हैं, जरूरी नहीं है कि इसका संबंध आपकी त्वचा के रंग, नाक के आकार, आपके शारीरिक गठन, आदि से हो।
शरीर हर तरह की नजदीकी या अंतरंगता याद रखता है – न सिर्फ दूसरे शरीर के साथ, बल्कि किसी भी भौतिक पदार्थ के साथ। कुछ पदार्थ दूसरों के मुकाबले ज्यादा असर छोड़ते हैं। आप देखेंगे कि अगर कोई योगी कहीं बैठता है, तो उससे पहले वह आगे-पीछे, ऊपर-नीचे जाकर देखेगा, अलग-अलग जगहों को महसूस करेगा और फिर एक जगह बैठेगा। क्योंकि वे अपने तंत्र के लिए उपयुक्त चीजों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
आप इन चीजों के बारे में तभी जागरूक हो सकते हैं, अगर आप अपने तंत्र के साथ एक खास तरीके से पेश आ रहे हों। अगर आप रोजाना हर तरह की चीज खा रहे हों, जिन पर आपका कोई नियंत्रण न हो, खूब सफर कर रहे हों, तो आप यह सब नहीं संभाल सकते। मगर आम तौर पर लोग लंबे समय तक एक ही जगह पर रहते थे। दो पीढ़ी पहले तक भी ज्यादातर लोग एक ही घर में पैदा होते, रहते और मर जाते थे। आज आप बहुत सारे लोगों और पदार्थों के संपर्क में आते हैं, इसलिए अधिक ऋणानुबंध जमा न करने को लेकर और भी ज्यादा जागरूक होने की जरूरत है।
ऋणानुबंध को धोना - अग्नि स्नान
पोंगल या भोगी जैसे कुछ उत्सव आपके मानसिक बोझ, भावनात्मक बोझ और आपके ऋणानुबंध की सफाई करते हैं। लिंग भैरवी में हम क्लेश नाशन क्रिया करते हैं। आप इसे अग्नि स्नान की क्रिया कह सकते हैं। अगर सिर्फ स्नान आपको स्वच्छ करने के लिए काफी नहीं है, तो आप इस अनुष्ठान को कर सकते हैं। क्लेश नाशन क्रिया उस शारीरिक याददाश्त को जलाने की एक विधि है, जो आपने जमा किया है। जरूरी नहीं है कि वह संबंधों के कारण जमा हुई हो। शरीर सिर्फ लोगों, हालात, वातावरण, बहुत सारी चीजों के संपर्क में आने पर भी याददाश्त बटोर लेता है।
स्नान आग से भी किया जाता है और हम रोजाना जल से भी स्नान करते हैं। जिस समय मैं बहुत साधना कर रहा था, उस समय दिन में पांच से सात बार स्नान करता था क्योंकि ऐसे में आपका सिस्टम बहुत संवेदनशील हो जाता है।
कुछ खास मौसमों में, जैसे जब सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ता है, और फिर उत्तर से दक्षिण की ओर, तब भारतीय उपमहाद्वीप में बहुत तेज हवाएं चलती हैं। एक सरल प्रक्रिया है, जाकर वायु के बीच खड़े हो जाना ताकि आप वायु स्नान कर सकें। यह आपके लिए बहुत लाभदायक होगा। इसे आजमाएं – जब तेज ठंडी हवा चल रही हो, कोई ढीला कपड़ा पहनकर आधे घंटे सिर्फ वहां खड़े रहें। आंखें बंद करके हवा को महसूस करें। दोनों तरफ घूमें ताकि हवा सामने और पीछे, दोनों तरफ से आपके शरीर को लगे। आप काफी हल्के और बेहतर महसूस करेंगे।
कपड़ों को मिट्टी से रंगना
आश्रम में, सभी ब्रह्मचारी अपने कपड़े अलग-अलग धोते हैं। इसकी वजह यह है कि वे सभी साधना कर रहे हैं और उन सभी का अपना अलग गुण है – हम सभी को मिश्रित नहीं करना चाहते। मिश्रण को रोकने का एक और तरीका है, हर बार धोने के बाद कपड़ों पर मिट्टी लगाना। साधु-संन्यासी हमेशा अपने कपड़ों को रंगने के लिए महीन लाल मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं। कपड़े मूल रूप से सफेद होते हैं, मगर लगातार छानी हुई मिट्टी से धोने के कारण, वे मटमैले हो जाते हैं।
इसी तरह, आश्रम की इमारतों को मिट्टी से रंगा गया है और उसे चिपकाने के लिए एक खास गोंद का इस्तेमाल किया गया है।